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This Article is From Jul 08, 2014

अखिलेश की कलम से : क्या पूरी होगी कुशाभाऊ ठाकरे की तलाश?

Akhilesh Sharma
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  • Updated:
    नवंबर 20, 2014 13:06 pm IST
    • Published On जुलाई 08, 2014 21:50 pm IST
    • Last Updated On नवंबर 20, 2014 13:06 pm IST

पचास साल के अमित अनिलचंद्र शाह कल बीजेपी के नए अध्यक्ष बन जाएंगे। पार्टी मुख्यालय पर दोपहर बारह बजे संसदीय बोर्ड की बैठक में उनके नाम पर मुहर लग जाएगी। उसके कुछ ही देर बाद उनके नाम का औपचारिक एलान भी कर दिया जाएगा। इस महीने के अंत या अगले महीने की शुरुआत में शाह अपनी नई टीम भी घोषित कर देंगे, जो ज़ाहिर है बेहद युवा होने जा रही है। ये एक बदली बीजेपी की तस्वीर होगी।

अमित शाह के नाम को हरी झंडी देते वक्त राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सोच ये रही है कि पार्टी के सत्ता में आने के बाद संगठन कहीं ढीला न पड़ जाए इसलिए इसे गतिशील बनाए रखने के लिए एक सक्रिय अध्यक्ष चाहिए। अमित शाह इस रोल में बिल्कुल फिट बैठते हैं, क्योंकि सिर्फ नौ महीनों में उत्तर प्रदेश में नरेंद्र मोदी के नाम के सहारे उन्होंने बीजेपी का अब तक का सबसे बेहतरीन प्रदर्शन करके दिखाया है। बीजेपी ने राज्य की 80 में से 71 सीटें अपने बूते और सहयोगी अपना दल के साथ 73 सीटें जीती हैं। उन्हें इसी का पारिश्रमिक मिलने जा रहा है।

पार्टी के कुछ नेताओं के मन में ये सवाल थे कि क्या गुजरात से ही प्रधानमंत्री और पार्टी अध्यक्ष का होना ठीक रहेगा? लेकिन बाद में ये तय किया गया कि सिर्फ इसलिए शाह की दावेदारी नज़रअंदाज़ करना ठीक नहीं होगा, क्योंकि वह और प्रधानमंत्री दोनों गुजरात से आते हैं।

ये सवाल भी पूछे गए कि शाह के खिलाफ सोहराबुद्दीन की फर्जी मुठभेड़ का मामला चल रहा है और ऐसे में क्या उन्हें बीजेपी अध्यक्ष बनाना ठीक होगा। लेकिन इसके जवाब में दलील दी गई कि पार्टी हमेशा से इस मामले को राजनीति से प्रेरित मानती रही है, लिहाज़ा इसका राजनीतिक असर नहीं होना चाहिए। कुछ नेताओं ने लाल कृष्ण आडवाणी का भी उदाहरण दिया, जिन्होंने हवाला कांड में नाम आने के बाद लोक सभा से इस्तीफा दे दिया था मगर पार्टी अध्यक्ष बने रहे थे।

अमित शाह को ये जिम्मेदारी देने के पीछे खास वजह उनकी तुरत फैसले करने की क्षमता, संगठन पर उनकी पकड़ और उनके पीछे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का खुल कर समर्थन होना माना जा रहा है। दरअसल, बीजेपी में ये माना जाता रहा है कि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के वक्त कुछ ऐसे अध्यक्ष रहे जो अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतर सके। इसके लिए खासतौर से बंगारू लक्ष्मण और के जनाकृष्णमूर्ति का नाम लिया जाता है। लेकिन इस बात पर आम राय है कि कुशाभाऊ ठाकरे जैसे कद्दावर नेता के अध्यक्ष रहते समय न सिर्फ संगठन ने गति पकड़ी बल्कि सरकार के कामकाज पर भी तीखी नज़रें लगी रहीं।

‘निष्काम कर्मयोगी’ के नाम से मशहूर ठाकरे को सख्त, अनुशासनप्रिय और संगठन पर पकड़ बना कर रखने वाले अध्यक्ष के रूप में याद रखा जाता है। कुछ मसलों पर पार्टी अध्यक्ष रहते हुए उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी से भी सवाल-जवाब किए थे। अब जबकि बीजेपी अपने बूते पर बहुमत पाकर केंद्र में सत्तारूढ़ हुई है, सवाल यह रहा था कि पार्टी को कैसा अध्यक्ष चाहिए। इसीलिए अमित शाह के कामकाज पर सबकी नज़रें लगी रहेंगी।

इस बात की पूरी संभावना है कि बीजेपी अगला लोकसभा चुनाव भी उन्हीं की अगुवाई में लड़ेगी। अगले कुछ महीनों में होने जा रहे महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के विधानसभा चुनावों के नतीजे उनकी सफल रणनीतिकार की छवि की अगली परीक्षा होंगे। साथ ही ये भी देखा जाता रहेगा कि सरकार और संगठन में तालमेल बिठा पाने में वह किस हद तक कामयाब हो पाएंगे। सवाल ये भी है कि क्या अमित शाह के रूप में बीजेपी की अगले कुशाभाऊ ठाकरे की तलाश पूरी हो पाएगी?

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