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This Article is From Feb 17, 2018

'दुनिया रखूं जूतों के नीचे' वाले विराट कोहली... 'व्हॉट अ गाई!'

Sanjay Kishore
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 17, 2018 21:57 pm IST
    • Published On फ़रवरी 17, 2018 21:18 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 17, 2018 21:57 pm IST
'व्हॉट अ गाई!' शतक दर शतक के बाद हीरोइन हैरान थी. जवाब में ऐतिहासिक जीत के बाद हीरो ने दुनिया के सामने एक बार फिर अपने इश्क़ का इज़हार कर दिया... “यह दौरा काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. मैदान के बाहर के लोगों को इसका श्रेय मिलना चाहिए. मेरी पत्नी मुझे लगातार प्रेरित करती रहती है उसे भी काफी श्रेय दिया जाना चाहिए.”

देश की सबसे हॉट जोड़ी का बेबाक़ और बिंदास अंदाज पसंद आ रहा है. प्यार अनुष्का हैं तो प्रतिबद्धता क्रिकेट. दोनों में सामंजस्य और संतुलन विराट कोहली को कामयाब बना रही है. इटली में सात फेरे भी शायद इसलिए जल्दी लगा लिए ताकि भटकाव न हो- मन का भी और लक्ष्य का भी. एक खिलाड़ी के पास समय ज़्यादा नहीं होता. रोमांस की लंबी गलियों में भावनाएं भटकती हैं. जज़्बात के तूफ़ान में लक्ष्य की ओर बढ़ना कई बार मुश्किल हो जाता है.

मन और लक्ष्य की एकाग्रता बन गयी तो जीतना तो था ही. जीत के लिए इतनी भूख पहले किसी में नहीं दिखी थी. जीत के लिए जोखिम लेने का साहस भी सब में नहीं होता. ख़ुद के प्रदर्शन से टीम के सामने मिसाल रखने में हर कप्तान कामयाब नहीं हो पाता.

किसी दौर को महानता की तलाश थी. सचिन तेंदुलकर मिले. आज समय अलग है. देश वर्चस्व क़ायम करना चाहता है. कोहली की बढ़ती विराटता में वर्चस्वता की उम्मीदें हैं. लिहाज़ा सवा सौ करोड़ ख़्वाहिशें अंगड़ाइयां ले रही हैं. आज ज़माने को विनम्र नायक से ज़्यादा, विजेता चाहिए जो भले ही थोड़ा दंभी क्यों न हो.

“दुनिया रखूं जूतों के नीचे” वाले विराट कोहली के तेवर टीम को सफलता दिला रहे हैं तो इसमें हर्ज कैसा! जीत के लिए जज़्बा है तभी तो जज़्बाती हैं. मैच रोकने पर रेफ़री रूम में पहुंच कर मानो सर्जिकल स्ट्राइक कर डाली. दबाव अगले टेस्ट में काम आया. वरना शायद आखिरी टेस्ट के पांचवें और निर्णायक दिन ख़राब पिच का हवाला देते हुए मैच रद्द भी हो सकता था और जोहानिसबर्ग की जीत कसक बन कर टीस देती रहती.

लगातार पहले दो टेस्ट हारने के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में दक्षिण अफ़्रीकी पत्रकार के सवाल पर सवाल दागना, “आप बताइए सर दक्षिण अफ्रीका भारत में कितनी बार जीता है?” आज कितना सटीक जवाब बन गया है. स्टंप माइक्रोफ़ोन पर रिकॉर्डेड विरोधी बल्लेबाज़ की ‘...फाड़ने’ के लिए गेंदबाज़ को उकसाते कोहली पर कभी-कभी दिल्ली का छोरा हावी हो जाता है. दिल्ली के छोरे का माथा ठनकता है तो दुश्मन की खैर नहीं होती.

सबसे अच्छी बात है कि दूसरे क्रिकेटर के उलट विराट कोहली का ग़ुस्सा अमूमन उन पर सकारात्मक असर डालता है. उनकी बल्लेबाज़ी पर भी और कप्तानी पर भी. ग़ुस्से के साथ जीत के लिए ज़िद भी बढ़ती जाती है. वैसे पहले से वे परिपक्व भी हुए हैं. अब उनकी आक्रामकता नियंत्रित है. ‘कंट्रोल्ड एग्रेसन’ जिसे कहते हैं.

आक्रमकता और असीमित प्रतिभा से भी एक और बड़ी चीज़ है जो उन्हें मौजूदा दौर का सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ बना रही है. वो है उनकी सोच. सोच नहीं तो समझदारी नहीं. समझदारी नहीं तो सफलता नहीं. प्रेस कॉन्फ़्रेंस में उनके जवाब पर ग़ौर कीजिएगा. पहले के कप्तानों की तरह वे सवालों के जवाब टालते नहीं. लटपटाते नहीं. हर जवाब में उनकी सोच और संजीदगी झलकती है. उनके जवाब से आपको अंदाज़ा हो जाता है कि इस शख़्स का अपना ‘विजन’ है. एक दृष्टि और नज़रिया है. इसने अपना होमवर्क किया है और अपनी योजना बना कर तैयार है. केपटाउन में खेले गए सीरीज़ के पहले टेस्ट के सबसे कामयाब गेंदबाज़ भुवनेश्वर कुमार को अगले मैच में नहीं खेलाया. ये एक सोच से बनी रणनीति थी कि सेंचुरियन की पिच पर ईशांत शर्मा बेहतर साबित हो सकते हैं. ये निर्णय एक नज़रिए से आयी. ये अलग बात है कि ईशांत रणनीति को अमली जामा नहीं पहना पाए और कोहली की किरकिरी करा दी.

एक और पहलू जो विराट कोहली के पक्ष में जाती है वो है टीम में सिर्फ खिलाड़ी हैं, स्टार कोई नहीं. मो अज़हरुद्दीन के स्टारडम और असहयोग ने बहुत हद तक सचिन तेंदुलकर को सफल कप्तान नहीं बनने दिया. महेंद्र सिंह धोनी जब कप्तान बने तो टीम में खिलाड़ी कम स्टार ज़्यादा थे. जिन खिलाड़ियों को लगता था कि धोनी की जगह उन्हें कप्तान होना चाहिए था, वे फ़ील्ड पर धोनी की बात को अनसुना करने लगे. शातिर खिलाड़ी धोनी को समझते देर नहीं लगी. उस समय बीसीसीआई में जिनका दबदबा था वे धोनी को पसंद करते थे. लिहाज़ा धीरे-धीरे सभी ‘अंडर परफ़ॉर्मर’ बाहर होते गए.

विराट कोहली अपना ग़ुस्सा नाक पर जरूर रखते हैं लेकिन अहं नहीं पालते. अगर ‘इगो’ बड़ा होता तो वनडे और T20 में कप्तानी के फ़ैसले धोनी पर नहीं छोड़ते. इन दो फ़ॉर्मेट में महेंद्र सिंह धोनी ही कप्तानी कर रहे होते हैं.

सचिन तेंदुलकर की तरह विराट कोहली महान नहीं कहे जाएंगे लेकिन वे सबसे बड़े मैच जिताऊ खिलाड़ी के रूप में पहचाने जाएंगे. बल्ला टांगने के पहले तेंदुलकर के हर रिकॉर्ड पर अपना नाम दर्ज करा चुके होंगे. वक़्त उनके पास कम जरूर है लेकिन अपने फ़िटनेस पर वे जितना ध्यान देते हैं, नामुमकिन कुछ भी नहीं.


संजय किशोर एनडीटीवी के खेल विभाग में डिप्टी एडिटर हैं...

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