विज्ञापन
2 years ago

ओडिशा के बालासोर में हुए ट्रेन हादसे की जांच CBI करेगी. इस हादसे में अब तक 275 लोगों की मौत हो चुकी है और 1000 के करीब घायल हुए हैं. यह बहुत ही अहम कदम है, क्योंकि जो इस मामले को जानने वाले कहते हैं कि हाई लेवल जांच एजेंसी की एक विस्तृत जांच ही बता सकती है कि आखिर प्वाइंट मशीन या फिर इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम के साथ क्या कोई क्रिमिनल टैम्परिंग की गई थी या फिर रिकंफीगरेशन या सिग्नलिंग एरर की वजह से ट्रेन का ट्रैक बदला. 

अधिकारियों का कहना है कि सीबीआई जांच दुर्घटना से जुड़े सभी सवालों का जवाब देगी. पिछले दो दशक में देश में यह एक भयानक दुर्घटना है. वैसे इस मामले में कमिश्नर रेलवे सेफ्टी की जरूरी जांच चलती रहेगी और उम्मीद है कि यह जांच दो हफ्तों में पूरी कर ली जाएगी. 

रविवार को रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव ने दूरदर्शन को बताया कि दुर्घटना का 'मूल कारण' और जो लोग इसके लिए जिम्मेदार हैं उन्हें पहचान लिया गया है. पीएम नरेंद्र मोदी ने एक दिन पहले दुर्घटना स्थल पर दौरे के दौरान कहा था कि जो भी दोषी होगा उन्हें बख्शा नहीं जाएगा और कड़ी कार्रवाई की जाएगी. 

रेलमंत्री ने कहा कि कंफीगरेशन में बदलाव किया गया था, जिसकी वजह से दुर्घटना हुई और जिस किसी ने भी यह किया है, प्वाइंट मशीन में (ट्रैक का कंफीगरेशन जिसके आधार पर ट्रेन संचालित होती है) को बख्शा नहीं जाएगा. रेलवे के एक्सपर्ट्स का कहना है कि इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट मशीन रेलवे सिग्नलिंग का बहुत ही महत्वपूर्ण उपकरण है, जो कि प्वाइंट स्विच के लॉकिंग के लिए बहुत जरूरी है, जिससे की ट्रेनों की सुरक्षा तय होती है. 

रेलवे की सुरक्षा से जुड़े एल2एम रेल बनाने वाले बेंगलुरु के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस के एसके सिन्हा ने एनडीटीवी से कहा कि इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग ट्रेन के रूट को दिशा देता है और स्टेशन मास्टर इसे तय करता है. 

उन्होंने कहा, '' जैसे ही रूट को सेट और लॉक कर दिया जाता है, फिर इस उस रूट से ट्रेन के जाने तक बदला नहीं जा सकता है. तय रूट पर सिग्नल को हरा कर दिया जाता है और इससे ड्राइवर को साफ हो जाता है उसके लिए यह रूट फिक्स है और वह आगे जा सकता है. इस प्रक्रिया की सारी बारीक जानकारी रिकॉर्ड होती है और एनालिसिस के लिए मौजूद रहती है और मुझे पूरी उम्मीद है कि अधिकारी सभी डाटा जांच रहे होंगे कि आखिर क्या गलत हुआ. भारतीय रेलवे द्वारा इस्तेमाल में लाया जा रहा इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग सिस्टम काफी सुदृढ़ है और सुरक्षा के उच्च मानकों के हिसाब से तैयार है और ऐसा होना मुश्किल है कि यह अपने आप फेल हुआ हो.''

उन्होंने कहा कि आमतौर पर ट्रेन डिरेलमेंट ट्रैक फेलियर की वजह से होता है. उन्होंने कहा,  ''अत्यधिक तापमान ट्रैक को मोड़ने या क्रैक करने का कारण बन सकता है. वेल्डिंग फेलियर भी होते हैं. हालांकि, असामाजिक तत्वों द्वारा जानबूझकर पटरियों को नुकसान पहुंचाना भारतीय रेलवे के सामने एक प्रमुख चुनौती है. पटरियों का प्रतिदिन दो बार मैन्युअल निरीक्षण किया जाता है. हालांकि, 24/7 पटरियों की निगरानी करने और वास्तविक समय में देखी गई किसी भी असामान्यता को रिपोर्ट करने के लिए सिस्टम विकसित करना संभव है और जरूरी भी है.''

आईआईटी कानपुर में मेकेनिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रोफसर नलिनाक्श एस व्यास, जो कि टीएमआईआर (टेक्नोलॉजी मिशन फॉर इंडिया रेलवे) के चेयरमैन भी रहे हैं, ने कहा , ''ऐसा लग रहा है कि इलेक्ट्रॉनिक और मैकेनिकल सिस्टम में कोई सिनक्रोनाइजेशन की कमी रह गई. जिस हिसाब से प्वाइंट सिस्टम काम करता है, उसे मेन लाइन से लूप लाइन पर पोजिशन बदलनी होती है या फिर इसके उलट काम करना होता है और इसी के साथ ही सिग्लनलिंग को भी काम करना होता है. ''

उन्होंने कहा, " वहां एक मैकेनिकल एक्शन हुआ, जिसमें मूल रूप से प्वाइंट को झुकाव से सीधे में बदलना था, और वहां मोटर की रोटेटिंग को इलेक्ट्रॉनिक क्रिया के साथ लूप से मेन तक जाना था. यह संभव है कि सिग्नल हरा दिखा हो, लेकिन प्वाइंट तब भी झुका रहा हो या आंशिक रूप से झुका रहा हो..यह एक दुर्लभ स्थिति है और रेल मंत्री इस मामले को समझने और इसकी जांच कराने की बात कि 'हादसा क्यों हुआ' करके ठीक कर रहे हैंं.

व्यास ने कहा कि प्रारंभिक कदम बता रहे हैं कि जांच सही दिशा में हो रही है. दक्षिण पूर्व रेलवे के रेलवे सुरक्षा आयुक्त (Commissioner of Railway Safety) पहले से ही इस मामले की जांच कर रहे हैं. मामले के जानकार लोगों ने कहा कि अधिकारियों ने कहा, ट्रैक प्रबंधन प्रणाली की विफलता, सिग्नल विफलताओं और अन्य संभावित कारणों जैसे मानव त्रुटि, मौसम के मुद्दों, संचार विफलता या अन्यथा मुद्दों पर जांच हो रही है.

रेलवे बोर्ड की सदस्य जया वर्मा सिन्हा ने रविवार को मीडिया से कहा था कि जिम्मेदार लोगों को पहचान लिया गया है और सिग्नल के लॉजिक में कोई कमी नहीं थी. सिन्हा ने कहा, माना जाता है कि ट्रैक मैनेजमेंट सिस्टम टैम्पर प्रूफ है, एरर प्रूफ है और साथ ही ये फेल-सेफ सिस्टम भी है क्योंकि यदि ये फेल हो जाता तब ट्रेन रुक जाती. उन्होंने कहा, हालांकि ऐसा अंदेशा है कि सिग्नलिंग सिस्टम के साथ छेड़छाड़ हुई हो. उनसे जब पूछा गया कि क्या रेलवे को किसी गड़बड़ी होने की आशंका है, तो उन्होंने कहा कि इसे नकारा नहीं जा सकता है. 

पूर्व रेल मंत्री दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि दुर्घटना के कारणों में तोड़फोड़ के एंगल को दरकिनार नहीं किया जा सकता. 

पटरियों पर सेंसर, ट्रैक विफलताओं को संबोधित करना महत्वपूर्ण है

प्रोफेसर व्यास ने कहा कि आगे के लिए यह जरूरी है कि रेलवे के 40000 किलोमीटर ट्रैक को सेंसर युक्त किया जाए ताकि आवागमन में किसी प्रकार की बाधा न आए और सभी रेलवे लाइन में कवच जैसे एंटी कोलिजन सिस्टम को लगाया जाए. यह अच्छा है कि सभी दृष्टिकोणों से जांच हो रही है. लूपलाइन वाले ट्रैक पर किसी प्रकार की मालगाड़ी ट्रेन के खड़े होने की सूचना होनी चाहिए थी. यह महत्वपूर्ण है कि बेंचमार्किंग, प्रमाणीकरण और ऐसी तकनीक सुगमता से लाने, जिस पर लाखों जीवन निर्भर हैं के निर्णय शीर्ष स्तर किए जाएं न कि कुछ व्यक्तियों या संगठनों के लिए नहीं छोड़ा दिया जाए. इस तरह के जरूरी फैसलों पर तेजी से काम किया जाए.

भारतीय रेलवे, डीआरडीओ और बीएचईएल परियोजनाओं के साथ काम कर चुके प्रोफेसर सिन्हा ने कहा कि कवच एक टक्कर रोधी प्रणाली (anti collision system) के रूप में ट्रेन चालक की ओर से मानवीय त्रुटि के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को रोकने के लिए एक अहम सिस्टम है. लेकिन, इसकी भी सीमाएं हैं और सिस्टम की विफलताओं के कारण होने वाली दुर्घटनाओं को नहीं रोका जा सकता.

उन्होंने कहा, "हालांकि, कवच प्लेटफॉर्म का उपयोग करने और अन्य परिदृश्यों के कारण दुर्घटनाओं को रोकने के लिए ओवरले या कहें नया सिस्टम को विकसित किया जा सकता है." 

पूर्व रेलवे इंजीनियर और सेवानिवृत्त आईआरएसई अधिकारी आलोक कुमार वर्मा ने कहा कि तकनीकी सुधार हमेशा आवश्यक होते हैं, लेकिन अभी इस पर ज्यादा केंद्रित होने की जरूरत नहीं. उन्होंने कहा, "अधिक बुनियादी चीजें जैसे उचित निरीक्षण और रखरखाव और सावधानीपूर्वक ट्रेन संचालन महत्वपूर्ण हैं."

"सभी संबंधित फील्ड अधिकारियों को पर्याप्त ट्रैफिक ब्लॉक और अन्य बैक अप सपोर्ट मिलना चाहिए जैसे निरीक्षण, कमियों को पहचानना और निदान और मरम्मत करने के लिए साइटों पर सामग्री और मैनपावर की आसान आवाजाही सुनिश्चित होनी चाहिए. स्टेशन मास्टर, ट्रेन पायलट, गार्ड, ट्रैकमैन, सिग्नलमैन आदि को पर्याप्त आराम मिलना चाहिए." "उन्होंने कहा, अपर्याप्त रखरखाव ही उपरोक्त समस्याओं का मूल कारण है, क्योंकि यहां हमारे ट्रंक मार्गों पर ज्यादा ट्रेनें हैं, जैसे बालासोर रूट जहां दुर्घटना हुई.

उन्होंने कहा, "इस समस्या का प्रभाव ट्रेनों के देर से चलने, ट्रेन संचालन में अव्यवस्था आदि पर पड़ता है. तकनीकी कौशल को वर्तमान जरूरतों के हिसाब से करना और अच्छे उपकरणों का प्रावधान भी जरूरी है."

प्रोफेसर सिन्हा ने कहा कि आगे के लिए जरूरी है कि रेल सुरक्षा पर ज्यादा से ज्यादा स्वदेशी रिसर्च और डेवलेपमेंट किया जाना चाहिए. वर्तमान सिस्टम ड्राइवर को यह बताता है कि वह आगे जा सकता है या नहीं. उसे मार्ग की स्थिति कैसी इस बारे में कोई सूचना नहीं होती है. आईआईएससी ने अपने एक स्टार्टअप (एल2एमरेल) के जरिए साइबर सिग्नलिंग सिस्टम तैयार किया जिसे पेटेंट भी कराया है. यह सिस्टम ड्राइवर को रियलटाइम सूचना देता है और उसके आसपास के बारे जानकारी तथा आगे का रास्ता कैसा है इस बारे में भी जानकारी देता है. कर्नाटक के बेल्लारी के तोरानागल्लू के जिंदल स्टील प्लांट में यह लगाया गया है. इस कॉन्सेप्ट को आगे डेवलप कर मेनलाइन ऑपरेशन में लाया जा सकता है. 

वसुधा वेणुगोपाल NDTV से राजनीतिक पत्रकार के रूप में जुड़ी हैं... वह राजनैतिक गतिविधियों, प्रशासन, लिंग और पहचान पर ज़्यादा लिखती हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.
 

Track Latest News Live on NDTV.com and get news updates from India and around the world

फॉलो करे:
Listen to the latest songs, only on JioSaavn.com