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This Article is From Apr 12, 2020

नगदी मदद देने में खामियों से बचने के लिए "ओडिशा मॉडल" बेहतर विकल्प

Reetika Khera
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 12, 2020 21:22 pm IST
    • Published On अप्रैल 12, 2020 21:21 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 12, 2020 21:22 pm IST

दो दिन पहले एक महिला अपने जन धन योजना खाते से 500 रुपये की राहत राशि निकालने के लिए पहुंची और उसे सोशल डिस्टेंसिंग का नियम तोड़ने पर हिरासत में ले लिया गया. इसके अलावा भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई सहित अन्य स्थानों से यह भी रिपोर्टें हैं कि बैंकों को भीड़ नियंत्रित करने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.     

कैश ट्रांसफर के रूप में राहत देने से संबंधित यह सिर्फ एक दिक्कत है. फिर भी, कई अर्थशास्त्री और टिप्पणीकार नकद हस्तांतरण (अन्य राहत उपायों के साथ) करने के लिए सामूहिक-वकालत कर रहे हैं. इसके कार्यान्वयन के मुद्दों को लेकर किसी ने भी अनुमान नहीं लगाया है.

ऐसे समय में जब असंगठित सेक्टर में लाखों लोगों की आय बंद हो चुकी है, नकद समर्थन दिया जाना आवश्यक है. फिर भी, एक राहत रणनीति, जो नकदी पर बहुत अधिक निर्भर करती है, उद्देश्य की पूर्ति नहीं करेगी.


सिर्फ पैसा ही नहीं 

सप्लाई चेन में बाधा, ऑनलाइन शॉपिंग करने वालों में घबराहट की खबरें भी आ रही हैं. जमाखोरी और मूल्य वृद्धि भी सामने आई है. मूल्य मुद्रास्फीति को लेकर अभी तक विस्तृत रिपोर्ट नहीं आई है, हालांकि वास्तव में आने वाले हफ्तों में इसकी संभावना है.

ऐसे हालात में मुद्रास्फीति नकद हस्तांतरण का मूल्य मिटा सकती है. यह एक कारण है कि कैश ट्रांसफर की जगह फूड ट्रांसफर का विकल्प होना चाहिए. राशन कार्ड वालों के लिए कुछ राहत की घोषणा पहले ही की जा चुकी है, लेकिन इससे बाद भी एक तिहाई आबादी रह जाती है, जिसके कुछ हिस्से को खाद्य सहायता की सख्त जरूरत है.

पीडीएस से हटकर, बेहतर संचार और आवश्यक वस्तुओं और सेवाओं को लेकर आपूर्तिकर्ताओं और खरीदारों की सुरक्षा देने की जरूरत है. पूर्व में जब प्याज और दालों की कीमतें आसमान पर थीं, केंद्र और राज्य सरकार ने इसकी नियंत्रित कीमतों पर आपूर्ति की थी. अब यह कहने की जरूरत है कि दिल्ली में सफ़ल के माध्यम से, बैंगलोर में होपकॉम के जरिए यह हो सका. अधिक खाद्यान्न जारी करने के साथ, ऐसे उपाय सुनिश्चित किए जा सकते हैं कि नकद ट्रांसफर सार्थक रहे.

नकद निकासी
लोग कैसे निकालेंगे कैश? डिजिटल भुगतान को लेकर सभी तरह करे प्रचार और इसमें तेजी के बावजूद ग्रामीण आबादी में इसके उपयोग के आंकड़े निराश करने वाले हैं. ग्लोबल फाइनेंशियल इन्क्लूजन इंडेक्स 2017 के अनुसार, ग्रामीण क्षेत्रों में सिर्फ एक चौथाई से अधिक युवा वयस्कों (15 वर्ष से अधिक आयु) के पास डेबिट कार्ड थे या उन्होंने डिजिटल भुगतान का उपयोग किया था. केवल 4% ने अपने खातों के लिए मोबाइल या इंटरनेट का उपयोग किया. सिर्फ एक प्रतिशत के पास मोबाइल अकाउंट था.

ग्रामीण क्षेत्रों में लोग मुख्य रूप से बैंक शाखा से नकदी निकालने पर भरोसा करते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक शाखाओं का घनत्व शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम है. लोगों के आवागमन पर रोक लगी हुई है. ग्रामीण इलाकों में विशेषकर पुलिस द्वारा उत्पीड़न की आशंका के साथ सार्वजनिक परिवहन की कमी है. इसका मतलब है कि लोगों के लिए अपनी बैंक शाखाओं तक पहुंचना और भी कठिन है.

आम तौर पर सामान्य समय में ही बैंक शाखाओं में अत्यधिक भीड़भाड़ होती है, औपचारिक या अनौपचारिक लॉकडाउन के दौरान बैंक शाखाएं कम क्षमता से काम कर रही हैं. शुरुआती रिपोर्टों से पता चलता है यदि बड़े पैमाने पर नकद हस्तांतरण किए जाते हैं तो बैंक वॉल्यूम को संभालने में सक्षम नहीं होंगे. बैंक काउंटर के माध्यम से नकद निकालना तुच्छ नहीं है - यह सोचें कि आखिरी बार जब आप अपनी बैंक शाखा में जाने के बाद खुश थे. और ग्रामीणों को तो वहां बहुत अधिक धक्के खाने पड़ जाते हैं.

हाल के दिनों में बैंकों पर 'बैंकिंग करस्पॉन्डेंटों' (बीसी) के माध्यम से कुछ दबाव कम किया गया है. वे लोगों के घरों तक जाकर नकदी जमा करते हैं और अक्सर अंतिम प्रमाणीकरण के लिए बायोमेट्रिक्स का उपयोग करते हैं. (कभी-कभी, वे अनधिकृत 'सुविधा' शुल्क लेते हैं, लेकिन हमें फिलहाल इसे अनदेखा करना चाहिए.) वायरस संक्रमण के इस समय में बायोमेट्रिक्स का उपयोग करना जोखिम भरा है. बैंक अधिकारियों की तरह ही बीसी के भीड़ भरे स्थानों पर जाने और भुगतानों को प्रमाणित करने के लिए बायोमेट्रिक्स का उपयोग करने पर परेशान होने की संभावना है.

आखिरकार बैंकिंग प्रणाली में, विशेष रूप से आधार पेमेंट ब्रिज सिस्टम में, हाल ही हुए कुछ 'इनोवेशन' ने गलत भुगतान, अस्वीकृत भुगतान, विफल भुगतान आदि जैसी समस्याओं को दूर कर दिया है.
 

ओडिशा मॉडल
इन कारणों से कम से कम संकट की अवधि के लिए, बड़े पैमाने पर नकद भुगतान के लिए कैश-इन-हैंड की व्यवस्था पर वापस जाना उचित हो सकता है. ओडिशा की पेंशन भुगतान व्यवस्था एक आजमाया हुआ और लोकप्रिय विकल्प है. केंद्र के दबाव के बावजूद, ओडिशा सरकार ने अपने बैंक और डाकघरों की शाखाओं की सीमित पहुंच और क्षमता को जानते हुए पेंशन का भुगतान नकदी के रूप में जारी रखा.

यह इस तरह से काम करता है: हर महीने की 15 तारीख को, पंचायत सचिव ग्राम पंचायत कार्यालय में जाता है और अक्सर किसी खुली जगह में एक डेस्क बनाता है. सभी बुजुर्ग, विधवा, एकल महिलाएं और विकलांग व्यक्ति ग्राम पंचायत में एकत्रित होते हैं. पंचायत सचिव पेंशन रजिस्टर में सूचीबद्ध नामों को पुकारते हैं. पेंशनधारक आगे आते हैं, हस्ताक्षर करते हैं या रजिस्टर में अपना अंगूठा लगाते हैं. वह उन्हें उनकी पेंशन (500 रुपये प्रति माह, जिसमें से 200 रुपये केंद्र सरकार से आता है) देते हैं, और काम हो जाता है.

भ्रष्टाचार के बारे में क्या? नकद वितरण के कारण भ्रष्टाचार की आशंका बनी रहती है. दरअसल, भ्रष्टाचार एक गंभीर मुद्दा रहा है. इस दिशा में ओडिशा मॉडल दो तरह से सुरक्षा प्रदान करता है: एक, क्योंकि नकदी का वितरण सार्वजनिक स्थान पर किया जाता है, इसलिए इतने सारे लोगों की मौजूदगी में पंचायत सचिव का किसी को कम भुगतान करना आसान नहीं होता. दूसरा, परिवारों में जागरूकता आई है और साक्षरता का स्तर बढ़ा है. यह दोनों ही भ्रष्टाचार के खिलाफ मजबूत देते हैं.

नकदी भुगतान करते समय भीड़ को कम करने के लिए राज्य सरकारें संबंधित क्षेत्र का आकार कम कर सकती हैं. उदाहरण के लिए, आंगनवाड़ियों में नकदी का वितरण किया जा सकता है ताकि कम लोग इकट्ठे हों. आंगनवाड़ी कार्यकर्ता, सरपंच, पंचायत सचिव आदि का एक कॉम्बिनेशन बनाकर पर्याप्त जांच के साथ भुगतान की व्यवस्था सुनिश्चित की जा सकती है. 

इस चर्चा में अभी भी बड़े सवाल 'कौन' और 'कितना' हैं, जो कि अनुत्तरित छूट रहे हैं. सरकार की पहली घोषणा के मुताबिक महिला जन धन योजना खाताधारकों (जो गरीबों के बजाय मध्यम वर्गीय हैं) को बहुत कम (तीन महीने के लिए 500 रुपये) दिया जा रहा है.

अब लॉकडाउन बढ़ने के साथ और अधिक राहत की घोषणा तुरंत की जानी चाहिए. इस घोषणा के तहत राशन कार्ड के बिना एफसीआई के बड़े खाद्य भंडार से खाद्यान्न जारी करना शुरू करना चाहिए. और यह सबसे अधिक गरीब लोगों के लिए अधिक नकदी राहत के साथ अतिरक्त होना चाहिए.

(रितिका खेड़ा आईआईएम अहमदाबाद में अध्यापन करती हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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