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This Article is From Feb 06, 2018

सरकारी नौकरियां हैं कहां - भाग 13

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    February 06, 2018 22:21 IST
    • Published On February 06, 2018 22:21 IST
    • Last Updated On February 06, 2018 22:21 IST
रोज़गार के सवाल को पकौड़ा तलने का रूपक मिल जाए और रूपक गढ़ने वाले आर्कमिडिज़ का फार्मूला समझ कर उस पर कायम रहे तो रोज़गार को लेकर मारे मारे फिर रहे नौजवानों की चुनौतियां और बढ़ जाती हैं. वो अपने रोज़गार और उसे देने की सरकारी व्यवस्था को लेकर सवाल पूछ रहे हैं मगर पूछने से पहले उन्हें पकौड़े का फार्मूला थमा दिया जा रहा है. पकौड़ा रोज़गार के कठिन सवाल को आसान और क्रूर मज़ाक के रूप में सबके हाथ लग गया है. सोशल मीडिया में सब पकौड़े तल रहे हैं. जो नौकरियों के लिए चयन आयोगों से पूछ रहे हैं वो या ता किसी कोने में तिरपाल लगाकर धरने पर बैठे हैं या सौ पचास की संख्या में जुट कर अपने साथ हो रहे मज़ाक का विरोध कर रहे हैं. हम और आप वाकई नहीं जानते कि राजस्थान, बिहार, पंजाब, दिल्ली, बंगाल और मध्य प्रदेश सहित तमाम राज्यों में सरकारी भरतियों के लिए बनी संस्थाओं में परीक्षा लेने की कितनी काबिलियत बची है. क्यों एक भी परीक्षा ठीक से नहीं हो पाती है. क्यों बार-बार चोरी होती है, कुछ ऐसा होता है कि परीक्षा रद्द हो जाती है. क्या 21वीं सदी के भारत में हम एक ईमानदार परीक्षा व्यवस्था की मांग नहीं कर सकते. इसमें भी भीतर भीतर एक धंधा पनप रहा है. परीक्षा करने वाली संस्था तो सरकारी होती हैं, मगर परीक्षा कराने के लिए किसी प्राइवेट कंपनी को ठेका दे दिया जाता है. आज ही मुझसे बिहार के इंजीनियरिंग कालेज के छात्र मिलने आए थे. जो हाल बताया, उसे सुनकर मैं ख़ुद अवसाद (डिप्रेशन) में चला गया, इसलिए आपको नहीं बताऊंगा. हम और आप टीवी या अपने अनुभव के ज़रिए जिस भी भारत को जानते हैं वो अधूरा भारत है. उसकी समझ वाकई अधूरी है. क्या आप दुनिया में किसी भी देश का उदाहरण दे सकते हैं जहां किसी परीक्षा का फार्म 2010 में निकला हो और 2018 तक वो परीक्षा पूरी नहीं हुई हो.

यह मार्च 5 फरवरी की है, पटना के गर्दनीबाग से आशियाना मोड़ के बीच एक मार्च निकाला गया जिसका नाम आक्रोश मार्च है. नाम में ही आक्रोश बचा है बाकी मार्च की मायूसी फ़रवरी को उदास किए जा रही है. इनके मार्च से न तो शहर को फर्क पड़ा, न सरकार को. आवाज़ उठाने का फ़र्ज़ किन्तु रस्म अदायगी से लोकतंत्र भी गौरवान्वित नहीं हुआ होगा. नाइंसाफियों के मारों का अपना एक अलग मुल्क होता है, इस मुल्क को हर राज्य से हटा कर किसी कोने में ठेल दिया गया है जैसे दिल्ली के जंतर मंतर पर लोग जमा होते थे अब वहां जमा नहीं हो सकते. उसी तरह पटना में अब हड़तालियों का मुल्क गर्दनीबाग में बसा दिया गया है. यह धरना बिहार राज्य पोलिटेकनिक छात्र संघ के तत्वाधान में आयोजित है. आप जानते हैं कि बिहार में 32 सरकारी पोलिटेकनिक कालेज हैं, इतने ही प्राइवेट पोलिटेकनिक कालेज हैं, हर साल यहां से 9600 नौजवान निकलते हैं. धरना प्रदर्शन की तस्वीर इसलिए दिखा दी ताकि आप यह न कहें कि ये लोग अपने हक की आवाज़ नहीं उठाते हैं. ताकि आप यह न कहें कि इन्होंने लोकतांत्रिक तरीकों का इस्तेमाल नहीं किया.

नौजवानों ने बताया कि 6 फरवरी 2018 को इन्होंने बिहार के उप मुख्यमंत्री सुशील मोदी के घर का घेराव किया. पथ निर्माण विभाग मंत्री नंद किशोर यादव का पुतला दहन किया. इस नारे को देखिए. ऐसा नारा आपने चे ग्वारा की क्रांति में भी नहीं सुना होगा. 'नहर बांध तोड़ने का मत लगाओ चूहों पर इल्ज़ाम, बहाल करो कनीय अभियंता, लेकर लिखित इग्ज़ाम.' मोदी मोदी के नारे में हम भूल गए कि भारत में नारों की रचनात्मकता अभी भी बची हुई है. इन नौजवानों ने हमें अपने प्रदर्शनों की एक लिस्ट भी दिखाई जिसमें आंक्रोश मार्च, पुतला दहन, आमरण अनशन, आम सभा, कालेज तालाबंदी, मशाल मार्च, विधानसभा घेराव का ज़िक्र है. आत्मदाह भी है, जो नहीं होना चाहिए. 65 दिन में इनसे बातचीत के लिए कोई नहीं आया.

अब आप ज़रा ध्यान से इस टाइमलाइन को पढ़ि‍ए. भारत में एक परीक्षा लापता हो गई है. परीक्षा देने वाले छात्र धरने पर हैं मगर परीक्षा का कहीं अता पता नहीं है. नौजवानों को बर्बाद करने का बरमूडा त्रिकोण बना हुआ है जिसमें न जाने कितनी जवानियां हमेशा हमेशा के लिए ग़ायब हो गई हैं. 7 जनवरी 2010 को बिहार सरकार ने बिहार कर्मचारी चयन आयोग कहा कि 2030 जूनियर इंजीनियर की भर्ती की प्रक्रिया आरंभ की जाए. डेढ़ साल बाद 8 जून 2011 को भर्ती का विज्ञापन निकलता है कि लिखित परीक्षा के अंक पर मेरिट लिस्ट से बहाली होगी. इसके 15 महीने बाद 30 सितंबर 2012 को पटना शहर के विभिन्न केंद्रों पर परीक्षा ली जाती है. सोचिए जनवरी 2010 में बिहार राज्य को 2030 जूनियर इंजीनियर की आवश्यकता महसूस होती है, 30 सितंबर 2012 तक सिर्फ परीक्षा ही होती है. देरी से हुई भर्ती पर राज्य की प्रगति पर क्या असर पड़ा, नौजवानों की बर्बादी कैसे हुई, इसका कोई सोशल ऑडिट हमारे पास नहीं है. विज्ञापन निकलने के ढाई साल बाद लिखित परीक्षा विवादों में फंस जाती है. 840 उम्मीदवारों को चोरी से उत्तर पुस्तिका भरवाते हुए पकड़ा जाता है. मामला कोर्ट में पहुंचता है और हाई कोर्ट का आदेश आता है कि केस चलता रहेगा, पहले बिहार कर्मचारी चयन आयोग रिज़ल्ट निकाले. 7 मई 2014 को जब रिजल्ट निकलता है तो उन 840 उम्मीदवारों का भी नाम मेरिट लिस्ट में आता है जो चोरी करते पकड़े गए थे और जिनके खिलाफ पुलिस ने केस दर्ज किया था. फिर मामला होई कोर्ट में पहुंचता है. अब यहां से मैं अपनी कहानी थोड़ी छोटी करता हूं. अपने ही नागरिकों को ठग कर भारत को विश्व गुरु बनाने का एक प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है जो अपने आप में ठगी का मेगाप्रोजेक्ट है. केस चलता है, जांच होती है और जून 2016 में हाईकोर्ट पूरा रिज़ल्ट ही रद्द कर देता है. 2010 से 2016 आ गया. 2030 जूनियर इंजीनियर चुने जाने की आस में नौजवानों की ज़िंदगी के छह साल ख़त्म हो जाते हैं. फिर इसी की परीक्षा की तारीख निकलती है. तय होता है कि 7 अगस्त 2016 को भोजपुर के अनेक केंद्रों पर परीक्षा होगी. 4 अगस्त 2016 को नोटिस आता है कि 7 अगस्त को परीक्षा नहीं होगी. अब नई तारीख यह निकलती है कि परीक्षा 18 सितंबर 2016 को होगी. पहली पाली में दूसरी पाली के और दूसरी पाली में पहली पाली के प्रश्न पत्र बांटे जाते हैं. सारे सवाल उलट पुलट हो गए तो हंगामा हुआ, मामला पहुंचा फिर हाई कोर्ट में. 2 फरवरी 2017 को पटना हाईकोर्ट का आदेश आता है कि नए सिरे से परीक्षा होगी.

जनवरी 2010 से हम कहां आ गए, 2 फरवरी 2017. अभी तक 2030 जूनियर इंजीनियर की एक परीक्षा तक आयोजित नहीं हो सकी है. 31 जनवरी 2018 तक इस परीक्षा का कुछ अता पता नहीं चलता है. अब नया आदेश आया है कि अगली परीक्षा फरवरी 2018 या मार्च के प्रथम सप्ताह में होगी. क्या आपको नहीं लगता कि हमें इन मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए. इन सब सवालों के बग़ैर किसी भी व्यवस्था की हमारी समझ कितनी अधूरी और खोखली है.

13 सीरीज़ में मैंने कुछ अनुभव प्राप्त किया है. दावे के साथ तो नहीं कह सकता मगर हर राज्य में इसी तरह का पैटर्न देख रहा हूं. परीक्षा चयन आयोग यानी सरकार के सिस्टम के कारण असफल होती है, बर्बाद नौजवान होते हैं. ऐसी ख़बरें आम तौर पर अख़बारों में किसी कोने में छाप दी जाती हैं. इन नौजवानों की राजनीतिक समझ पर टिप्पणी नहीं कर सकता क्योंकि मैं जानता नहीं. पर गेस कर सकता हूं कि कहीं ये भी हिन्दू मुस्लिम या जाति के खांचे में बंटे होते होंगे. वर्ना जिस राज्य के इंजीनियरिंग कालेजो में पर्याप्त शिक्षक न हों, बिना पढ़े लड़के पास होते हों, हर साल 10,000 जूनियर इंजीनियर की डिग्री लेकर पास होते हों, उसके नौजवानों की पोलिटिकल क्वालिटी बहुत ख़राब है. अगर ख़राब न होती तो किसी के लिए आसान नहीं होता इन मुद्दों को नज़रअंदाज़ कर देना. बिहार के पोलिटेकनिक कालेज शिक्षक विहीन हैं. टीचर नहीं हैं. फिर ये कालेज चलते क्यों हैं. तीन साल लगाकर पोलिटेकनिक कराने का क्या मतलब है. इसके लिए प्रवेश परीक्षा क्यों ली जाती है. ढाई लाख छात्र फार्म भरते हैं और 9000 के करीब सीट है. बिहार के लोग अपने ही नौजवानों के प्रति ईमानदार नहीं हैं, न नौजवान अपने प्रति ईमानदार हैं. क्या कहा जाए, वही बात है कि नौजवानों की पोलिटिकल क्वालिटी उनकी डिग्री से भी बदतर है. ये बात लिखकर नौजवानों को अपने कमरे में टांग देना चाहिए कि मैंने कहा है.

दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ डूटा ने 6 फरवरी को बड़ा मार्च निकाला. बड़ी संख्या में पहुंचे ये शिक्षक एडहाक और टेम्पररी पढ़ा रहे शिक्षकों को रेगुलर करने की मांग कर रहे हैं. यह भी कि नियुक्तियों में पारदर्शिता होनी चाहिए जो नहीं हो रही है. ये शिक्षक फैकल्टी ऑफ लॉ और डिपार्टमेंट ऑफ एजुकेशन में हुई नियुक्तियों को लेकर सवाल उठा रहे हैं. इनका कहना है कि नियुक्ति के लिए यूजीसी ने जो फार्मूला बनाया है उसे छोड़कर सब कुछ चयन समिति की मर्जी पर छोड़ दिया गया है. इनका कहना है कि फैकल्टी ऑफ लॉ में जुलाई अगस्त 2017 में 126 पदों के लिए इंटरव्यू हुआ. रिजल्ट अभी आया नहीं है मगर लिफाफा खुलने से पहले ही विश्वविद्यालय में 27 जनवरी से चुने गए लेक्चरर प्रोफेसर की सूची घूमने लगी. इस सूची में पहले से पढ़ा रहे 84 एडहाक शिक्षकों में से आधे से अधिक बाहर कर दिए गए थे. इसी के खिलाफ डूटा ने बड़ा मोर्चा निकाला कि जो लोग औसतन 5 साल और अधिकतम 15 साल से एडहाक पढ़ा रहे हैं उन सबको परमानेंट नौकरी पर रखा जाना चाहिए. बड़ी संख्या में परमानेंट शिक्षकों ने एडहाक शिक्षकों का साथ दिया है. सबकी ज़िंदगी दांव पर लगी है. हमने यूनिवर्सिटी सीरीज की, किसी को कोई फर्क नहीं पड़ा. सबको हिन्दू मुस्लिम पर इतना भरोसा हो गया है कि अब नागरिक की कोई हैसियत ही नहीं बची है.

यह कहानी दर्दनाक है। दिल्ली विश्वविद्यालय में हज़ारों की संख्या में एडहाक शिक्षक कई साल से एडहाक पढ़ा रहे हैं. फैकल्टी ऑफ ला में आठ साल से एडहाक पढ़ा रही एक लेक्चरर ने बताया कि आठ साल में उन्होंने 15 बार इंटरव्यू दिया. 15 बार उन्हें फैकल्टी ऑफ ला ने पढ़ाने के लिए रखा लेकिन जब परमानेंट रखने की बारी आई तो उन्हें बाहर कर दिया गया. शिक्षकों की बहाली की पारदर्शी प्रक्रिया न पहले थी न अब है. न कभी होगी, ये भी लिखकर दे सकता हूं. राजनीतिक सिफारिशों के हिसाब से बहालियां हो रही हैं. इसे आप नहीं बदल सकते हैं, हां प्रतिभा और पारदर्शिता पर लेक्चर दे सकते हैं. सोचिए 84 एडहाक पढ़ा रहे थे उनमें से 44 बाहर कर दिए गए. छात्रों पर कितना सदमा पहुंचता होगा जब वे अपने अच्छे शिक्षक को यूं बाहर जाते देखते होंगे. दिल्ली विश्वविद्यालय सिर्फ जून और जुलाई में चमकता लगता है जब अखबारों के ज़रिए मिडिल क्लास को धोखा दिया जाता है कि 95 फीसदी से अधिक लाने वाले बच्चों के लिए भारत का यह श्रेष्ठ विश्वविद्यालय यहीं हैं. एडहाक शिक्षकों की कहानी बता रही है कि हम सब एक आज़ाद मुल्क में सिस्टम की कैसी कैसी ग़ुलामी कर रहे हैं.


मैं अब यह समझने लगा हूं कि क्यों टीवी पर या मीडिया में ऐसे मुद्दे हर रोज़ आते हैं जो मुद्दे ही नहीं होते हैं. इन शिक्षकों के साथ जो नाइंसाफी हो रही है उसका समाधान मुझे नज़र नहीं आता. यूनिवर्सिटी बर्बाद हैं. कहीं भी योग्य शिक्षकों के लिए जगह नहीं बची है. आप सोचिए, आप जिन बच्चों के लिए अच्छे स्कूल के नाम पर लाखों की फीस देते हैं, क्या-क्या नहीं सहते हैं, जब वे स्कूल से बाहर निकलेंगे तो उनके लिए कैसा कॉलेज इंतज़ार कर रहा है. कभी इस पर भी बहस कर लीजिए, समाज ने तीन महीने तक एक फिल्म पर चर्चा की है, आपको पता नहीं कि अपने बच्चों के भविष्य के साथ क्या नाइंसाफी की है सबने.

अब हम बात करेंगे उत्तराखंड के फारेस्ट गार्ड के 1218 पदों की भर्ती की. दिनेश मानसेरा ने बताया है कि 23 सितंबर 2017 को 25,000 से ज़्यादा आवेदन आते हैं. इसके लिए छात्रों से 300 रुपये लिए जाते हैं. अब सरकार ने इस भर्ती पर रोक लगा दी है. पहला बहाना यह दिया कि फारेस्ट गार्ड के लिए योग्यता का विस्तार किया गया है. कृषि विज्ञान के अलावा आर्ट्स कामर्स के छात्र भी इस परीक्षा में बैठ सकेंगे. यहां गार्ड के लिए उम्र सीमा 24 साल से 42 साल कर दी गई. सीधा डबल. रेलवे में अधिकतम उम्र 30 साल से घटाकर 28 साल कर दी गई है और यहां 24 साल से बढ़ाकर 42 साल. यह चमत्कार सिर्फ और सिर्फ इसलिए हो सकता है कि इस देश में वही वाला टापिक ही चलेगा और चलता है. मानसेरा ने बताया कि इसकी कोचिंग पर छात्र 30-30 हज़ार रुपए भी ख़र्च कर चुके हैं.

यही नहीं, उत्तराखंड वन विकास निगम के 191 पदों के लिए 31 दिसंबर 2016 को आवेदन आए. 500 रुपये फार्म देकर हज़ारों छात्रों ने फार्म भरे. पेपर लीक हो गया अभी तक पेपर नहीं हुआ है. 2016 से 2018 आ गया है. दिनेश मानसेरा का कहना है कि सरकार के पास वेतन देने के लिए पैसे की तंगी है. हाल ही वेतन देने के लिए 500 करोड़ का कर्ज़ लिया. दिनेश ने राज्य के वित्त आबकारी मंत्री प्रकाश पंत से बात की.

बंगाल के नौजवानों से कहा है कि धीरज रखें, उनका नंबर आएगा. अगर आपको लगता है कि सिर्फ ज़िक्र कर देने से आपका काम हो जाएगा तो आपकी समझ न तो सिस्टम की है न ही लोकतंत्र की न ही आपके नागरिक कर्तव्यों की. मैं समझता हूं आप नौजवानों की उम्र अभी कच्ची है.

आप इस वक्त बेसहारा मारे मारे फिर रहे हैं. पश्चिम बंगाल के छात्र मंगलवार को वेस्ट बंगाल सर्विस कमीशन पहुंचे थे ये पता करने के लिए कि उनके अटके रिजल्ट कब तक अटकते रहेंगे. हाल ही में वेस्ट बंगाल सर्विस कमीशन को बेस्ट बंगाल पब्लिक सर्विस कमीशन में मिला दिया गया है. कुछ विडयो और तस्वीर छात्रों ने ही भेजी हैं. इसलिए लेक्चर देने के अलावा आपका एक लेटर पढ़ रहा हूं. अंग्रेज़ी में भेजा है, हिन्दी में सुना रहा हूं.

आदरणीय रवीश सर,

हम लोग पश्चिम बंगाल के असहाय नौकरी खोजी हैं. हमलोग पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा लिए जाने वाले कई परीक्षाओं में बैठ चुके हैं जिसमें मुख्य है एलडीसी/एलडीए (लोअर डिविजनल क्लर्क/ लोअर डिविजनल असिस्टेंट), केपीएस (कृषि प्रजुक्ति सहायक, फार्मिंग टेक्नॉलजी हेल्पर), डब्ल्यूबीएसएससी (वेस्ट बंगाल स्कूल सर्विस कमीशन जैसे कि टीचर रिक्रूटमेंट एग्जाम जिसकी प्रक्रिया 2012 में शुरू हुई थी). अपर प्राइमरी टीचर रिक्रुटमेंट एग्जाम का रिजल्ट सितम्बर 2016 में आ गया था लेकिन इंटरव्यू के लिए हम अब तक इंतजार ही कर रहे हैं. खासतौर पर एलडीसी/एलडीए और केपीएस परीक्षा जो वेस्ट बंगाल स्टाफ सेलेक्शन कमीशन ने 2015 में लिया था. अब पश्चिम बंगाल की सरकार ने चयन आयोग को ही भंग कर दिया है. इस परीक्षा के दूसरे भाग के रिजल्ट का अब तक इंतजार किया जा रहा है. सभी परिक्षाएं अब वेस्ट बंगाल पब्लिक सर्विस कमीशन आयोजित करेगी जिसके काम करने की गति बहुत धीमी है. हमारे यहां तो वार्षिक कैलेंडर तक नहीं है. बहुत सी छोटी बहालियां जैसे कि पंचायत कार्यालय में जिला परिषद कार्यालय में हो रही हैं लेकिन उनमें भ्रष्टाचार अधिक है और देरी भी. कोई भी मीडिया हमारी हालत और जरूरत को नहीं दिखाता. इसलिए आपसे आग्रह है कि यहां की नौकरियों का डेटा देखे और इस पर खबर दिखाएं.

आपका धन्यवाद
पश्चिम बंगाल के असहाय नौकरी खोजी


हमारी नौकरी की सीरीज़ से आप भारत को देखिए. उसकी व्यवस्था को देखिए. आपको पता चलेगा कि हकीकत क्या है और स्लोगन क्या है. आप रेलवे की परीक्षा की तैयारी करने वाले नौजवानों के घर जा कर देखिए, सिर्फ अधिकतम उम्र 30 से घटाकर 28 कर देने से कितने नौजवानों के चेहरे पर उदासी है. उनकी तैयारी के तीन चार साल हवा में उड़ गए हैं. आप यूपी के उन जवानों से मिलिए जिन्होंने पुलिस सेवा में लिपिक, कंप्यूटर सेवा के लिए नौकरी आने का इंतज़ार कर रहे थे मगर पुलिस भर्ती और प्रोन्नति बोर्ड ने इम्तहान ही रद्द कर दिया. हम चैनलों पर चाहे जितनी खुशहाल तस्वीरें दिखा लें, हकीकत ये है कि नौजवान उदास हैं. भले ही उनके पास पकौड़ा तलने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा है. उदास हाथों से तले गए पकौड़े का स्वाद फीका रह जाएगा. कभी नमक ज़्यादा हो जाएगा कभी तेल तो कभी तीखापन. आपको लग सकता है कि नौकरी सीरीज़ मज़ाक में कर रहा हूं मगर आप सारे एपिसोड उठाकर एक एक लाइन पढ़ जाइये आपको सिस्टम का क्रूर चेहरा नज़र आएगा.

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