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This Article is From Dec 28, 2014

उमाशंकर सिंह की कलम से : कांग्रेस स्थापना दिवस में क्यों नहीं आए राहुल गांधी?

Umashankar Singh, Saad Bin Omer
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  • Updated:
    दिसंबर 28, 2014 19:27 pm IST
    • Published On दिसंबर 28, 2014 17:45 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 28, 2014 19:27 pm IST

कांग्रेस ने आज अपना 130वां स्थापना दिवस मनाया। इस मौक़े पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने नई दिल्ली स्थित पार्टी मुख्यालय में पार्टी का झंडा फहराया। लेकिन इस मौक़े पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी मौजूद नहीं थे।

कांग्रेस पार्टी की तरफ से राहुल की गैरमौजूदगी की वजह को लेकर कोई सफाई नहीं दी गई। यहां तक कि इस संबंध एनडीटीवी की तरफ से संपर्क किए जाने के बावजूद राहुल गांधी के ऑफिस की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई। चर्चा पर भरोसा करें तो राहुल 'बाहर' हैं।

राहुल गांधी को पूरा हक़ है कि कभी भी घर से बाहर रह सकते हैं, दिल्ली से बाहर रह सकते हैं या फिर देश से बाहर भी जा सकते हैं। एक व्यक्ति के तौर पर उनके बाहर रहने के हर अधिकार का सम्मान और समर्थन किया जाना चाहिए। लेकिन सवाल तब उठ खड़े होते हैं, जब एक नेता के तौर पर वह पार्टी की स्थापना दिवस के मौक़े पर समारोह से बाहर रहें।

बाहर रहने की दो वजहें हो सकती हैं। व्यक्तिगत या पार्टीगत। पार्टीगत वजह से वह बाहर होते तो पार्टी या उनके दफ्तर की तरफ इस बारे में ज़रूर कुछ न कुछ सूचना आती जैसा पहले आती रही हैं। लेकिन ऐसी किसी सूचना के आभाव में हम ये मानने को स्वतंत्र हैं कि उनका बाहर होना पार्टी के किसी कार्यक्रम में शामिल होने, किसी पार्टी डेलीगेशन को लेकर कहीं जाने या ऐसी किसी दूसरी गतिविधि से जुड़ा नहीं है।

दूसरी वजह। उनका बाहर जाना किसी निजी कार्यक्रम में शामिल होने से लेकर नए साल के जश्न में शरीक होने से भी जुड़ा हो सकता है। कोई नितांत व्यक्तिगत वजह हो सकती है, जिस पर हमें बोलने का हक़ नहीं।

लेकिन ध्यान रहे कि वे एक व्यक्ति के साथ-साथ और कांग्रेस उपाध्यक्ष के तौर पर सार्वजनिक जिंदगी भी जीते हैं। देश की आम जनता को इस बात से कोई फर्क़ नहीं पड़ता कि कांग्रेस के स्थापना दिवस के मौक़े पर वह कहां रहे, लेकिन उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं को ज़रूर फर्क़ पड़ता है।

दो दिन पहले ही पार्टी महासचिव दिग्विजय सिंह ने मध्य प्रदेश में एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि राहुल गांधी को पार्टी का 'फुल टाईम' नेतृत्व करना चाहिए। उनके कहने का आशय शायद यही था कि पार्टी को पूरा वक्त देना चाहिए। राहुल पूरा वक्त दे रहे हैं और देते भी होंगे। हो सकता है हमेशा वे ऐसा करते वक्त मीडिया में न दिखना चाहते हों। ज़रूरी गोपनीयता बरतना भी ज़रूरी होता है। लेकिन जब मौक़ा स्थापना दिवस का हो तो अपने नेताओं और कार्यकर्ताओं के बीच पार्टी को पूरा वक्त देते दिखना ज़रूरी हो जाता है।

यह सही है कि सोनिया गांधी ही अभी तक पार्टी की तमाम बड़ी ज़िम्मेदारी उठा रहीं हैं। हर बड़े फैसले ले रही हैं। हार से निराश पार्टी को नई दिशा और दशा देने की कोशिश कर रही हैं। लेकिन अगला बागडोर राहुल को संभालना है तो ऐसे अहम मौक़ों पर उनकी गैरमौजूदगी नहीं चलेगी।

राहुल पर पहले से ही राजनीति को लेकर अगंभीर होने की चर्चा उठती रही है। लेकिन जब पार्टी को फिर से खड़ा करने की ज़िम्मेदारी उठानी है तो अब गंभीरता दिखनी पड़ेगी। पार्टी के ऐसे आयोजनों में आना पड़ेगा जो प्रतीकात्मक तौर पर ही सही, नेताओं और कार्यकर्ताओं के लिए बहुत मायने रखते हैं।

इससे पहले सोनिया गांधी ने जब तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के सम्मान में डिनर का आयोजन किया था, राहुल तब भी ग़ायब थे। शोर मचा तो जानकारी आई विदेश में हैं। उनके दफ्तर की तरफ से सफाई दी गई कि वह मनमोहन सिंह से मिल दस साल देश की बागडोर संभालने के लिए पहले ही आभार जता आए थे। लेकिन वह जब भी आभार जता आए हों उसकी कोई जानकारी मीडिया को नहीं दी गई थी। राहुल की ग़ैरमौजूदगी के वजह की जानकारी आज भी नहीं है।

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