मोदी सरकार का वर्तमान कार्यकाल वर्ष 2019 तक का है, लेकिन रेल बजट में सुरेश प्रभु ने 'विज़न 2020' का सपना क्यों दिखाया...? यात्री सुविधा, सफाई, टेक्नोलॉजी और पारदर्शिता से सम्बन्धित घोषणाओं के बावजूद रेल बजट में कड़वे यथार्थ का स्वीकार न होने से भविष्य का सही विज़न आ ही नहीं पाया।
तकनीक के प्रयोग का कानून से सामंजस्य नहीं - विकास के क्रम में शासन में तकनीक का प्रयोग बढ़ना ही चाहिए, जिसकी झलक स्टेशनों में वाई-फाई, यात्रियों के लिए ई-केटरिंग, सुरक्षा के लिए ड्रोन्स का प्रयोग, बायो-टायलेट, तत्काल काउंटर में सीसीटीवी, एसएमएस के जरिये सफाई, 20,000 डिस्प्ले स्क्रीन, पेपरलेस वर्क, सोशल मीडिया के प्रयोग की घोषणाओं में दिखती है। ड्रोन्स जैसी सुविधाओं के प्रयोग के लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय तथा रक्षा मंत्रालय ने गंभीर आपत्तियां दर्ज की हैं, उसके बावजूद इसकी घोषणा से सरकार में अंर्तमंत्रालयी विमर्श की कमी ही दिखती है।
कॉस्मैटिक घोषणाएं - रेलमंत्री द्वारा पहले यह कहा गया था कि रेल बजट में नई ट्रेन या योजनाओं की घोषणा की बजाए आय-व्यय का सही विवरण होना चाहिए, इसके बावजूद कई लुभावने वादे किए गए हैं। रेल बजट में स्टेशनों का सौन्दर्यीकरण, कुली का सहायक के तौर पर नाम परिवर्तन, रेल कर्मचारियों की यूनिफॉर्म में बदलाव, ऑनलाइन शिकायत के लिए हेल्पलाइन नम्बर, रेल डिब्बों में ज्यादा चार्जिंग प्वाइंट समेत एफएम संगीत की सुविधा देने की घोषणा की गई है। रेलवे की हालत सरकारी बैंकों से भी अधिक जर्जर हो गई है, जिसका सही विवरण रेल बजट में नहीं आया।
रेलमंत्री का यह दूसरा बजट था, जिसमें वह कठोर कदम उठाकर रेलवे की तस्वीर बदलने की शुरुआत सकते थे। इसकी बजाए बजट में वर्ष 2020 तक वेटिंग खत्म करने और 95 फीसदी ट्रेनों के समय से चलने की खोखली घोषणाएं की गई हैं, जो राजनीतिक तौर पर लाभप्रद होने के बावजूद रेलवे को उबारने में मददगार नहीं होंगी।
पारदर्शिता के सरकारी मापदण्डों का करना होगा पालन - सरकार में खरीदी तथा भर्ती में पारदर्शिता के लिए सख्त मापदण्ड बनाए गए हैं, जिसे रेल बजट में ई-टेण्डरिंग के नाम से दोहराया गया है। सरकार द्वारा जारी नवीनतम गाइडलाइनों के मुताबिक दो लाख से ऊपर की खरीद के लिए ई-टेण्डरिंग आवश्यक है, फिर रेल बजट में इसकी घोषणा करने का क्या अर्थ है...? रक्षा सेवाओं के बाद रेलवे देश में रोज़गार का सबसे बड़ा क्षेत्र है। पिछले कई वर्षों में रेलवे में नौकरियों की संख्या में भारी कमी आई है। सीएजी की रिपोर्ट के मुताबिक रेलवे में अनुकम्पा के आधार पर नौकरियों का गोरखधन्धा चल रहा है, जिस पर सरकार लगाम लगाने में असफल रही है। रेलमंत्री द्वारा सभी पदों में ऑनलाइन भर्ती की घोषणा स्वागतयोग्य है, पर बड़ा सवाल इसके क्रियान्वयन का है...?
संसाधनों के टोटे में पूर्व की अधूरी योजनाएं - रेलवे कर्ज के भारी संकट में है तथा पहले की घोषित योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए ही छह से आठ लाख करोड़ रुपये चाहिए। पैसे के अभाव में घोषित इन योजनाओं की डीपीआर इत्यादि में ही संसाधनों की बड़ी बर्बादी होती है। रेलमंत्री द्वारा विज्ञापन से चार गुना आमदनी तथा पीपीपी मॉडल में राज्यों के सहयोग से भविष्य में योजनाओं के क्रियान्वयन की बात की गई है। रेलवे में कामकाज का खर्च 32 फीसदी से ज्यादा बढ़ा है तथा ऑपरेटिंग रेशो 92 फीसदी हो गया है, जिसके अनुसार 100 रुपये में 92 रुपये अनुत्पादक कार्यों यथा वेतन, पेंशन इत्यादि में खर्च हो जाते हैं। सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को लागू करने में 32,000 करोड़ के खर्च के बावजूद साधन कहां से आएंगे, क्योंकि किराये में बढ़ोतरी तो की ही नहीं गई...? जनता के पैसे से चलने वाली एलआईसी से सरकार 1.5 लाख करोड़ का निवेश या क़र्ज़ लेगी तथा रेलवे की संपत्तियों की बिक्री भी होगी, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या इससे ढाई गुना निवेश के लिए रकम मिल पाएगी...?
बगैर ठोस शुरुआत के लुभावने वादों से 'विज़न 2020' कैसे पूरा होगा...? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पदभार ग्रहण करने पर कहा था कि शुरू के चार साल विकास को समर्पित रहेंगे और पांचवें साल राजनीति होगी। सुरेश प्रभु जैसे पेशेवर और कुशल मंत्री से इस रेल बजट में विज़न की ठोस शुरुआत की बहुत उम्मीद थी, जो राजनीति के बैरियर से रुक गई लगती है। रेलमंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि मंदी के दौर से गुज़र रही दुनिया में रेलवे में सुधार की काफी गुंजाइश है, जिसकी शुरुआत करने में प्रभु अपने दूसरे बजट में भी विफल रहे हैं।
विराग गुप्ता सुप्रीम कोर्ट अधिवक्ता और संवैधानिक मामलों के विशेषज्ञ हैं...
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This Article is From Feb 25, 2016
रेल बजट : सुविधा, सफाई, तकनीक और विजन 2020...
Virag Gupta
- ब्लॉग,
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Updated:फ़रवरी 26, 2016 19:10 pm IST
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Published On फ़रवरी 25, 2016 16:43 pm IST
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Last Updated On फ़रवरी 26, 2016 19:10 pm IST
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