शरद शर्मा की खरी खरी: 'आप' की और एक गलती?

आम आदमी पार्टी नेताओं की फाइल फोटो

नई दिल्ली:

रविवार को ही आम आम आदमी पार्टी ने तीन सदस्यों की नई लोकपाल समिति गठित करके एडमिरल रामदास की छुट्टी कर दी थी। आम आदमी पार्टी ने जिस तरीके से अपने आंतरिक लोकपाल पूर्व एडमिरल रामदास की छुट्टी की उससे वो नाराज़ हैं।

एडमिरल रामदास ने एक बयान जारी करके कहा कि
1.  मैं निराश हूं कि पार्टी ने अपना फैसला बजाय पहले मुझे बताने के मीडिया में सार्वजनिक किया।
2. मैं हैरान भी हूं, क्योंकि दो हफ्ते पहले ही पार्टी ने मुझमें अपना भरोसा जताया था।
3. 15 फरवरी को केजरीवाल के घर एक अनौपचारिक मुलाकात में मुझसे अगले पांच साल तक लोकपाल बने रहने की गुजारिश की गई थी।

इस मुद्दे पर आम आदमी पार्टी के नेताओं ने सोमवार को चुप्पी साध ली, असल में पार्टी ने एक गैग ऑर्डर जारी करके इस मुद्दे पर किसी भी नेता को मीडिया से बात करने के लिए मनाही की है। पार्टी की इस चुप्पी से बहुत से सवाल खड़े होते हैं। खासतौर से उस बयान से जो पार्टी के वरिष्ठ नेता संजय सिंह ने रविवार को एनडीटीवी इंडिया से बातचीत के दौरान दिया था। संजय सिंह ने कहा था कि ''एडमिरल रामदास का कार्यकाल दिसंबर 2013 में ही खत्म हो गया था और नई नियुक्ति हमको करनी ही थी, हालांकि मैं मानता हूं कि इसमें कुछ देरी हुई है लेकिन ये तो तय ही था''

संजय सिंह के बयान से बहुत से गंभीर सवाल खड़े हो रहे हैं जैसे कि
1. नियुक्ति में देरी क्यों?- कार्यकाल खत्म होने के 15 महीने बाद तक नई नियुक्ति क्यों नहीं हुई? लोकपाल जैसे मुद्दे पर पार्टी इतनी गैर-जिम्मेदार कैसे हो सकती है जबकि इस पार्टी का मूल ही लोकपाल आंदोलन था। और फिर सवाल ये कि जब अपनी पार्टी के अंदर ये हाल है तो 'आप' दिल्ली में कब वो लोकपाल लाएगी, जैसा उसने वादा किया था।

2. लोकपाल क्यों कहते रहे उनको- पार्टी उन्हें लगातार आंतरिक लोकपाल क्यों कहती रही, ये सवाल इसलिए उठ रहा है क्योंकि हाल ही में जब एडमिरल रामदास का राष्ट्रीय कार्यकारिणी को लिखा एक खत लीक हुआ तो सबने उनको पार्टी का इंटरनल लोकपाल कहकर ही क्यों संबोधित किया? तब क्यों नहीं कहा गया कि ये अब पूर्व हो चुके हैं? यही नहीं पूरी की पूरी पार्टी उन 12 दागी उम्मीदवारों की जांच और फिर 10 उम्मीदवारों को क्लीन चिट का बखान इंटरनल लोकपाल एडमिरल रामदास के नाम से क्यों करती रही, जिन पर प्रशांत भूषण लगातार आपत्ति करते रहे? लगातार ये ही बताया गया कि 12 उम्मीदवारों पर आपत्ति थी, जिसकी जांच खुद पार्टी के इंटरनल लोकपाल ने की और उसके चलते ही पार्टी ने 2 उम्मीदवारों के टिकट काटे, जबकि 10 उम्मीदवारों को क्लीन चिट मिल गई और क्योंकि लोकपाल की जांच से बड़ा कुछ नहीं होता। इसलिए इस पर अब विवाद सहीं नहीं। जब वो लोकपाल थे ही नहीं तो उनके नाम से सर्टिफिकेट क्यों दिए पार्टी ने?

3. योगेंद्र-प्रशांत खेमे के करीबी होने की सज़ा?- योगेंद्र यादव-प्रशांत भूषण का खेमा चाहता था कि एडमिरल रामदास पार्टी की 28 मार्च की राष्ट्रीय परिषद की बैठक में आएं, जिससे ये संदेश साफ हुआ कि रामदास शायद इस खेमे के करीबी हैं। लेकिन पार्टी के सचिव पंकज गुप्ता ने एडमिरल रामदास को बैठक में आने के लिए मना कर दिया, जिससे संदेश गया कि केजरीवाल खेमा नहीं चाहता था कि वो आएं। हालांकि दलील ये दी गई कि रामदास क्योंकि ना राष्ट्रीय परिषद और ना पार्टी के सदस्य हैं इसलिए वो बैठक में शामिल नहीं हो सकते। लेकिन इस पर योगेंद्र यादव ने दावा किया कि अब तक रामदास हर ऐसी बैठक में आते रहे, तब तो ये किसी ने ना नहीं बोला? सही बात ये भी है अगर केजरीवाल खेमा चाहता तो रामदास को विशेष आमंत्रित सदस्य के तौर पर बैठक में बुलाया जा सकता था। आखिर जब पार्टी के विधायक और सांसद आ सकते हैं विशेष आमंत्रण से तो रामदास क्या नहीं? क्या उन पर योगेंद्र-प्रशांत खेमे का करीबी होने के चलते ये कार्रवाई हुई?

पार्टी की तकनीकी दलील कुछ भी हो पार्टी रामदास को लोकपाल बरकार तो रख ही सकती थी। जहां इतने समय से वो लोकपाल थे तो आगे लोकपाल होने पर क्या हो जाता? खासतौर से जब वो खुद अपनी सेवाएं देने के लिए उत्साहित दिख रहे हैं। और सही बात ये भी है कि मीडिया या पब्लिक में ऐसा कभी कुछ नहीं आया, जिससे लगे कि वो किसी एक व्यक्ति या गुट के करीबी थे। यहां तक कि उन्होंने अपनी एक बात हमेशा बनाए रखी और पूरे कार्यकाल में कभी मीडिया से बात नहीं की।

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पार्टी 'नेताओं' के पास या फिर 'सूत्रों' के पास सवालों के कोई जवाब नहीं हैं। ऐसा लगता है कि जैसे पार्टी और गलतियां कर रही है, वैसी ही एक और 'गलती' ये भी है। और यहां मेरा मतलब गलत तरीके से लिए गए दिखते फैसलों से है। फैसला आप जो भी करें पार्टी आप की है करते रहिए।