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This Article is From Jun 16, 2015

अगर सुषमा ने इस्तीफा दे दिया तो...

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 16, 2015 12:44 pm IST
    • Published On जून 16, 2015 12:17 pm IST
    • Last Updated On जून 16, 2015 12:44 pm IST
ल्युटियन दिल्ली की अंधेरी रातों में जागने वाले पत्रकारों की थ्योरी पर यकीन करें तो सुषमा स्वराज और अरुण जेटली एक दूसरे को पसंद नहीं करते हैं। ललित मोदी से जुड़े नए विवाद के पीछे अरुण जेटली का हाथ हो सकता है। उद्योग जगत के कई कोनों से आवाज़ आ रही है कि वित्तमंत्री के रूप में अरुण जेटली उतने प्रखर साबित नहीं हो सके, जितने वह कानून के मामले में माने जाते हैं, इसलिए अपनी असुरक्षा को काउंटर करने के लिए उनके कैंप से सुषमा स्वराज के खिलाफ ख़बरें लीक हो रही हैं। सरकार का एक साल पूरा हुआ तो ज़्यादातर सर्वे में बेहतर मंत्री के रूप में सुषमा स्वराज का नाम पहले नंबर पर आया। लीक किसने की, यह सिर्फ समीकरणों की सियासत के लिहाज़ से ही महत्वपूर्ण है। लीक करने वालों की मंशा से सवालों की अहमियत खत्म नहीं हो जाती है।

लोकसभा चुनावों से पहले आडवाणी कैंप से सबसे पहले अरुण जेटली ने नरेंद्र मोदी का समर्थन किया। बल्कि अरुण जेटली पहले से ही गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी के करीबी माने ही जाते रहे हैं। पार्टी में उनका बचाव करते रहे हैं। सुषमा स्वराज ने आडवाणी की तरह देर से नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को स्वीकार किया। याद कीजिए उन दिनों को, जब नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री का उम्मीदवार बनाए जाने की घोषणा हो रही थी, तब सुषमा स्वराज की चुप्पी और नाराज़गी के किस्से खूब चलते थे। राजनाथ सिंह ने सबसे पहले नरेंद्र मोदी के नेतृत्व को स्वीकार किया।

ललित मोदी को ट्रैवल डाक्यूमेंट दिलाने के मामले में जब से सुषमा स्वराज ने अपनी भूमिका स्वीकार की है, तब से प्रधानमंत्री मोदी के कैबिनेट की अंदरूनी राजनीति के किस्से बाहर आने लगे हैं। इसकी गिनती हो रही है कि कौन समर्थन में है और कौन चुप है। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आक्रामक रूप से सुषमा स्वराज के साथ हैं। खूब ट्वीट कर रहे हैं। मध्य प्रदेश के एक और मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी सुषमा का समर्थन किया है। रक्षामंत्री मनोहर पर्रिकर और यूपी से आने वाले एक और मंत्री संतोष गंगवार ने भी सुषमा स्वराज का समर्थन किया है। आरएसएस ने तो खुलेआम सुषमा की तारीफ की है और मानवीय आधार पर एलियन थ्योरी का बचाव भी किया। एक तरह से बीजेपी और संघ के खेमे से सुषमा-सुषमा की आवाज़ आ रही है।

प्रधानमंत्री और वित्तमंत्री दोनों चुप हैं। शायद इसलिए भी चुप हैं कि इस विवाद में दोनों की सार्वजनिक स्थिति संदिग्ध हो जाती है। मामला वित्त मंत्रालय से भी जुड़ा है, इसलिए जेटली को जवाब देना है कि प्रवर्तन निदेशालय क्या कर रहा है। क्या सरकार ललित मोदी को भारत लाकर पूछताछ करेगी। जेटली और ज्योतिरादित्य की कमेटी ने ललित मोदी पर गबन करने के आरोप लगाए थे, इसलिए उन्हें यह बताना होगा कि उनके विभाग की क्या राय है। क्या वित्त मंत्रालय भी मानवीय आधार की थ्योरी पर यकीन करता है। खासकर पूर्व विदेश सचिव सुजाता सिंह के कहने के बाद यह मामला और उलझ गया है कि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी।

वित्तमंत्री पूरे मामले में चुप हैं। कांग्रेस जेटली को घेरने लगी है। जेटली के जवाब से यह विवाद किसी और दिशा में मुड़ सकता है। प्रधानमंत्री योग के आसनों का ट्वीट कर रहे हैं, लेकिन जिस तरह उन्होंने राजनाथ सिंह के बेटे के मामले में उड़ी कथित अफवाहों का खंडन किया था, अभी उस तरह का खंडन नहीं आया है। मगर सुषमा को मिल रहे अपार समर्थन के पीछे उनका हाथ नहीं होगा, यह मानना मुश्किल है। निश्चित रूप से वह सुषमा के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने रविवार को दिए अपने बयान में ललित मोदी का नाम नहीं लिया। वह उनका नाम लेने की जगह कह रहे थे कि एक पार्टी ने विदेशमंत्री से संपर्क किया है। साफ है दूरी बनाए रखते हुए वह सुषमा स्वराज का बचाव कर रहे थे, जबकि वह ललित मोदी को अच्छी तरह से जानते हैं।

अब क्या होगा, अगर सुषमा स्वराज इस्तीफा दे दें। यह सवाल कई तरह की थ्योरी को दिलचस्प बना देता है। ख़बर आ रही है कि सुषमा ने पिछले हफ्ते ही इस्तीफा देने की पेशकश की थी। अगर सही है, तब फिर मीडिया में जेटली कैंप से ख़बर लीक होने की थ्योरी संदिग्ध हो जाती है। इस ख़बर से सुषमा पर इस्तीफे का दबाव और बढ़ेगा और सवाल प्रधानमंत्री पर जाएगा कि अगर कोई अपनी गलती मान रहा है तो वह इस्तीफा स्वीकार क्यों नहीं कर रहे हैं।

ज़ाहिर है, सुषमा ने इस्तीफा दिया और मंज़ूर हो गया तो प्रधानमंत्री को लेकर भी थ्योरी पैदा होगी कि उन्होंने अपने एक काबिल मंत्री को फिक्स कर दिया। वह अपने मंत्रिमंडल में काबिल लोगों को बर्दाश्त नहीं करते हैं। इससे बाकी मंत्रियों का आत्मविश्वास हिल सकता है। एक तर्क से आत्मविश्वास बढ़ भी सकता है कि प्रधानमंत्री संकट के समय बचाव कर सकते हैं। विदेश मंत्रालय के काम को मोदी सरकार और बीजेपी अपनी बड़ी उपलब्धि मानती है। अगर विदेशमंत्री का इस्तीफा हुआ तो पूरी दुनिया में अपनी धमक बना रही मोदी सरकार की साख कमज़ोर होगी। हर जगह संदेश जाएगा कि एक व्यक्ति की सरकार है, लेकिन प्रधानमंत्री को तय करना होगा कि वह क्या चाहते हैं। क्या वह नहीं चाहेंगे कि यह संदेश जाए कि भ्रष्टाचार को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं करेंगे, चाहे कोई भी हो।

इस्तीफा हुआ तो यह मामला वहां भी जाएंगा, जहां से यह सत्य उजागर हुआ है। सुषमा स्वराज काबिल नेता हैं। बोलने में भी उनका जवाब नहीं। मंत्री बनने के बाद से वह चुप रहने की कला जान गई हैं, लेकिन मंत्रालय से बाहर आकर उनकी चुप्पी उनका राजनीतिक खात्मा कर देगी। लिहाज़ा उन्हें बोलना ही होगा और जब वह बोलेंगी तो कैमरे उन्हें सुनने के लिए दिन-रात दौड़ेंगे। अगर उन्होंने खुद को शहीद की तरह पेश कर दिया तो संघ परिवार और बीजेपी की राजनीति अनिश्चित दिशा में मुड़ सकती है। यह संदेश जा सकता है कि एक काबिल महिला को अंदरूनी राजनीति के कारण बेदखल कर दिया गया।

इसलिए यह विवाद प्रधानमंत्री को और मजबूर कर देगा कि वह पब्लिक में सुषमा स्वराज के साथ खड़े दिखाई दें, लेकिन इसका नुकसान दूसरा भी होगा। 'सूट-बूट की सरकार' की छवि से सरकार कितना परेशान हो गई थी। अब संदेश जा सकता है कि सूट-बूट वाले आरोपियों को सरकार बचा रही है। ललित मोदी के वकील की सफाई और यह कहना कि अंडरवर्ल्ड की धमकी है, पर्याप्त नहीं लगती है। ललित मोदी को भारत सरकार की सुरक्षा क्षमता पर भरोसा करना चाहिए और यहां आकर कानून की मदद करनी चाहिए। किसी अंडरवर्ल्ड का भेजा ईमेल दिखाकर खुद को असुरक्षित बताना हास्यास्पद है। खासकर उस सरकार को यह ख़तरा बताना, जो सीमा के भीतर और पार, हर तरह के आतंकवादियों को संदेश भेजती रहती है, इसलिए मुंबई में जब उनके वकील यह ईमेल पढ़ रहे थे, तब बेहद बचकाना लग रहे थे। ऐसा लग रहा था कि मोदी सरकार उनके मुवक्किल की रक्षा नहीं कर सकती है, जिसके मंत्री या नेता आएदिन बयान देते रहते हैं कि वे दाऊद को लाने वाले हैं।

प्रधानमंत्री मोदी की व्यापक छवि भी दांव पर है। क्या प्रधानमंत्री ऐसे आरोपी की मदद के मामले को मानवीय आधार की नज़र से देखते हैं। अगर यह मामला सुषमा विरोधी कैंप से निकला है तो निश्चित रूप से शिकार प्रधानमंत्री हुए हैं। इस वक्त मुश्किल में प्रधानमंत्री ही लगते हैं। सब उनकी तरफ देख रहे हैं कि वह क्या करते हैं। विपक्ष में रहते हुए बीजेपी बात-बात पर इस्तीफा मांगा करती थी अब उससे इस्तीफे की मांग हो रही है तो इसका हल यह ढूंढा जा रहा है कि दस नेताओ से बयान दिलवा दिया जाए।

अब आइए, वित्तमंत्री अरुण जेटली पर। अगर ल्युटियन पत्रकारों की थ्योरी मान भी लें कि जेटली कैंप ने सुषमा को फिक्स करने का प्रयास किया है तो अब इस मामले में जेटली बैकफुट पर नज़र आ रहे हैं। वह बोलने की स्थिति में भी नहीं है। उनकी साख प्रधानमंत्री की नज़र में कमज़ोर ही होगी। सुषमा ने इस्तीफा दे दिया तो अरुण जेटली के बहाने बीजेपी या संघ के भीतर मोदी-विरोधी शक्तियों को बढ़ावा मिल सकता है। इस थ्योरी का आधार यह है कि प्रधानमंत्री मोदी, अरुण जेटली और सुषमा स्वराज एक दूसरे के खिलाफ राजनीति खेल रहे हैं। व्यक्तिगत रूप से मुझे यकीन नहीं होता है, लेकिन थ्योरी के अनुसार अगर ऐसा हो रहा है, तो सुषमा हारकर भी जीत रही हैं।

अगर उनका इस्तीफा नहीं हुआ तो वह सरकार के भीतर पहले से मज़बूत हो जाएंगी। उनकी चुप्पी उन्हें सरकार के भीतर मज़बूत बनाएगी। अगर बाहर आ गईं तो पार्टी और सरकार को एक सूत्र में बांधने की प्रधानमंत्री और अमित शाह की रणनीति कमज़ोर हो सकती है, इसलिए सुषमा स्वराज का बचाव ज़ोर-शोर से किया जा रहा है। कांग्रेस के ज़माने के पुराने मामलों को निकालकर दलीलें दी जा रही हैं। बीजेपी इस तरह से पुराने मामले निकाल रही है, जैसे विपक्ष में है। वैसे अभी तक इस प्रयास से उसे खास कामयाबी हासिल नहीं हुई है। पार्टी इस डर से सहमी लगती है कि अगर सुषमा स्वराज ने इस्तीफा दे दिया तो क्या होगा। इन सवालों के साथ ल्युटियन दिल्ली के रतजगा-पत्रकार दिन में भी जाग रहे हैं!

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