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This Article is From Jan 18, 2016

आइए समझें 'स्टार्टअप' के महत्व और उससे जुड़ी उम्मीदों को

Sudhir Jain
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 20, 2016 19:25 pm IST
    • Published On जनवरी 18, 2016 15:34 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 20, 2016 19:25 pm IST
सरकार के बहुप्रतीक्षित स्टार्टअप कार्यक्रम का ऐलान हो गया। इसे लेकर देश के संभावित युवा उद्यमियों में बड़ा कौतूहल था। खासतौर पर देश के करोड़ों बेरोजगार युवा बड़ी उम्मीद लगाए थे। अब नए कार्यक्रम के ऐलान से उन्हें पता चला कि सरकार ने नए उद्यमियों के सुभीते के लिए चार साल तक हर साल ढाई हजार करोड़ रुपए यानी दस हजार करोड़ का एक कोष बनाने का ऐलान किया है। इन उद्यमियों को कानूनी जटिलताओं से छुटकारा दिलाने का भी वायदा किया गया है। बेशक, हजारों नए उद्यमियों को इस तरह के ऐलान से राहत मिली होगी। उन्होंने अपनी अपनी हैसियत के मुताबिक यह सोचना भी शुरू कर दिया होगा कि वे और क्या नया करें।

रोजगार मांगने की बजाए रोजगार देने वाले बनिए
स्टार्टअप का ऐलान होते समय बेरोजगार युवाओं का जबर्दस्त हौसला बढ़ाने वाली बात प्रधानमंत्री ने यही कही। उन्होंने युवा उद्यमियों को काम-धंधे के कुछ विशेष क्षेत्र भी सुझाए। मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, और हस्तशिल्प। इनोवेशन (नवोन्मेष) यानी नया अनोखा काम शुरू करने का सुझाव देते हुए साइबर सिक्योरिटी के लिए कुछ नया कर दिखाने की बात कही। प्रधानमंत्री ने दसियों लाख समस्याओं का जिक्र करते हुए युवाओं का हौसला यह कहते हुए बढ़ाया कि हमें एक खरब दिमाग भी तो मुहैया हैं। इस बात से यह मतलब लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री ब्रेन स्टॉर्मिंग आयोजनों का भी सुझाव दे रहे थे। यानी विचार विमर्श के ऐसे आयोजन खुद में एक उद्यम बन सकते हैं। जाहिर है कि बेरोजगारी जैसी पहाड़ सी समस्या के समाधान के लिए भी कोई इनोवेटिव आइडिया पैदा करने का आग्रह भी स्टार्ट अप के दायरे में आ गया लगता है।

बिजनेस के बजाय सोशल ऑन्त्रेप्रनोर बनने का सुझाव
फ्रांसीसी शब्द ऑन्त्रेप्रनोर व्यापार जगत में आजकल खूब चलन में है। प्रबंधन प्रौद्योगिकी के विशेषज्ञ इसमें दो प्रमुख बातों का होना बताते हैं। पहला किसी उद्यम का नया या नवोन्वेषी होना और दूसरा जोखिम उठाने या घाटा उठाने का हौसला होना। अपने भाषण में प्रधानमंत्री ने इस विशेष शब्द का कई बार जिक्र किया। व्यापार की बजाए उन्होंने सामाजिक उद्यमिता यानी सोशल ऑन्त्रेप्रनोरशिप पर जोर दिया। यह सुनकर एमबीए जैसे कोर्स करने वालों की यह दुविधा खत्म हुई होगी कि उन्हें सामाजिक उद्यमिता के बारे में क्यों पढ़ाया जाता है और उनके लिए सामाजिक क्षेत्र में उद्यम की कितनी गुंजाइश बन गई है। उन्हें भी बड़ी दिलासा मिली होगी जो सामाजिक कार्यों को अपना जॉब या रोजगार बनाने का इरादा रखते हैं। अब यह आगे देखने की बात होगी कि देश के युवा मुनाफा कमाने के लिए व्यापार या उद्योग के बजाए सामाजिक लाभ के उद्यम को कैसे ढूंढेगे। वैसे कुछ इसी तरह का काम स्वयंसेवी संस्थाएं करती आ रही हैं। यानी अब यह काम दान-अनुदान के बजाए कर्ज लेकर बाकायदा व्यापारिक प्रतिष्ठान के तौर पर किया जा सकेगा। यह आगे देखा जा सकेगा कि इस तरह की सेवाएं या उत्पाद खरीदने में सरकार के अलावा किसकी दिलचस्पी होगी। और सरकार भी कितनी मात्रा में उन्हें खरीद पाएगी। (पढ़ें : 'स्टार्ट अप' है क्या और वह क्या-क्या दे सकता है)

जुगाड़ यानी स्थानीय नवोन्मेष
भारतीय लोक प्रशासन संस्थान के कुछ प्रोफेसर देश में उत्साही लोगों के अपने तरीके से बनाए अनोखे उपकरण यानी जुगाड़ पर रोचक टिप्पणियां करते आए हैं। प्रधानमंत्री ने भी स्टार्ट अप के ऐलान के आयोजन में रोचक ढंग से इसका जिक्र किया। ऐसे जुगाड़ों दूसरे नवोन्मेषों का पेटेंट हासिल करने के लिए फीस बहुत कम यानी 80 फीसद कटौती का ऐलान नए कार्यक्रम में शामिल है। हालांकि इस तरह के पेटेंट हासिल करना कितना आसान होगा, यह बाद में पता चलेगा। लेकिन यह ऐलान नई जुगाड़ पैदा करने वाले युवाओं को खुश करने वाला तो था ही।

क्या मनरेगा की तरह गेम चेंजर साबित होगा स्टार्टअप
कुछ लोग स्टार्ट अप की तुलना यूपीए सरकार के गेम चेंजर कार्यक्रम मनरेगा से कर रहे हैं। लेकिन ये फिजूल की और बेमौके की बात है। मनरेगा शुद्ध रूप से ग्रामीण बेरोजगारों को रोजगार देने का कार्यक्रम था। इसका मकसद देश के छह लाख गांवों के पांच करोड़ बेरोजगारों को आंशिक रोजगार देना था जबकि स्टार्ट अप का लक्ष्य दस बीस हजार नए और युवा उद्यमियों को उद्यम में मदद करना है। हां, उम्मीद के तौर पर यह बात जरूरी जोड़ी गई है कि ये नए उद्यम लाखों रोजगार पैदा कर सकते हैं। मनरेगा से स्टार्ट अप की तुलना इसलिए भी नहीं की जा सकती क्योंकि मनरेगा के लक्ष्य की नापतोल की जा सकती थी जबकि स्टार्टअप की नापतोल नहीं की जा सकती। नापतोल का एक आधार सरकार के खर्च करने के आधार पर हो सकता है। लेकिन इस मामले में भी तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि मनरेगा पर एक साल में सरकार के चालीस हजार करोड़ खर्च हो रहे थे जबकि स्टार्टअप पर तय कोष में से एक साल में सिर्फ ढाई हजार करोड़ खर्चने का इरादा है।

स्टार्टअप तो शुरुआत है आगे बहुत कुछ होने की उम्मीद
नई सरकार से जो बड़ी शिद्दत से उम्मीद लगाए हैं, उनका कहना है कि स्टार्टअप तो सरकार के कई इरादों में एक इरादा है। इसके बाद कई ऐलान होंगे। बात बिल्कुल ठीक लगती है। अगले महीने ही बजट पेश होने वाला है। तब बिल्कुल साफ हो जाएगा कि आगे और क्या-क्या होने वाला है। क्योंकि जो भी होगा, वह होगा तो पैसे से ही। बाकी प्रेरणा देने, अपील करने और सदइच्छा के महत्त्व से कौन इनकार कर सकता है।

सुधीर जैन वरिष्ठ पत्रकार और अपराधशास्‍त्री हैं...

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