आज श्रीनगर में हमारा तीसरा दिन था। पहलगांव जाना था। टीवी पर देखा तो कश्मीर बंद की ख़बरें चल रही थीं। अलगावादियों ने मसर्रत आलम की गिरफ्तारी के खिलाफ बंद का ऐलान किया था। आबिद साढ़े नौ बजे अपनी टवेरा के साथ हाजिर था। आबिद पर भरोसा करने के सिवाय अब कोई रास्ता भी नहीं था।
श्रीनगर की दुकानें बंद थीं, लेकिन सड़कों पर चहल पहल पहले जैसी ही थी। मगर तनाव भी दिख रहा था। आज ज़्यादा संख्या में सुरक्षा कर्मी नज़र आ रहे थे।
"लगता है बंद का असर नहीं हुआ है।"
"देखा नहीं, सारी दुकानें बंद हैं।" हमारे सवाल से आबिद जरा परेशान नज़र आया।
"लेकिन गाड़ियां तो चल रही हैं?"
"अपनी रिस्क पर चल रही हैं। टूरिस्ट गाड़ियां ही चल रही हैं।"
श्रीनगर से पहलगांव करीब 90 किलोमीटर है। दूसरी दिशा से सेना के ट्रकों का काफ़िला चला आ रहा था। श्रीनगर के बाहर है बादामी बाग। सेना का बहुत बड़ा कैंट। ये घाटी में सेना का सबसे बड़ा एरिया है। ये जम्मू-कश्मीर में सेना की सप्लाई और सपोर्ट का सबसे बड़ा बेस है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी पिछले साल यहां आए थे जवानों का हौसला बढ़ाने के लिए।
स्कूली बच्चों की बहुत ही ख़ूबसूरत टोली नज़र आयी। लड़कियों ने बड़े करीने से सर पर सफेद स्कार्फ बांध रखा था।
"यहां तो स्कूल खुले हुए हैं। बंद का असर सिर्फ़ श्रीनगर में ही जान पड़ता है।" "ये सेना का एरिया है। ये सेना के स्कूल हैं। इसलिए खुले हुए हैं।" आबिद बार-बार हमें ये समझाना चाह रहा था कि बंद का असर पूरे कश्मीर में है।
सेब के अलावा कश्मीर की अर्थव्यवस्था में सैफ़रन यानी केसर का बड़ा योगदान है। केसर दुनिया का सबसे महंगा मसाला है। करीब 2 लाख रुपये प्रति किलो। सोने की कीमत से आधी ही। पहलगांव जाने के रास्ते में पैंपोर पड़ता है। स्पेन और ईरान के अलावा यहीं सबसे ज्यादा केसर होते हैं। कश्मीर का केसर दुनिया में सबसे अच्छा माना जाता है। यहां सड़क के दोनों ओर केसर के खेत और खेत के सामने दूकानें हैं। बैगनी फ़ूलों से केसर के खेत बहुत सुंदर लग रहे थे। आबिद ने बताया था कि यहां असली केसर मिलता है। सरकार यहां हमेशा छापा मारती रहती है। इसलिए ये नकली चीजें नहीं रखते। हमने उसे बताया था कि कैसे हमें पिछली बार किसी हिल स्टेशन पर किसी ने नकली केसर दे दिया था। आबिद ने एक दुकान पर गाड़ी रोकी। हमने केसर, कहवा और कुछ ड्राइ फ्रुट्स खरीदे। कुछ अपने लिए कुछ रिश्तेदारों के लिए।
आबिद सोनू निगम का बड़ा फ़ैन जान पड़ता था। हर समय उसकी कार में सोनू निगम के गाने बजते रहते थे। इस बीच भाई का फ़ोन आया। मसर्रत की गिरफ़्तारी के विरोध में श्रीनगर में पत्थरबाज़ी हुई थी। पुलिस की गोली से एक छात्र की मौत भी हो गई थी। डर लगा। यह ख़बर आबिद को नहीं बताई, लेकिन थोड़ी देर बाद उसके फ़ोन पर भी खबर आ गई।
"श्रीनगर में गोली चल गई है। एक लड़का मर गया है। मेरे घर से फ़ोन आया था। घरवाले परेशान थे", आबिद ने हमें बताया।
"मुफ़्ती ने मोदी से समझौता कर बहुत गलत किया है। ये सरकार चलेगी नहीं।" "कांग्रेस की सरकार अच्छी थी। पत्थरबाजी होने पर कांग्रेस सरकार तुरंत कर्फ्यू लगा देती थी। इससे लोग कम मरते थे।"
आबिद का कहना था कि वो हमें नेशनल हाइवे से ले जा रहा है। शॉर्ट कट रास्ते में बस्ती और आबादी है। वहां पत्थरबाज़ी का डर रहता है।
"पत्थररबाज़ी के चपेट में गाड़ी का शीशा टूट जाता है। जितनी कमाई नहीं होती, उससे ज़्यादा नुकसान हो जाता है।" (जारी है)
This Article is From May 25, 2015
संजय किशोर की कश्मीर डायरी-9 : अलगाववादियों का बंद, मौत और हमारा डर
Sanjay Kishore
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Updated:मई 25, 2015 17:21 pm IST
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Published On मई 25, 2015 16:23 pm IST
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Last Updated On मई 25, 2015 17:21 pm IST
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