इस्तीफ़ू तू बड़ा ही 'नॉटी गेम चेंजर' है

मेरे प्यारे इस्तीफ़ा ,

तुम्हारा बहुत दिनों से कोई पत्र नहीं आया है। तुम न कहीं से आ रहे हो और न कहीं जा रहे हो। इसलिए तुम्हारा ख़्याल आया है। तुम्हें सब पुकार रहे हैं, पर तुम चुप हो। सुना है तुम इस्तीफ़ासन कर रहे हो। तुम अपने मांगे जाने के बावजूद दिए जाने के खिलाफ हो गए हो। वे मांगे जा रहे हैं और तुम हो कि दिए भी नहीं जा रहे हो।

इस्तीफ़ू, मैं तुम्हें प्यार से इस्तीफ़ू बुलाना चाहता हूं। मैंने अपने दफ्तर में ही कई लोगों को तुम्हें देकर जाते देखा है। अफ़सोस मैं इस्तीफ़ा नहीं दे सका, क्या पता जल्दी नौबत आ जाए। पर क्या है न हम इंग्लिश में तुम्हें इस्तीफ़ा नहीं बुलाते हैं। बड़ा नॉन-क्लासी टाइप लगता है। हम लोग ' गुडबाय मेल' बोलते हैं। उन मेल को पढ़ते हुए इतना भावुक हो जाता हूं कि जी करता है जाने वाले का हाथ पकड़ गाने लगूं। अभी न जाओ छोड़ कर कि दिल अभी भरा नहीं। ' डू यू रिमेम्बर दैट सांग', याद है न।

गूगल पर मैंने पढ़ा भी है कि इस्तीफ़ा कैसे लिखा जाता है पर मुझे तुम्हें लिखना न आया। गूगल में कई गुरु तुम्हें लिखने और दिए जाने की तरकीब बेचते हैं। उन्हें पढ़कर लगा कि तुम्हारे दिए जाने में वो बात नहीं है, जो मैंने जंगबाज़ फ़िल्म में राजकुमार से सुनी थी। उस फ़िल्म में राजकुमार अपनी गर्दन थोड़ी झुका कर कहते थे मैं अपना इस्तीफ़ा जेब में लेकर चलता हूं। काश तुम इतने भी हल्के न होते कि कोई तुम्हें जेब में लेकर चलता, बल्कि लगता है कि तुम काफी मोटा गए हो। इसलिए कोई जेब में लेकर चलता हुआ दिखाई-सुनाई नहीं पड़ता है।

तुम्हारे दिये जाने के कई आधार ज्ञात हैं पर शायद तुम मानवीय आधार पर नहीं दिए जाते हो। मानवीय आधार पर कुछ गड़बड़ करते हुए कोई पकड़ा जाए तब भी तुम्हारा मानवीय आधार पर नैतिक आधार नहीं बनता है। ऐसा क्यों? जिस आधार पर पकड़े जाओ, उसी आधार पर दिए जाओ, तब न हिसाब ठीक होगा। ज़्यादातर तुम नैतिक आधार पर ही मांगे और दिए जाते हो। नैतिक आधार वो आधार है, जिसे राजनैतिक आधार पर तय किया जाता है। नैतिक आधार पर मांगने वाले सारे अनैतिक आक्रामक होते हैं और मांग की आपूर्ति करने वाले नहीं देकर अनैतिक हुए जाते हैं। दिए जाते ही अनैतिक नैतिक हो जाता है और नैतिक अनैतिक। इस्तीफ़ू तू बड़ा ही 'नॉटी गेम चेंजर' है।

कई बार तुम्हारे मांगे जाने के वक्त में तुम देने वालों की चुप्पी का कारण बन जाते हो। क्या पता तुम लिखे जाने से पहले लिखवाने वाले को ब्लैक मेल करते होगे। मांगने वाले को डराते होगे कि मैं लिखा गया और स्वीकृत हुआ तो देख लेना, तुम्हें भी अस्वीकृत करवा दूंगा। तुम्हारा भी इस्तीफ़ा मंगवा दूंगा। एक ज़माना था जब तुम्हारे मांगे जाते ही तुम दे दिए जाते थे। ' दोज़ वर द डेज़ ' ! अब तुम मांगे ही जाते हो, दिए नहीं जाते।

पता है मेरे इस्तीफ़ू, तुम अदालत के आदेश के बाद जेल जाने से पहले दिए जाते वक्त बेहद कमज़ोर लगते हो। घालमेल में पकड़े जाने पर दिए जाते वक्त चोर लगते हो। ईमानदारी की दावेदारी करते हुए दिए जाते हो तो घनघोर लगते हो। ऐसा नहीं है कि तुम्हें देकर कोई हमेशा के लिए बाहर हो जाता है। ऐसा भी होता है कि देने के बाद वापस आ जाते हैं। तुम दिये जाते हो, लिए जाते हो और वापस भी किए जाते हो। तुम काफी अनुभवी हो।

तो कहो न इस्तीफ़ू तुम चुप क्यों हो। टीवी पर पांच दिन से तुम्हारी मांग हो रही है। तुम कोहरे की तरह हो गए हो। अंधेरा जैसा उजाला ठीक नहीं होता है, जिनसे मांगा जा रहा है वे मांग की आपूर्ति नहीं कर रहे। डिमांड और सप्लाई में गैप हो गया है इसलिए तुम्हारी क़ीमत बढ़ गई है। मांगने वाले ज़्यादा हो गए हैं, देने वाले का पता नहीं।

आना है तो आ जाओ। बड़ी शिद्दत से ख़त लिख रहा हूं। तुम जिनकी भी जेब में हो, बाहर निकलो वरना जिन लोगों ने इस्तीफ़ा दिया है उनका तुमसे एतबार उठ जाएगा। तुम्हारे दिये जाने का कारोबार बंद हो जाएगा। तुम्हारे न दिये जाने से वे लोग भी ज़ार ज़ार रो रहे हैं, जो कभी ज़ोर ज़ोर से इस्तीफ़ा मांगते थे। जिन लोगों ने मांगे जाने पर दिया उनके भांजे भतीजे डांट रहे हैं कि आप ही को जल्दी थी देने की। तब तो दामन में दाग़ लगते ही तुम सर्फ़ बनकर दे दिए जाते थे। अब तो दाग़ ही सर्फ़ है। कौन देखता है कि कपड़े साफ हैं या नहीं।

इस्तीफ़ू, तुमने जैनेंद्र का उपन्यास 'त्यागपत्र' पढ़ा है?  मैं भी न कहां तुम्हें 1937 के ओल्ड एज की याद दिला रहा हूं। उस कहानी ने बहुतों को रूला दिया था। पर मैं यह पत्र तुम्हें रुलाने के लिए नहीं हंसाने के लिए लिख रहा हूं। क्या पता तुम हंसते-हंसते बाहर आ जाओ। कहा सुना माफ़ करना, देकर देने वालों के साथ इंसाफ करना।

इस्तीफू, मेरा पत्र हाई लेवल का है। दो बार पढ़ना और दोस्तों से भी शेयर करना।

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तुम्हें कभी न लिख पाने वाला एक पत्रकार,
रवीश कुमार