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This Article is From Feb 04, 2015

सर्वप्रिया सांगवान की कलम से : 'आप' का झोल या अवाम का?

Sarvapriya Sangwan
  • Blogs,
  • Updated:
    फ़रवरी 04, 2015 13:59 pm IST
    • Published On फ़रवरी 04, 2015 09:00 am IST
    • Last Updated On फ़रवरी 04, 2015 13:59 pm IST

अवाम एक ग्रुप है, जो पिछले साल आम आदमी पार्टी से विमुख हुए कार्यकर्ताओं ने बनाया था। चुनाव से ठीक चार दिन पहले अवाम ने आम आदमी पार्टी के खिलाफ खुलासे जैसा कुछ कर के सनसनी फैलाने की कोशिश की है।

अवाम का आरोप है कि आम आदमी पार्टी के खाते में पिछले साल अप्रैल माह में 50-50 लाख के चार चेक जमा हुए। जिन चार कंपनियों ने ये चेक चंदे के रूप में दिए, दरअसल वे कंपनियां बोगस हैं। ये कंपनियां 'ब्लैक मनी' को 'व्हाइट मनी' बनाने का काम कर रही हैं। अवाम ने खुद भी प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन कंपनियों के दो चेक दिखाए, जिन पर कोई तारीख नहीं थी।

इससे आम आदमी पार्टी के खिलाफ क्या सिद्ध होता है? अवाम साबित करना चाहती है कि आम आदमी पार्टी अपने काले धन को चेक में तब्दील करवाकर सफ़ेद दिखाना चाहती है, लेकिन अवाम खुद अपने सवालों में फंसती नज़र आ रही है। प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब उनसे पूछा गया कि इन कंपनियों के डायरेक्टर कौन लोग हैं तो इस सवाल को ये कहकर टाल दिया कि हम सुरक्षा कारणों की वजह से नाम नहीं बता सकते। जब उनसे पूछा गया कि इन कंपनियों ने आपको बिना तारीख डाले चेक कैसे दे दिए तो इसका भी जवाब उनसे नहीं देते बना। अवाम की मंशा यहीं से संदिग्ध हो जाती है।

यह सच है कि इन कंपनियों के पते फ़र्ज़ी हैं, लेकिन ये कंपनियां रजिस्टर्ड हैं, इनके पास बैंक अकाउंट है और पैन नंबर भी। इनके बिज़नेस और घाटे-मुनाफे के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है। आम आदमी पार्टी ने एहतियात नहीं बरती, लेकिन सवाल ये भी है कि एहतियात किस हद तक बरती जाए। अगर पार्टी के पास चंदा आता है तो ज़्यादा से ज़्यादा उसकी बैंक संबंधित जानकारियां ही देखी जा सकती हैं और जिसे आम आदमी पार्टी ने देखा भी।

हालांकि एक बार के लिए इतनी बड़ी रकम चंदे में आई देख कर आम आदमी पार्टी के मन में जिज्ञासा ज़रूर पैदा होनी चाहिए थी कि आखिर कौन उन पर इतना मेहरबान है। आम आदमी पार्टी ने अब तक तकरीबन 20 करोड़ रुपये ही इकट्ठे किए हैं और ज़ाहिर है इन 2 करोड़ रुपयों का भी इसमें बड़ा योगदान है, लेकिन कानूनी रूप से इस मामले पर आम आदमी पार्टी के खिलाफ कोई केस नहीं बनता है। अगर सवाल मंशा पर उठ रहे हैं तो उसके तर्क में आम आदमी पार्टी का जवाब ये है कि अगर ये काला धन ही होता तो उसे चेक में तब्दील करवा कर उसकी जानकारी वेबसाइट पर क्यों डालते।

आखिर इसकी जानकारी विरोधियोँ को आम आदमी पार्टी की वेबसाइट से ही मिली है। इन आरोपों को बीजेपी ने भी अपने पक्ष में खूब भुनाने की कोशिश की। लेकिन बीजेपी ने भी पक्की तैयारी नहीं की थी। सोमवार को हुई अपनी प्रेस कांफ्रेंस में कई बेतुके सवाल उठाती नज़र आई। मसलन, कैसे 4 चेक रात के 12 बजे एक साथ जमा हुए? योगेन्द्र यादव ने अपने जवाब में कहा कि बीजेपी इसे बड़ा खुफिया रंग दे रही है, लेकिन वेबसाइट पर जानकारी बैंक नहीं, पार्टी अपलोड करती है। इस बात में सच्चाई भी है, क्योंकि रात के 12 बजे बैंक नहीं खुले होते। सोशल मीडिया पर एक स्टिंग भी घूम रहा है, जहां अवाम के सदस्य किसी की हवा उतारने की साज़िश रचते नज़र आ रहे हैं हालांकि स्टिंग कितना सही है इसकी पुष्टि पत्रकार नहीं कर सकते।

खबर ये भी है कि अवाम के सदस्यों का संबंध भाजपा से है और आम आदमी पार्टी के साथ-साथ कांग्रेस का भी मानना है कि ये भाजपा की कोई 'डर्टी ट्रिक' है। आम आदमी पार्टी ने जब कहा कि वह सभी पार्टियों के फंड की जांच के लिए कोर्ट में अपील करेंगे तब भाजपा के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने हास्यास्पद बयान दिया कि इस गन्दी राजनीति में माननीय कोर्ट को न घसीटा जाए। सवाल ये है कि अरुण जेटली किसकी गंदी राजनीति की तरफ इशारा कर रहे थे?

इन आरोपों का नुकसान आम आदमी पार्टी को हो सकता था अगर बाकी राजनैतिक पार्टियों ने अपने चंदों का हिसाब सार्वजनिक किया हुआ होता, लेकिन इस वक़्त भाजपा और नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्लाह भी ये बात साबित करने पर आमदा हैं कि आम आदमी पार्टी अलग नहीं, बल्कि उनके जैसी ही एक पार्टी है। आखिर इसकी जांच क्यों ना हो कि ये कंपनियां फर्जी पतों पर रजिस्टर्ड कैसे हुईं? इनके मालिकों का नाम सार्वजनिक क्यों नहीं होना चाहिए, आखिर आरोपों के अनुसार, ये कंपनियां ही काले धन को सफेद करती हैं। भाजपा ने केंद्र में अपनी सरकार होते हुए भी जांच के आदेश क्यों नहीं दिए? कुल मिलाकर भाजपा और अवाम की ये चाल भी फ्लॉप साबित होती दिख रही है।

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