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4 years ago
कोलकाता:

पश्चिम बंगाल के इस चुनाव में आम लोग क्या सोचते हैं ये जानना भी काफ़ी महत्वपूर्ण कई तरह के लोगों से हमारी बातचीत हुई. सभी लोग यह मानते हैं कि इस बार का चुनाव काफ़ी अलग है. एक सज्जन मिले जिन्होंने कि आज़ादी से लेकर अभी तक का सारा चुनाव देखा है. उसमें शिरकत की है और उनका यह भी कहना है कि इस तरह का चुनाव नहीं देखा. उनका कहना है कि यहां जो हो रहा है चुनाव में, वो ठीक नहीं हो रहा है. मुद्दों की कोई बात नहीं हो रही है, कोई रोज़गार की बात नहीं कर रहा है, कोई स्वास्थ्य की बात नहीं कर रहा, हर कोई शिक्षा की बात नहीं कर रहा है.

बात हो रही है तो धर्म की और जाति की... एक संगीतकार मिले, उनकी समस्या भी अलग तरह की है. लॉकडाउन के बाद से ये सेक्टर सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ और अभी तक उबर नहीं पाया है. उनका कहना है कि कोई भी नेता या कोई भी पार्टी अपने मेनिफेस्टो में या अपने मीटिंग में उनकी बात नहीं करती वो अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. इस पूरे चुनाव में इतना पता है कि इस बार चुनाव में जो हिंदी भाषी लोग हैं, वो निश्चित रूप से BJP के समर्थन में आपको दिखाई देंगे, लेकिन इसके उल्टा जो बांग्ला भाषी लोग है वो अपने विचार बहुत फूंक फूंक कर रख रहे हैं वो खुल कर नहीं बोलना चाहते. उनसे बात करने पर आपके लगेगा कि ये थोडा डरे हुए हैं.

बहुत कुरेदने पर कहते हैं कि इस बार के चुनाव में पहली बार बांग्ला और बांग्ला के विरुद्ध की भावना दिख रही है और इसी को ममता बनर्जी काफ़ी अच्छी तरह से उभार रही हैं वो अपने रैली में जय बांग्ला के नारे लगाती हैं.वो ये कहती हैं कि वो पश्चिम बंगाल को गुजरात और उत्तर प्रदेश नहीं बनने देंगी, तो इस बार के चुनाव में असली मुद्दे गायब हैं, जैसे इस बार रोज़गार की कोई बात नहीं कर रहा. इससे विद्यार्थी वर्ग या वो युवक जिसके पास नौकरी नहीं हैं वो काफ़ी नाराज़ हैं, उनका कहना है कि यहां पर धर्म की बात हो रही है. यहां पर जाति की बात हो रही है लेकिन यहां पे नौकरी की बात कोई पार्टी नहीं कर रही है. सब को इस बात की उम्मीद है कि कोई भी पार्टी जीते या बीजेपी या चाहे ममता तीसरी बार जीतती हैं तो राज्य का औद्योगिकीकरण करें. ख़ासकर उनको लगता है कि सिंगूर में या कहीं और जगह पर फैक्ट्रियां लगे, जिससे कि बड़ी संख्या में लोगों को नौकरी मिले.

एक और बात हुई है, इस चुनाव में वो ये है कि लोगों का विश्वास चुनाव आयोग पर कम होता जा रहा है. भले ही चुनाव आयोग कहे कि वो निष्प़क्ष है. भले ही सरकार कहे कि चुनाव आयोग निष्पक्ष है, भले ही सभी राजनीतिक दल कहे कि चुनाव आयोग निष्पक्ष है और सबको चुनाव आयोग पर भरोसा है, मगर ये पब्लिक है सब जानती है. पब्लिक को लगता है कि इतने लंबे समय तक चुनाव प्रक्रिया नहीं चलनी चाहिए थी. किसी एक राज्य में आठ चरण में चुनाव करवाने से लोग नाराज हैं .आम लोग जानते हैं कि इससे वो पार्टी जिसके पास पैसा है, संसाधन है, वो अपने पक्ष में हवा बना सकती है. फिर कुछ ऐसे फैसले हुए जो ममता बनर्जी के खिलाफ लिए गए. जैसे उनको चुनाव प्रचार से रोकना.आयोग के इस निर्णय का जनता पर खासा असर दिखा है. चुनाव आयोग की और साख गिरी है. हां ये अलग बात है कि ममता ने आयोग के फैसले पर ऐसा राजनीतिक स्टंट किया, जिससे उन्हें फायदा ही हुआ.

अब अंत में कोविड के इससे ख़तरनाक दौर में चुनाव आयोग की जो भूमिका रही है, उस पर काफ़ी सवाल खडे हुए हैं और लोग चुनाव आयोग से नाराज भी हुए हैं लोगों का कहना है कि चुनाव आयोग को बड़ी बड़ी रैलियां और रोड शो पर बैन लगाया दाँव चाहिए था लेकिन कुछ भी नहीं हुआ चुनाव आयोग ने केवल इतना का कह के अपना पल्ला झाड़ लिया कि सभी पार्टियां को कोविड गाइडलाईन का पालना करना चाहिए लेकिन कोई भी पार्टी इसका पालन नहीं कर रही है जिससे की लगता है कि चुनाव के बाद दक्षिण बंगाल में आपको कोरोना विस्फोट देखने को मिल जाए बड़ी संख्या में कोरोना के मरीज सामने आए्ंगे..एक उम्मीदवार की कोरोना से मौत के बाद वहां चुनाव टालना पडा है.. यही कुछ वजह है जिसके बारे में कहा जा रहा है कि पश्चिम बंगाल का ये चुनाव ऐतिहासिक है राजनीतिक रूप से तो ज़रूर है क्योंकि बंगाल का ये चुनाव तय करेगा कि ममता बनर्जी का अगला राजनीतिक भविष्य और BJP का भी अगला स्वरूप क्या होगा वो इसी चुनाव पर निर्भर करता है.

(मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में 'सीनियर एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर - पॉलिटिकल न्यूज़' हैं.)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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