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जब सोवियत संघ और अमेरिका में होने ही वाला था परमाणु युद्ध, ऐसे टला था खतरा

गौरव कुमार द्विवेदी
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 06, 2025 12:40 pm IST
    • Published On अगस्त 06, 2025 12:19 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 06, 2025 12:40 pm IST
जब सोवियत संघ और अमेरिका में होने ही वाला था परमाणु युद्ध, ऐसे टला था खतरा

आज हिरोशिमा दिवस है. द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका ने छह अगस्त 1945 को जापान के हिरोशिमा शहर में परमाणु बम गिराया था. इससे हिरोशिमा का 13 वर्ग किमी क्षेत्र पूरी तरह से नष्ट हो गया था. दुनिया के इस पहले परमाणु बम हमले में एक लाख 80 हजार से अधिक लोगों की मौत हो गई थी. इसके ठीक तीन दिन बाद नौ अगस्त 1945 को अमेरिका ने जापान के दूसरे शहर नागासाकी पर दूसरा परमाणु बम गिरा दिया था. इस हमले में भी एक लाख से अधिक लोग मारे गए थे. आज हम इस इस घटना का जिक्र इसलिए कर रहे हैं कि आज एक बार फिर दुनिया में परमाणु युद्ध के मुहाने पर खड़ी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने रूस के नजदीक में दो परमाणु पनडुब्बियां तैनात करने के आदेश दिए हैं. इसका जवाब देने की तैयारी रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने कर ली है. वो जल्द ही बेलारूस में ओरेशनिक हाइपरसोनिक मिसाइल तैनात करने वाले हैं. 

यह समय परमाणु युद्ध के बारे में मशहूर वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन की उस लोकप्रिय पंक्तियों को याद करने का है. उन्होंने कहा था, "तीसरा विश्व युद्ध परमाणु हथियारों से लड़ा जाएगा और अगला युद्ध लाठी और पत्थरों से लड़ा जाएगा." उनके कहने का मतलब यह था कि परमाणु युद्ध इतना विनाशकारी होगा कि इसके बाद बची हुई मानव सभ्यता को फिर से पाषाण युग (Stone Age) में लौटना पड़ेगा.

रूस ने तोड़ी अमेरिका से संधि 

शीत युद्ध के बाद ऐसा पहली बार है, जब मिसाइल और सबमरीन (पनडुब्बी) की तैनाती की बातें शुरू हो गई हैं.यह विवाद इतना बढ़ गया कि रूस चार अगस्त को 2019 में अमेरिका के साथ हुई लंबी और मध्यम दूरी तक मार करने में सक्षम हथियारों की तैनाती को लेकर हुई आईएनएफ संधि से बाहर निकल गया. ऐसे में उस घटना की याद आना स्वाभाविक है, जब कोल्ड वॉर (शीत युद्ध) के दौरान सोवियत संघ ने अमेरिका के पड़ोसी क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात कर दी थीं. क्यूबा सीमा के लिहाज से अमेरिका का करीब है. लेकिन कम्युनिस्ट शासक फिदेल कास्त्रो की वजह से वह सोवियत संघ के करीब था. इसे देखते हुए अमेरिका हर वक्त अमेरिका से खतरा महसूस करता था.  

अमेरिकी टोही विमानों ने क्यूबा में मिसाइलों की लांचिंग साइट के निर्माण की तस्वीरें ली थीं. इससे अमेरिका में हंगामा मच गया था.

अमेरिकी टोही विमानों ने क्यूबा में मिसाइलों की लांचिंग साइट के निर्माण की तस्वीरें ली थीं. इससे अमेरिका में हंगामा मच गया था.

क्यूबा में तख्तापलट की कोशिश में थे अमेरिकी राष्ट्रपति

दरअसल अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी जुलाई 1962 में क्यूबा से फिदेल कास्त्रो के शासन को उखाड़ फेंकने के लिए 'ऑपरेशन मांगूस' की तैयारी कर रहे थे.यह खबर लगते ही किसी भी अमेरिकी हमले को विफल करने के लि सोवियत संघ और क्यूबा में एक गुप्त समझौता हुआ. इसके तहत सोवियत संघ क्यूबा में परमाणु मिसाइलें तैनात करने पर सहमत हुआ. क्यूबा में लॉचिंग पैड बनाए जाने लगे. अमेरिकी खोजी विमानों ने इसका पता लगा लिया. इससे पता चल गया कि सोवियत संघ ने क्यूबा में बड़ी तैयारी कर ली है. मिसाइल तैनाती की खबर ने अमेरिका में खलबली मचा दी थी. इस घटनाक्रम ने दुनिया को परमाणु युद्ध की कगार पर खड़ा कर दिया था. इसके बाद 13 दिनों तक दोनों महाशक्तियों के बीच टकराव हुआ था. अमेरिका ने इसे अपनी सुरक्षा के लिए खतरा माना. उसने सोवियत संघ से मिसाइलों को हटाने को कहा. कैनेडी ने सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव को पत्र लिखा. इसके बाद बातचीत शुरू हुई. यही से शुरू हुआ'बैक चैनल डिप्लोमेसी' का दौर.

अमेरिका के सामने सोवियत संघ की शर्त क्या थी 

इस दौरान अमेरिकी मीडिया को सोवियत जासूसों ने खबर दी कि एक समझौता हो सकता है जिसके तहत सोवियत संघ क्यूबा से अपनी मिसाइलें हटा लेगा, बशर्ते अमेरिका क्यूबा पर आक्रमण न करने का वादा करे. ख्रुश्चेव ने 26 अक्टूबर की आधी रात (मॉस्को के समय के अनुसार) में कैनेडी को एक संदेश भेजा. यह लेटर ठीक वैसा ही था, जैसी बात सोवियत एजेंट ने कही थी. लेटर में लिखा था- ''To doom the world to the catastrophe of thermonuclear war, then let us not only relax the forces pulling on the ends of the rope, let us take measures to untie that knot. We are ready for this.'' (अगर दुनिया को थर्मोन्यूक्लियर युद्ध की तबाही में धकेलने का कोई इरादा नहीं है, तो आइए हम न केवल रस्सी के सिरों को खींचने वाली ताकतों को ढीला करें, बल्कि उस गांठ को खोलने के लिए भी कदम उठाएं. हम इसके लिए तैयार हैं.)

इसके अगले ही दिन 27 अक्टूबर को ख्रुश्चेव ने एक और संदेश भेजा. इसमें कहा गया था कि अमेरिका को अब तुर्की से भी जुपिटर मिसाइलों को हटाना होगा. इस बैक चैनल डिप्लोमेसी के तार 27 अक्तूबर को ही बिखरते दिखे, क्योंकि क्यूबा के आसमान में उड़ान भर रहे एक अमेरिकी U-2 टोही जेट को मार गिराया गया था. 

खुश्चेव को क्यों झेलनी पड़ी थी फजीहत

कैनेडी और उनके सलाहकारों ने कुछ ही दिनों में क्यूबा पर हमले की तैयारी शुरू कर दी. कैनेडी ने ख्रुश्चेव की 'तुर्की से अमेरिकी मिसाइल हटाने वाली' शर्त को तो नजरंदाज किया, लेकिन पहले क्यूबा से मिसाइल हटाने की गारंटी मांगी. अगली सुबह 28 अक्टूबर को ख्रुश्चेव ने एक सार्वजनिक बयान जारी किया कि सोवियत मिसाइलों को नष्ट कर दिया जाएगा और क्यूबा से हटा दिया जाएगा. इससे संकट टल गया और कैनेडी को पॉलिटिकल माइलेज भी मिला. इस संकट को टाल देने की वजह से उनकी छवि अमेरिका की राजनीति में काफी मजबूत हो चली थी. लेकिन इस डील से खुश्चेव की बड़ी किरकिरी हुई. क्यूबा से मिसाइलों को वापस लेने के फैसले को सोवियत संघ के अपमान के तौर पर देखा गया. लोगों ने इसे सोवियत नेता की कमजोरी भी माना. इससे ख्रुश्चेव की सत्ता कमजोर हुई.

अस्वीकरण: इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी हैं.एनडीटीवी का उनसे सहमत या असहमत होना जरूरी नहीं है.

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