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This Article is From Dec 25, 2015

'आजाद' हुए कीर्ति, क्या अब आजाद होगा क्रिकेट?

Sushil Kumar Mohapatra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    दिसंबर 26, 2015 21:58 pm IST
    • Published On दिसंबर 25, 2015 00:39 am IST
    • Last Updated On दिसंबर 26, 2015 21:58 pm IST
कुछ दिन पहले बीजेपी के किसी प्रवक्ता को यह कहते हुए सुना था कि कीर्ति बीजेपी में आजाद हैं और आजादी के साथ अपना मत रख सकते हैं। और बीजेपी ऐसी पार्टी है जहां नेता अपना मत आजाद होकर रखते हैं। लेकिन बुधवार को कीर्ति को बीजेपी से आजाद कर दिया गया। कीर्ति पिछले कुछ दिनों से जिस तरह वित्त मंत्री अरुण जेटली पर हमला कर रहे थे, उसका अंजाम यही होने वाला था। कीर्ति DDCA में हो रहे करप्शन को लेकर पिछले कई सालों से सवाल उठा रहे थे, लेकिन पिछले कुछ दिनों में वह कुछ ज्यादा एग्रेसिव हो गए थे। वह कई बार ट्विटर के जरिए अरुण जेटली को चुनौती दे चुके थे और उनके खिलाफ ऐसी भाषा का इस्तेनाल भी कर थे जिसको लेकर बीजेपी काफी नाराज थी।

भ्रष्टाचार ही नहीं राजनीति से भी दूर रखने की मांग
सिर्फ कीर्ति आजाद नहीं कई ऐसे पूर्व क्रिकटर भी हैं जो क्रिकेट में हो रहे करप्शन को लेकर सवाल उठा रहे हैं। सिर्फ करप्शन ही नहीं क्रिकेट को राजनीति से दूर रखने की मांग भी हो रही है। भारत में जब क्रिकेट शुरू हुआ तब लोगों को समझ नहीं आ रहा था कि इस खेल का भविष्य क्या है? बॉल फेंकना और डंडे से मारना, लेकिन इस डंडा और बॉल ने भारत के हर खेल को बाहर फेंका। समय के साथ-साथ क्रिकेट अपना जमीन जमाते गया और दूसरे खेलों को जमीन से उखाड़ फेंका। भारत का राष्ट्रीय खेल हॉकी भी क्रिकेट के साथ इस जंग में कहीं नजर नहीं आता है। क्रिकेट ने अपने भविष्य  के साथ-साथ कई लोगों का भविष्य बनाया।

क्रिकेटर बीसीसीआई की चयन समिति तक सीमित
सन 1928 में जब बीसीसीआई का गठन हुआ था तब इसके भविष्य को लेकर कई सवाल उठाए जा रहे थे। कोई नहीं जानता था कि इस बोर्ड का काम क्या होगा? क्रिकेट को बढ़ावा  देना, क्रिकेट के हित में काम करना या सिर्फ क्रिकेट को नियंत्रण करना? लेकिन धीरे-धीरे इस बोर्ड का मकसद साफ हो गया। समय के साथ-साथ बोर्ड की कमाई बढ़ने लगी। राजनेता से लेकर उद्योगपति तक सब क्रिकेट से करीबी बनाते हुए बोर्ड में अपना करिश्मा दिखाने में लग गए। जब से क्रिकेट बोर्ड बना तब से इसका अध्यक्ष कोई उद्योगपति रहा या कोई राजनेता। अभी भी अधिकतर राज्यों में क्रिकेट बोर्ड के अध्यक्ष राजनेता हैं। कई राजनेता तो क्रिकेट के साथ-साथ दूसरे खेल बोर्डों के भी सदस्य हैं। लेकिन यह कहना गलत होगा कि बीसीसीआई ने क्रिकेट की भलाई के लिए काम नहीं किया है। आज भी बीसीसीआई की वजह से कई खिलाड़ियों को मदद मिल रही है। पेंशन से लेकर अतिरिक्त राशि तक ने खिलाड़ियों की आर्थिक स्थिति में सुधार किया है। आईपीएल जैसे टूर्नामेंट के वजह से नए खिलाड़ियों को मौका मिला और आर्थिक मदद भी मिली। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या बीसीसीआई को चलाने के लिए हमारे देश में खिलाड़ियों की कमी है? बीसीसीआई में चयन कमेटी के सिवा और कहीं ज्यादा क्रिकेटर नजर नहीं आते हैं। लेकिन यह भी कहा जाता है कि टीम का चयन बीसीसीआई की अगुवाई के बिना नहीं हो सकता। कई बार ऐसा भी देखने को मिला है कि बोर्ड के खिलाफ आवाज उठाने वाले खिलाड़ियों की पेंशन और मिलने वाली राशि पर भी बोर्ड प्रतिबंध लगा चुका है।

संसद में लड़ाई, क्रिकेट मैदान पर हमजोली
क्रिकेट और क्रिकेट को कंट्रोल करने वाला बोर्ड क्रिकेट खेलने वाले हर देश में पाया जाता है, लेकिन उससे जुड़े हुए लोग अलग होते हैं। जहां भारत में क्रिकेट को राजनेता चलाते हैं वहीं ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में क्रिकेट बोर्ड को वहां  के क्रिकेटर चलाते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वहां के राजनेताओं में क्रिकेट के प्रति कोई रुचि नहीं है। ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री क्रिकेट के प्रति काफी रूचि रखते हैं। जरूरत पड़ने पर बोर्ड को सलाह भी देते हैं, लेकिन क्रिकेट के अंदरूनी मामलों में कभी दखलअंदाजी नहीं करते। इसीलिए उस देश में राजनेता अपनी जगह पर कामयाब हैं और बोर्ड अपनी जगह पर। लेकिन भारत में सब कुछ उल्टा है। यहां  के कुछ राजनेता तो देश के साथ-साथ क्रिकेट को चलाना चाहते हैं। संसद में एक-दूसरे से लड़कर संसद को न चलने देने वाले सांसद क्रिकेट के मैदान पर एक साथ खड़े हुए नजर आते हैं।

बिगड़े हालात के लिए क्रिकेटर भी जिम्मेदार
क्रिकेट की इस स्थिति के लिए सिर्फ बीसीसीआई या बीसीसीआई को कंट्रोल करने वाले लोग जिम्मेदार नहीं हैं। इस स्थिति के लिए कहीं न कहीं पूर्व क्रिकेटर भी जिम्मेदार हैं। भारत में क्रिकेट खिलाड़ियों का ऐसा कोई भी संघ नहीं है जिसकी मदद से खिलाड़ी अपने हक के लिए लड़ सकें। कुछ साल पहले  इंग्लैंड के पूर्व खिलाड़ी और बेहतरीन कमेंटेटर ईअन चैपल ने भारत में होने वाली इंडिया-ऑस्ट्रेलिया सीरीज के लिए कमेन्ट्री करने के लिए मना कर दिया था क्योंकि कुछ शर्तें, जैसे टीम के चयन को लेकर आलोचना नहीं करना, डीआरएस को लेकर  बीसीसीआई के स्टैंड पर कोई सवाल नहीं उठाना, उन्हें मंजूर नहीं था। उनका कहना था कि क्रिकेट की भलाई के लिए अगर खुलकर आवाज नहीं उठा सकते तो कमेन्ट्री करने का कोई मतलब नहीं है। लेकिन ऐसा सोच भारत के खिलाड़ियों के अन्दर नहीं पाया जाता है। कुछ बेहतरीन खिलाड़ी हैं जो क्रिकेट में काफी नाम कमा चुके हैं लेकिन आज बीसीसीआई की शर्तों के सामने झुक चुके हैं। क्रिकेट को नए मोड़ देने वाले यह खिलाड़ी अपना रास्ता बदल चुके हैं।

आज क्रिकेट सवालों से घिरा हुआ है। यह सवाल उन लोगों पर उठाया हा रहा है जो क्रिकेट न खेलते हुए भी क्रिकटरों का भविष्य तय कर रहे हैं। क्या अब समय आ गया है कि क्रिकेट को राजनेताओं से अलग कर देना चाहिए?

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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