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This Article is From May 25, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : हलफनामे के लिए कांग्रेस विधायकों पर किसका दबाव?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 25, 2016 21:30 pm IST
    • Published On मई 25, 2016 21:30 pm IST
    • Last Updated On मई 25, 2016 21:30 pm IST
मकान की रजिस्ट्री और राजनीतिक वफ़ादारी में अब कोई फर्क नहीं रहा। जिस तरह आप घर ख़रीदते-बेचते वक्त स्टाम्प पेपर पर बिक्री का क़रार करते हैं अब उसी स्टाम्प पेपर पर लिखकर दिया जा रहा है कि हम अपने नेता के प्रति वफ़ादार रहेंगे। पोलिटिक्स दिन-रात किसी फिल्म की तरह चल रही है। एकाध फिल्मों का हीरो जेब में इस्तीफा लेकर चलने का दावा करने लगता था, मगर पश्चिम बंगाल कांग्रेस के 44 विधायकों ने स्टाम्प पेपर पर लिखकर किसी और दल में जाने या किसी अन्य नेता के प्रति वफादार होने की अपनी तमाम संभावनाओं को ख़त्म कर लिया है। 100 रुपये के स्टाम्प पेपर पर 44 कांग्रेसी विधायकों ने लिखा है, मगर इससे पश्चिम बंगाल राजस्व विभाग को मात्र 4,400 रुपये का ही आय हुआ है। इससे ज़्यादा का पेट्रोल विधायक लोग अपनी गाड़ी स्टार्ट करने में फूंक देते होंगे। हलफनामे में लिखा है कि, 'यहां तक कि अगर मैं पार्टी की नीति या फैसले से सहमत नहीं होने पर भी नकारात्मक टिप्पणी नहीं करूंगा या पार्टी को नुकसान पहुंचाने के लिए नकारात्मक कदम नहीं उठाऊंगा। इस तरह की टिप्पणी करने या कदम उठाने से पहले मैं अपने विधायक के पद से इस्तीफा दे दूंगा।'

ये हलफनामा कांग्रेस के विधायक अपने घर से बनवा कर नहीं लाए थे। बैठक में आए तो कांग्रेस अध्यक्ष अधीर रंजन चौधरी ने उन्हें दिया और उन्होंने दस्तखत कर दिए। मोटा मोटी सर्वसम्मति से फैसला लिया गया। एक-दो विधायक बैठक ख़त्म होने से पहले चले गए थे, उनके दस्तख़त नहीं हैं। हलफनामे में लिखा है, "विधायक होने के नाते मैं पार्टी के दिशानिर्देशों का पालन करूंगा और विधायक होने के नाते नेता विपक्ष के दिशा निर्देश का अनुसरण करूंगा। विधानसभा में चीफ व्हीप का भी पालन करूंगा।"

इस तरह से हलफनामे को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को समर्पित कर दिया गया है। यह अपने आप में ग़ज़ब का मामला है। हलफनामे में विधायकों ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के प्रति संपूर्ण निष्ठा रखने का वादा किया है। तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने लिखा है कि इस तरह का हलफनामा अपने आप में विचित्र है। डेरेक ओ ब्रायन ने राजनीतिक दल को परिभाषित करते हुए लिखा है कि एक राजनीतिक दल समान सोच रखने वाले लोगों का स्वेच्छा से बना संगठन होता है। ये सभी समान सिद्धांत में यकीन रखते हैं। क्या कांग्रेस को ख़ुद में भरोसा नहीं रहा कि वो अपने विधायकों से हलफनामा मांग रही है।

डेरेक ओ ब्रायन ने इसके बहाने तृणमूल कांग्रेस की जमकर तारीफ कर दी। एनडीटीवी डॉट कॉम पर अपने लेख में डेरेक ने कहा है कि हाल के इतिहास में कांग्रेस से निकल कर अपनी पार्टी बनाकर एक अलग राजनीतिक आंदोलन चलाने वाली ममता बनर्जी एकमात्र नेता हैं। बात कांग्रेस की करते-करते सांसद साहब अपने दल का बखान करने लगे हैं। जैसे कि टीवी बहसों में होता है। पहली पंक्ति आलोचना की होती है, बाकी की पंक्ति आत्म प्रशंसा की। बांग्ला कांग्रेस, तमिल मणिला कांग्रेस, कांग्रेस तिवारी से लेकर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी सबका इतिहास और सफलता के पैमाने को डेरेक ने गिना दिया। ज़ाहिर है गिनाने का मौका कांग्रेस ने ही दिया। गिनाते-गिनाते वे आखिरी पैराग्राफ में वापस हलफमाने वाले मसले पर आते हैं और लिखते हैं कि कुछ लोग इस हलफनामे के बारे में कह रहे हैं कि यह चोटी के नेताओं के खिलाफ बग़ावत रोकने के लिए है, जहां पार्टी में सर्जरी की ज़रूरत पर ज़ोर दिया जा रहा है। स्थानीय स्तर पर चिंता है कि कहीं ये विधायक तृणमूल कांग्रेस में न चले जाएं। जैसा कि अतीत में हुआ है और चुनाव से पहले अधीर चौधरी ने ऐसी आशंका भी जताई है। भारतीय जनता पार्टी ने कहा है कि कांग्रेस पार्टी में लोग गांधी परिवार के बंधुआ हैं।

कुछ दल के लोग लिखकर निष्ठा जता रहे हैं तो कुछ दल के लोग निष्ठा जताने के लिए ऐसी-ऐसी बातें बोल दे रहे हैं कि लिखने में काफी अच्छा लगता है। इसी साल में मार्च में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उन्होंने कहा था कि प्रधानमंत्री मोदी भारत को भगवान का तोहफा हैं। वे ग़रीब लोगों के मसीहा हैं। हर सेक्टर की चुनौती विरासत में मिली हैं और वे उन चुनौतियों का सामना करने का प्रयास कर रहे हैं।

इससे पहले 2014 के साल में भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद के चेयरमैन लोकेश चंद्रा ने कहा था- मोदी जी ग़रीबों के लिए भगवान के अवतार हैं। उनकी जनधन योजना को देखिये। कार्ल मार्क्स ने ग़रीबी पर बहुत सारी चीज़ें लिखीं हैं, लेकिन उनका असली योगदान क्या था। मोदी जी ने ग़रीबों की ज़िंदगी में काफी परिवर्तन किये हैं। कुछ पहलुओं में वे गांधी से भी आगे निकल जाते हैं और वे भगवान के अवतार हैं।  

प्रधानमंत्री मोदी ने फरवरी, 2015 की एक सुबह कई ट्वीट कर दिए। कहा कि मैंने देखा है कि मेरे नाम के मंदिर बनाए जा रहे हैं। ऐसी ख़बरें देखीं, मैं स्तब्ध रह गया। यह भारत की परंपरा के ख़िलाफ़ है। हमारी संस्कृति मंदिर बनाने की शिक्षा नहीं देती है। व्यक्तिगत रूप से मैं दुखी हुआ हूं। ऐसा करने वालों से मैं अर्ज करता हूं कि वो ऐसा न करें। मंदिर बनाने से एतराज़ किया लेकिन भगवान बताने वाले मंत्री उनके मंत्रिमंडल में हैं और अच्छे मंत्री हैं। कम से कम कांग्रेस के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष इस तरह का ट्वीट तो कर ही सकते हैं। वैसे इंदिरा गांधी को भारत बताने वाले देवकांत बरूआ जी के राज्य में अब भारतीय जनता पार्टी का राज है। अगर टूटने से बचाने के लिए किया है तो कांग्रेस को इसे राष्ट्रीय स्तर पर करने की नौबत न आ जाए।

असम में हिमांता विश्व शर्मा पार्टी छोड़ बीजेपी में आ गए। उनके पीछे 9 अन्य कांग्रेसी विधायक बीजेपी में चले गए
उत्तराखंड में भी 9 विधायक बीजेपी में चले गए। अगर यह समस्या है तो तब तो कांग्रेस को अपने सभी सदस्यों से हलफनामा करवा लेना चाहिए। यह भी तो हो सकता है कि विधायक पार्टी में रह जाए और कार्यकर्ता प्रवक्ता उपाध्यक्ष सब चल दे।
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