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This Article is From Jan 14, 2015

रवीश कुमार की कलम से : भागवत बनाम भगवती - कौन डरता है संघ से?

Ravish Kumar, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    जनवरी 14, 2015 21:04 pm IST
    • Published On जनवरी 14, 2015 20:54 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 14, 2015 21:04 pm IST

प्रोफेसर जगदीश भगवती, फिक्की की नई अध्यक्ष ज्योत्सना सूरी, सी आई आई के अध्यक्ष अरुण श्रीराम में एक समानता है। ये सभी संघ परिवार के एजेंडे को मोदी के विकास के लिए घातक मानते हैं। घातक बताते हुए इनकी राय भी अलग-अलग है। इनका कहना है कि सरकार मज़बूती से विकास के एजेंडे को पकड़े रखे। ध्यान बंटाने वाले इन मुद्दों से दूर रहे।

मंगलवार को दिल्ली में माधव राव सिंधिया मेमोरियल लेक्चर में बोलते हुए प्रोफेसर भगवती ने अपने एक वाक्य में संघ के लिए दीज़ आर एस एस गाइज़ का इस्तमाल किया यानी ये आर एस एस वाले। जिनसे उन्हें चिन्ता होती है। जिससे आगे चलकर नुकसान हो सकता है और लोग इनसे फेड-अप यानी उकता सकते हैं। प्रोफेसर भगवती ने प्रधानमंत्री की कार्यशैली और सुधार के प्रति उनकी सक्रियता की काफी तारीफ की और सुझाव दिया कि इन तत्वों पर लगाम लगाने में थोड़ा और ज़ोर लगाए।

जब से गोड्से को देशभक्त बताने से लेकर चार बच्चे पैदा करने के बयान आने लगे हैं अर्थशास्त्रियों और उद्योगजगत की ये जमात ऐसे बात कर रही है, जैसे बयान देने वाले सत्ता देखकर बौरा गए हो। ये सभी इस तथ्य को अनदेखा कर रहे हैं कि सरकार बनाने और बनाने के लिए चुनावी श्रम करने में संघ परिवार की भी महत्वपूर्ण भूमिका रही है। सी आई आई के अध्यक्ष का बयान टाइम्स आफ इंडिया में छपा है कि कुछ लोगों को लगता है कि बीजेपी के सरकार में आने से वे अपना एजेंडा चला सकते हैं।

पर हमारे उद्योगजगत को क्यों लगता है कि सरकार में आने के बाद बीजेपी का इन संगठनों से संबंध समाप्त हो जाना चाहिए। क्या ये संबंध इतना कमज़ोर है। प्रोफेसर भगवती जैसे मशहूर अर्थशास्त्री को इतना तो मालूम ही होना चाहिए कि प्रधानमंत्री खुद आर एस एस के प्रचारक रहे हैं। कोई स्वंयसेवक होते हुए, प्रचारक होते हुए इस आधार पर बीजेपी में अलग स्थिति बना सकता है, प्रधानमंत्री के पद पर पहुंच सकता है लेकिन प्रधानमंत्री बनते ही वे अचानक से आर एस एस को ख़तरे के रूप में देखने लगे ऐसा प्रोफेसर भगवती को क्यों लगा। पहले क्यों नहीं लगा और उन्होंने चुनाव से पहले क्यों नहीं चेताया।

क्या प्रोफेसर भगवती को नहीं मालूम कि प्रधानमंत्री आर एस एस का कितना आदर करते हैं। केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने तो लोकसभा में आर एस एस को एक महान देशभक्त संगठन बताया है। सरकार ने पौराणिक विज्ञान और धर्मांतरण के मुद्दे पर वीएचपी और संघ परिवार का साथ दिया है। शिक्षा के क्षेत्र में संघ के एजेंडे की भी बात हो रही है। क्या इस पर भी प्रोफेसर भगवती से लेकर तमाम उद्योगपतियों को लगता है कि मोदी सख्त कार्रवाई करें या फिर इनके बयानों से सिर्फ संसद को रुकने की नौबत न आने दें ताकि इनके मनमुताबिक सुधार के कानून बनते चले जाएं।

प्रोफेसर भगवती को पहले यह साफ करना चाहिए कि वे आर एस एस को किस हद तक ख़तरनाक मानते हैं। क्या सिर्फ विकास के एजेंडे में रुकावट डालने की हद तक या अन्य मसलों के संदर्भ में भी उन्हें राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ख़तरनाक लगता है। सिर्फ किनारा करने की सलाह से बात पूरी नहीं होती है।

बीजेपी भी अर्थशास्त्रियों की इस राय का उस तरह से विरोध नहीं करती है जैसे ऐसे ही बयानों पर वो कांग्रेस या विरोधी दलों पर टूट पड़ती है। यह साफ नहीं है कि आर एस एस के एजेंडे पर उसकी क्या राय है। आर एस एस का एजेंडा भी अनेक है। शिक्षा, धर्म से लेकर विकास तक। आर एस एस को भी साफ करना चाहिए कि क्या उसका विकास का एजेंडा ही मोदी के विकास का एजेंडा है। संघ प्रमुख क्यों नहीं अपने इन एजेंडो को लेकर प्रधानमंत्री से बात करते हैं या सार्वजनिक बहस की मांग करते हैं।

छाया युद्ध क्यों चल रहा है या चलता हुआ बताया जा रहा है। संघ को पता है कि विकास के मामले में प्रधानमंत्री मोदी की सोच ही अंतिम है। अंतिम नहीं तो कम से कम प्रभावशाली तो है ही। फिर संघ विकास के मुद्दे पर नरम क्यों पड़ रहा है। आर एस एस के एजेंडा को लेकर हमेशा बहस होती रही है। संघ का एजेंडा छिपा हुआ नहीं होता। सबको पता है कि इतिहास से लेकर भविष्य तक के मसलों पर उसकी क्या राय है।

आर एस एस को लेकर सार्वजनिक रूप से खूब बहस होती है। सवाल यह है कि ये अर्थशास्त्री अब जाकर अनजान बन रहे हैं या वाकई इन्हें पता नहीं था कि चुनावों में बीजेपी की मदद के लिए आर एस एस से लेकर बीएचपी के कार्यकर्ता दिनरात मेहनत करते हैं।
जनवरी 2013 में कुंभ मेले के दौरान धर्म संसद हुई थी। इसमें अशोक सिंघल से लेकर संघ प्रमुख मोहन भागवत भी मौजूद थे। यहां पर भी प्रधानमंत्री के उम्मीदवार के रूप में नरेंद्र मोदी के नाम की वकालत हुई थी। उनके चयन में भी आर एस एस की सक्रिय भूमिका थी। तब क्या यह सब इन उद्योगपतियों या अर्थशास्त्रियों को नहीं लग रहा था कि ये संघ परिवार है। इसकी अपनी एक घोषित सोच है।

प्रोफेसर भगवती को भी पता है कि आर एस एस से अलग होना मुश्किल है। यह सरकार जितनी बीजेपी की है उतनी उसकी भी है। अगर प्रोफेसर भगवती जैसों को वाकई में यह सब एक ख़तरा लगता है तो उन्हें अपनी लाइन और स्पष्ट करनी चाहिए। नसीहत देकर बचने का रास्ता विश्वसनीय नहीं जान पड़ता।

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