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This Article is From Dec 06, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो- जयललिता : तमिलनाडु की जनता ने हकीकत से किया साक्षात्‍कार

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 06, 2016 21:44 pm IST
    • Published On दिसंबर 06, 2016 21:40 pm IST
    • Last Updated On दिसंबर 06, 2016 21:44 pm IST
आख़िर तमिलनाडु की जनता ने उस हकीकत से साक्षात्‍कार कर ही लिया, जिसका वो पिछले 74 दिनों से सामना करने का हिम्मत जुटा ही नहीं पा रही थी. जयललिता के निधन का ऐलान उनके समर्थकों और वहां की जनता ने जिस साहस और उदारता के साथ स्वीकार किया है, उसका प्रमाण आपको राज्य में पसरी उदासी के बीच उस शांति से मिल जाएगा, जिसके भंग हो जाने की आशंका में तमिलनाडु की पुलिस दिन-रात चौकस खड़ी थी. ज़रूर वहां की पुलिस ने साहसिक काम किया होगा.

यह भी इसलिए संभव हो सका होगा कि वहां की पुलिस अपने राज्य की जनता को बेहतर समझती होगी. जयललिता इस दुनिया में नहीं है. अब सिर्फ उनके किस्से हैं. मृत्यु की गरिमा का अंदाज़ा उसे स्वीकार करने वाले लोगों से होता है. जयललिता को अंतिम विदाई देने आए कई लाख लोगों ने अपनी नेता को अनुशासित विदाई देकर उनकी मौत को गरिमा ही प्रदान की है. समर्थकों के सैलाब की तरफ से जयललिता को इससे बेहतर श्रद्धांजलि नहीं हो सकती है.

टीवी का कैमरा सिर्फ तस्वीरों को दिखा सकता है, बता नहीं सकता है कि उन लाखों लोगों के दिलों पर क्या बीत रही होगी. मन में क्या कुछ चल रहा होगा. बस चुपचाप चलते हुए लोग ही नज़र आते हैं. राजाजी हाल से मरीना बीच की दूरी दो किमी से ज्यादा नहीं है. इस अंतिम सफर को अम्मा के समर्थकों ने इतिहास में लंबे समय तक के लिए यादगार बना दिया. उन्होंने कोई हंगामा नहीं किया.

हम समझ सकते हैं कि किस मुश्किल से लाखों के सैलाब ने अपने भावनात्मक उफ़ान पर काबू में किया होगा. बहुत मुश्किल होता है अंतिम यात्रा के वक्त किसी शख्सियत से आपको रूबरू कराने का. हम समझते हैं कि जयललिता ने अपनी ओर से भी सत्ता का वही गढ़ रचा, किला खड़ा किया. जिसके कायदे उसी दुनिया से लिये गए थे जिससे बग़ावत कर वो जयललिता बनी थीं. उस हिसाब का वक्त नहीं है ये.

हमें किसी राजनेता के बनने की प्रक्रिया को भी समझना होगा और राजनेता से नायक और महानायक में बदलने को भी समझना होगा. इस तरह की दीवानगी, ऐसा भरोसा, कोई और हासिल नहीं कर पाता है. राजनीतिक विरोध, अपमान, आरोप, जेल, विस्थापन ये सब एक राजनेता ही झेलता है. वो सत्ता पाता है तो वही है जो सत्ता से बेदखल किया जाता है. पब्लिक के बीच इतना तल्ख इम्तेहान राजनेता के अलावा कोई नहीं देता है. इसलिए राजनेता लोगों के दिलों में राज करता है. खासकर वो लोग जो दशकों तक एक बड़े तबके में अपने प्रति भरोसे को बनाए रखते हैं. वही लोग हैं जो उत्तर में लोकनायक बन जाते हैं, दक्षिण में अम्मा बन जाते हैं. कोई बापू बन जाता है, कोई नेता जी बन जाता है. कोई बाबा साहब बन जाता है कोई कोई पंडित जी बन जाता है.

समंदर ने आज एक और समंदर का सामना किया है. मरीना बीच पर लाखों लोगों की मौजूदगी जयललिता को विदाई देने नहीं आई थी. बल्कि वो अपनी यादों के लिए जयललिता को लेने आई थी. पुलिस और सुरक्षा बलों ने चेन्नई की सड़कों को भर दिया.

अतीत के आईने में 24 दिसंबर 1987 की तस्वीरों में देखा जाए तो राजा जी हाल में एमजीआर का पार्थिव शरीर रखा हुआ है. जयललिता पास में खड़ी हैं. इस जगह की कहानी जयललिता के बनने की कहानी है. 1987 में जयललिता ने यहां जिस अपमान का सामना किया था उसका किस्सा हम आगे बतायेंगे. एमजीआर का परिवार नहीं चाहता था कि जयललिता राजा जी हाल में घुस सकें. जयललिता किसी तरह घुसती हैं और तेरह घंटे तक वहां खड़ी रहती हैं. आज उसी राजा जी हाल में जयललिता का पार्थिव शरीर रखा हुआ था. एक तरह से सियासी कहानी जहां से शुरू होती है वहीं ख़त्म हो जाती है. नियति में जो यकीन रखते हैं वो इस किस्से को ज़माने तक याद रखेंगे.

राजा जी हाल में जयललिता के पार्थिव शरीर के साथ तीस सालों से उनकी सहयोगी शशिकला अपने परिवार के साथ मौजूद थीं. तीसरी बार मुख्यमंत्री बने पनीरसेल्वम अपनी नई कैबिनेट के साथ मौजूद थे. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी चेन्नई पहुंच कर श्रद्धांजलि दी और शशिकला को ढाढस बंधाया.

मुख्यमंत्री सेल्वम प्रधानमंत्री का हाथ थाम रोने ही लगे. पीएम मोदी काफी देर तक रुके भी. राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने भी अंतिम विदाई दी. उसके बाद रजनीकांत आए. आम लोग भी उनका अंतिम दर्शन करते रहे. कांग्रेस नेता राहुल गांधी और गुलाम नबी आज़ाद ने भी श्रद्धांजलि दी.

राजा जी हॉल का अपना एक इतिहास है. 1757 के प्‍लासी युद्ध की जीत का जश्न ब्रिटिश हुकूमत ने यहीं मनाया था. अंग्रेज़ों की सेना ने टीपू सुल्तान को हरा कर यहीं जश्न मनाया था. के कामराज का पार्थिव शरीर भी अंतिम दर्शन के लिए यहीं रखा गया था. इसी हॉल से जयललिता की कहानी का एक नया सियासी अध्याय शुरू होता है. आज जयललिता का पार्थिव शरीर इस हाल में रखा गया. अन्नादुरई, एमजीआर की समाधि के साथ जयललिता की समाधि बनेगी. द्रविड़ राजनीति के तीन हस्ताक्षर यहां मौजूद हैं.

अन्ना द्रमुक का जनरल सेक्रेट्री कौन होगा. उनका सियासी वारिस कौन होगा. यह सब आने वाले वक्त में अन्नाद्रमुक के भीतर का सियासी उफान तय करेगा. पनीरसेल्वम को साढ़े चार साल सत्ता संभालनी है. शशिकला क्या करेंगी इस पर भी सबकी नज़र होगी. दसवीं पास थीं जयललिता. सैनिक अनुशासन वाले माहौल में पली बढ़ीं. अकेलापन उनका साथी रहा. जिस पार्टी की नेता बनी उसका इतिहास ईश्वर की सत्ता को नामंज़ूर करने का रहा है, लेकिन जब 24 जुलाई 1991 में जयललिता मुख्यमंत्री पद की शपथ लेती हैं तो ईश्वर के नाम से शपथ लेती हैं. उससे पहले द्रविड़ नेता प्रकृति और अंतरात्मा के नाम पर शपथ लेते थे. ये जानकारी मेरी नहीं है बल्कि वासंती जी की है जिन्होंने जयललिता पर किताब लिखी है और उनके निधन पर इंडियन एक्सप्रेस में एक लेख.

मरीना बीच पर उनकी दोस्त शशिकला ने अंतिम संस्कार की प्रक्रिया पूरी की. ब्राह्मण जाति में पैदा हुईं, ब्राह्मण विरोधी पार्टी का नेतृत्व किया लेकिन उन्हें दफनाया गया. जाति और धर्म के बीच इस नेता की मौजूदगी और सिंबल को समाजशास्त्री लंबे समय तक अध्ययन करते रहेंगे. इंडियन एक्सप्रेस ने छापा है कि एक अधिकारी ने बताया था कि वो जाति और धर्म से परे थीं. द्रविड़ नेताओं को दफनाया ही जाता है. हम मौत के बाद उन्हें जलाते नहीं है.

मरीना बीच पर उनके जाने की ख़बर लोग ज़ब्त कर चुके थे. जयललिता अब दफ़न हैं. मगर उनका किस्सा अभी कुछ दिनों के लिए तमिलनाडु के घर-घर में कहा जा रहा होगा, सुना जा रहा होगा. सब कुछ शांति और आदर के साथ हो गया. जयललिता की विदाई के साथ तमिलनाडु की जनता एक नए दौर में प्रवेश करती है. वो एक फिल्म के रिलीज होने पर अभिनेता के पोस्टर को दूध से नहला देती है. लोग उसे पागल दीवाना समझते हैं. वही जनता इतनी सादगी के साथ अपने नेता को विदा करके चली आती है. जानकारों के पास हैरत के अलावा कोई और शब्द नहीं है.

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