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This Article is From May 02, 2019

'996' की जिंदगी में वक्त अवसाद के लिए ही बचेगा, अवकाश के लिए नहीं

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 02, 2019 02:58 am IST
    • Published On मई 02, 2019 02:58 am IST
    • Last Updated On मई 02, 2019 02:58 am IST

996 के बारे में आपने नहीं सुना होगा. इसका मतलब है लगातार 6 दिन 9 बजे सुबह से लेकर 9 बजे रात तक काम करना. 14 अप्रैल को चीन की सबसे बड़ी ई-कामर्स कंपनी के प्रमुख जैक मा ने एक ब्लॉग लिखा. उसने चीन में 996 संस्कृति की तारीफ की. चीन के आईटी सेक्टर में 996 की संस्कृति लंबे सयम से रही है मगर जैक मा के ब्लॉग के बाद से इसका विरोध तेज़ हो गया है.

9 बजे सुबह काम करने का मतलब हुआ कि आप 6 बजे सुबह उठेंगे और काम पर जाने की तैयारी करेंगे और लंबी दूरी की यात्रा कर काम की जगह पर पहुंचेंगे. फिर रात 9 बजे आप काम ख़त्म कर घर के लिए निकलेंगे तो घर पहुंचने में 10 भी बज सकता है और 11 भी. आदमी ज़िंदा लाश की तरह ख़ुद को ढोता रहेगा. इसका आइडिया तो यही है कि काम के तनाव से लोग जल्दी-जल्दी मर जाएं ताकि उनकी जगह दूसरा आ जाए.

चीन में विरोध की कम ही संभावना है. ट्रेड यूनियन बनाने की अनुमति नहीं है. इसके बाद भी सरकारी मीडिया ने जैक मा के बयान की आलोचना की है क्योंकि इंजीनियरों का विरोध मुखर होने लगा है. आईटी सेक्टर के इंजीनियर आनलाइन जाकर ऐसी कंपनियों को बदनाम कर रहे हैं जो 996 काम कराती हैं. लोगों के पास अब बदनाम करना ही अंतिम हथियार रह गया है. पहले लोगों ने संस्थाओं को ख़त्म होते चुपचाप देखा. अब उनके बचाव में कोई संस्था नहीं है तो उन्हें लगता है कि बदनाम करने से कंपनियां सुधर जाएंगे. ऐसा होता नहीं है.

आप न्यूयार्क टाइम्स, गार्डियन, एबीसी सहित भारतीय वेबसाइट पर भी जैक मा के बयान पर हुई चर्चाओं को पढ़ सकते हैं. आप समझ पाएंगे कि किस तरह हमारे हर वक्त को उत्पादन के काम में लगाया जा रहा है. एक दिन यह हालत न हो जाए लोग कंपनी की बेसमेंट में सोएंगे, वहीं से उठकर 12 घंटे काम करेंगे और फिर तहखाने में जाकर सो जाएंगे. हो तो ऐसा ही रहा है.

जैक मा के इस कथन की आलोचना भारत के ट्विटर बहादुरों ने भी. उद्योग जगत से जुड़े लोग इसकी आलोचना कर ट्विटर पर नंबर बटोर रहे थे मगर क्वार्ट्ज वेबसाइट पर निहारिका शर्मा की एक रिपोर्ट ने उनकी पोल खोल दी. निहारिका ने बताया कि भारतीय कंपनियों में चीन से भी ज़्यादा समय तक काम करते हैं.

मुंबई में कर्मचारी एक साल में 3315 घंटे काम करता है. दुनिया में यह सबसे अधिक है. यह आंकड़ा स्विस इंवेस्टमेंट बैंक USB का है. चीन में एक साल में एक कर्मचारी 2,096 घंटे काम करता है. दुनिया में काम करने के घंटे के लिहाज़ से जो दस सबसे बदतर शहर हैं उनमें मुंबई और दिल्ली का स्थान चौथा और पांचवा है.

20 साल में काम के बदले शोषण की छूट के नियम ही बने है. पिछले पांच साल में तो और भी. मोदी सरकार ने ऐसा नियम बनाया है कि हड़ताल के लिए 6 हफ्ते पहले नोटिस देना होगा. हड़ताल अगर अवैध साबित हुई तो यूनियन के हर सदस्य को जेल हो सकती है और 50,000 का जुर्माना देना पड़ सकता है. क्विंट पर आनिंद्यो चक्रवर्ती का लेख आप पढ़ सकते हैं.

ज़ाहिर है हम भारतीय भी मशीन की तरह काम कर रहे हैं. लोगों के पास अवकाश नहीं है. इस कारण जीवन की सृजनात्मकता ख़त्म हो गई है. किसी चीज़ के प्रति सम्मान समाप्त हो चुका है. हर समय पर कीचड़ उछाल रहा है क्योंकि उसका जीवन कीचड़ में ही है. आप दिल्ली में ही जाकर देख लें. काम करने वाले लोग किन हालात में रह रहे हैं. घर के सामने से नालियां बह रही हैं. कूड़े का अंबार लगा है. शौचालय की जगह नहीं है. पीने का पानी नहीं है.

हमारे काम करने के हालात बदतर हैं. जीने के हालात बदतर है. धोखा ही सही सुबह सुबह व्हाट्स एप में स्विट्ज़रलैंड की पहाड़ियों के साथ गुडमार्निंग मेसेज आता है, वो शाम तक किसी मज़हब के प्रति नफ़रत में बदल चुका होता है और किसी झूठ को सत्य की तरह स्वीकार कर चुका होता है. जीनन में तनाव के मौके ज़्यादा हैं. आबादी का बड़ा हिस्सा ख़ुशहाल न हो और चंद लोग चाहें कि वो हिस्सा उनकी तरह ख़ुशहाल रहे. उदार रहे. कैसे संभव है.

मकसद एक ही है. काम करते करते आप जल्दी मर जाएं. 50 साल तक जी न सकें. ताकि आपकी जगह दूसरा आ जाए मरने के लिए. जो आपसे सस्ता हो. 996 की ज़िंदगी 99 परसेंट मौत की ज़िंदगी है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण):इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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