"आपको एंटरटेनमेंट चाहिए तो बाहर चले जाएं...", "आप उधर मत देखो, मेरी तरफ देखो, मैं आपसे बात कर रही हूं... मैं आपको इतनी एनर्जी दे रही हूं, आप मेरी तरफ देखो तो सही...", "आपको पता है, पुलिस से पहले मैं लेक्चरर थी... दो साल मैंने पढ़ाया है... मुझे पढ़ाना भी आता है...", "प्रधानमंत्री का सपना पूरा करना है तो हमें यह आंदोलन करना होगा... करोगे या करवाऊं... ध्यान से सुनो इसलिए..."
ये सारे वाक्य डांटनुमा शैली में किरण बेदी के ही हैं। बीजेपी दफ्तर में अपने स्वागत समारोह में किरण बेदी बोलते-बोलते सबको प्यार से सुना भी रही थीं कि सुनो किरण बेदी बोल रही हैं। एक बार तो कह भी दिया कि ऐतिहासिक मौका है। बार-बार मौके नहीं मिलेंगे भीड़ आने के।
बेदी ने अपने पहले ही भाषण से अपना अनुशासन और नियम लागू कर दिया। साफ कर दिया कि किरण बेदी को सुनना पड़ेगा और जो कहेंगी, वह करना पड़ेगा। उन्होंने कार्यकर्ताओं को उनकी शैली से मेल खाने का वक्त नहीं दिया। आदेश दे दिया है। इस तेवर से कार्यकर्ताओं के बीच बात करते हुए किसी नेता को पहली बार सुन रहा था। हैरानी हुई। आमतौर पर नेता कार्यकर्ताओं को भगवान मानकर सारी बात करते हैं। उनसे अनुरोध करते हैं, प्रेरित करते हैं। जोश से भर देते हैं। जोश में तो बीजेपी के कार्यकर्ता थे ही, क्योंकि बीच-बीच में खूब तालियां बज रही थीं। बेदी ने यहां तक कह दिया कि आंदोलन करोगे या करवाऊं।
उन्होंने बीजेपी कार्यकर्ताओं को समाज सुधार की नसीहत ऐसे दी, जैसे लगा कि कभी उनका संघ के समाज-सुधार से पाला ही नहीं पड़ा हो। कहा कि हम सबको मिलकर सामाजिक क्रांति लानी होगी। अब से बीजेपी के एक-एक कार्यकर्ता को समाजसुधारक बनना होगा। अभी से ही झुग्गियों को साफ करने में जुट जाना होगा। प्रधानमंत्री ने नारा दिया है कि जहां झुग्गी, वहां मकान। बेदी ने उनके नारे को भी बदल दिया। कहा कि स्वच्छ झुग्गी, स्वच्छ मकान।
दिलचस्प रहा उनका पावरप्वाइंट प्रेजेंटेशन की शैली में पांच 'पी' का फॉर्मूला पेश करना। ये सभी पांच 'पी' महिला सुरक्षा के उपाय के तौर पर बताए गए हैं। 'पी' हिन्दी का नहीं, अंग्रेजी का वर्ण है। पहला 'पी' हुआ पेरेंट, यानि मां-बाप। अगर मां-बाप अपने बच्चों पर ध्यान दें, बेटियों को मज़बूत बनाएं और बेटे को समझदार और दोनों को बराबरी का अवसर दें तो बहुत कुछ हो सकता है।
दूसरा 'पी', यानि प्रिसिंपल। किरण बेदी के इस फॉर्मूले के तहत स्कूलों के प्रिंसिपल को मूल्य देना होगा, ताकि बिगड़ा हुआ बच्चा भी सुधर जाए। तीसरा 'पी' हुआ प्रीचर का - पुरोहित, मौलवी और पादरी। अगर ये सभी अपने सत्संगों में महिला सुरक्षा को लेकर संदेश दें तो 80 प्रतिशत समस्या समाप्त हो जाएगी। कहा कि हम सबको आस-पास की ज़िम्मेदारी लेनी होगी। आस-पास घंटी बजाएं।
घंटी बजाने और नैतिक शिक्षा के इस कार्यक्रम का एक रोल तो है ही, लेकिन बेदी ने कहा कि पुलिस और कचहरी यह काम नहीं कर सकतीं। खैर, बेदी का चौथा 'पी' हुआ पोलिटिशियन। उन्होंने कहा कि नेताओं को अपने आचरण पर ध्यान देना होगा। नारी-विरोधी बयानों का बचाव नहीं किया जाएगा। इसकी आदत डालनी होगी। पांचवा 'पी' हुआ पुलिस, जो अपराध की जांच करेगी और रोकने का काम भी करेगी।
बेदी ने इन पांचों 'पी' को एक केंद्र से जोड़ने की बात कही। कहा कि इनका केंद्र होगा मुख्यमंत्री कार्यालय, सीएमओ। उन्होंने यह भी कह दिया कि वह प्रधानमंत्री से इजाज़त लेकर आई हैं कि जैसे वह डीसीपी के दिनों में घर से निकलती थीं तो पता नहीं होता था कि किस थाने में जाएंगी। उसी तरह से अब वही नहीं निकलेंगी, बाकी के सचिव भी निकलेंगे।
ऐसे तो कोई तभी बात करता है, जब वह मुख्यमंत्री पद की शपथ ले चुका हो या चुनाव में उम्मीदवार बनाया गया हो। हो सकता है कि बीजेपी अपनी सुविधा से किरण बेदी की उम्मीदवारी की घोषणा करे, लेकिन किरण बेदी ने अपनी तरफ से घोषणा तो कर ही दी है। उन्होंने पहले ही भाषण में बीजेपी पर अपना अधिकार जमा लिया या कहें कि बीजेपी ने उनके नेतृत्व को भी खुशी-खुशी स्वीकार कर लिया है। कई नेताओं के नाराज़ होने की बात कही जा रही है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व के सामने शायद ही कोई कुछ कह पाएगा, इसलिए बीजेपी दफ्तर के बाहर आज ही पोस्टर में किरण बेदी आ गई हैं। यह और बात है कि पोस्टर में सतीश उपाध्याय आगे हैं और बेदी पीछे।
किरण बेदी पहले से ही पब्लिक में बोलती रही हैं। बोलने के मामले में साफ-सुथरी हैं, लेकिन क्या बोल रही हैं, इस पर तो बहस तब भी हो सकती है, जब बोलने वाला अच्छा हो। उनके भाषण में पुलिस करियर का ज़िक्र बार-बार आता है। एक अंग्रेजी दैनिक में उनके कमिश्नर न बनने के 10 कारण गिनाए गए हैं। यह सब होगा, क्योंकि वह अब राजनीति में हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं को यह कह देना कि आपको एंटरटेनमेंट चाहिए तो बाहर चलें जाए। यह किरण बेदी ही कह सकती हैं, लेक्चरर किरण बेदी।
This Article is From Jan 16, 2015
रवीश कुमार की कलम से : लेक्चरर किरण बेदी को सुनो, वर्ना वह बाहर कर देंगी
Ravish Kumar, Vivek Rastogi
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Updated:जनवरी 16, 2015 20:23 pm IST
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Published On जनवरी 16, 2015 20:20 pm IST
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Last Updated On जनवरी 16, 2015 20:23 pm IST
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