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This Article is From Jan 28, 2017

ईमानदारी का ठेका 'आप' सरकार के पास, सवाल पूछना मना है

Ravish Ranjan Shukla
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 28, 2017 13:59 pm IST
    • Published On जनवरी 28, 2017 13:35 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 28, 2017 13:59 pm IST
एमसीडी में भ्रष्टाचार हो सकता है इसमें कोई दो राय नहीं है. पेंशन घोटाला, टोल टैक्स में घोटाला जैसी कई खबर इस पर हुई भी है. लेकिन अभी दिल्ली सरकार के मंत्री कपिल मिश्रा ने ऑडिट रिपोर्ट के आधार पर एमसीडी पर गंभीर आरोप लगाए हैं. उन्हें लगाना भी चाहिए लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियों को पूरे तथ्य के आधार पर सरकारी संस्थाओं और सरकार की कमी बताने और इसका सियासी फायदा उठाने में कोई हर्ज नहीं है. लेकिन अगर दिल्ली सरकार पर आई ऑडिट रिपोर्ट पर कार्रवाई करके फिर मंत्री जी एमसीडी की लानत मलानत करते तो एक नज़ीर बनाते लेकिन अभी मेरे सामने सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण विभाग की ऑडिट रिपोर्ट आई जिसका ऑडिट खुद दिल्ली ऑडिट विभाग ने किया है. भाई उस पर आजतक कोई कार्रवाई नहीं हुई.

ऑडिट रिपोर्ट के कुछ अंश इस प्रकार हैं...  
  •  एक ही एजेंसी को 1 करोड़ 16 लाख का बोट का ठेका बिना ईं-टेंडरिंग या अखबार में विज्ञापन दिए किया गया.
  • 15 लाख रुपये की लोकल स्टेशनरी खरीद ली गई, लेकिन जब ऑडिट रिपोर्ट ने खरीददारी के कागज मांगे तो वो नदारद.
  •  यमुना नदी का सर्वे करने के नाम पर एक एजेंसी को करीब 40 लाख रुपये का ठेका दिया गया लेकिन न इन्कम टैक्स काटा न ही लेबर सेस.
  • यही नहीं, 2013 में सर्वे का ठेका दिया गया. 2014 में पूरा हुआ लेकिन इसका भुगतान 2016 में हुआ. ऑडिट में कहा गया है कि सर्वे एजेंसी को भुगतान देने में गड़बड़ी की संभावना है.

हालांकि ये विभाग गोपाल राय के पास हैं और ये ऑडिट रिपोर्ट सिर्फ एक डिवीजन की है.

इसी तरह अगर कोई पूछे कि दिल्ली वालों के टैक्स के पैसे से दिल्ली, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, पंजाब और गोवा के लोगों में सोशल मीडिया पर प्रचार के नाम पर डेढ़ करोड़ क्यों फूंके गए. महज छह दिन के भीतर दिल्ली सरकार ने फेसबुक, ट्विटर और यूट्यूब पर आधिकारिक प्रचार करने के नाम पर डेढ़ करोड़ रुपये का भुगतान एक पीआर एजेंसी को किया.

aap govt audit report

पिछले साल फेसबुक के हर क्लिक पर दिल्ली सरकार ने 3 से 6 रुपये पीआर एजेंसी को दिए यानि छह दिन में करीब 60 लाख भुगतान किया गया. 14 जुलाई से 17 जुलाई के बीच यूट्यूब पर 25 लाख खर्च किए गए. जबकि चार दिन में गूगल डिस्प्ले पर 20 लाख खर्च कर दिए गए.

यानि क्लिक आप करें पैसा प्राइवेट कंपनी के पीआर एजेंसी को सरकार दे. लेकिन जैसे ही आप ये पूछेंगे तो जवाब में कहा जाएगा, केंद्र सरकार से लेकर फलां सरकार भी तो इस तरह का पैसा खर्च करती है. सवाल ये उठता है कि जब दूसरी पार्टी के फिजूलखर्ची को मानक बनाकर आप अपने इस खर्च को जायज ठहराएंगे, तो राजनीति करने नहीं, राजनीति बदलने आए हैं, का ढकोसला छोड़ देना चाहिए. हालांकि नाना प्रकार की सरकारों की पीठ थपथपाने वालों को अब भी लगता है कि ये ईमानदार एनजीओ है, जहां राजनीति के नाम पर ईमानदारी और शुचिता की नदियां बह रही है.
 
 
aap govt audit report

लेकिन महान पार्टी के ढपलीबाजों का सवाल तो ईमानदार हो जाता है लेकिन हमारा सवाल दलाल साबित किया जाता है. ऐसा क्यों भाई... ये सवाल भी तो कोई सवालों से निकली पार्टी से पूछे तो...

रवीश रंजन शुक्ला एनडीटीवी इंडिया के वरिष्ठ संवाददाता है.

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