जब गुलाम नबी आजाद आखिरी बार राहुल गांधी से मिले थे तो राहुल गांधी ने कथित तौर पर अपने एक सहयोगी को कहा कि "गुलाम नबी के लिए चाय ले आओ." कांग्रेस के इस वयोवृद्ध नेता और जम्मू और कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री को यह व्यवहार अच्छा नहीं लगा. वो इस व्यवहार से बेहद आहत और अपमानित हुए. उन्होंने दूसरे साथियों से कहा,"श्रीमती सोनिया गांधी हमेशा मुझे ‘आजाद साब' कहकर बुलाती हैं ...और आज उनका बेटा मेरा अपमान कर रहा है."
73 वर्षीय गुलाम नबी आज़ाद ने आज अपने त्याग पत्र में राहुल गांधी और उनकी मां पर सारा दोष मढ़ दिया. उन्होंने सोनिया गांधी को लिखा, "आप सिर्फ नाम मात्र के लिए सर्वोच्च नेता हैं ...सारे फैसले तो राहुल गांधी के सुरक्षा गार्ड और पीए द्वारा लिए जा रहे हैं." बाद में पता चला कि जिस सहयोगी को चाय परोसने के लिए कहा गया था, वह एक सुरक्षा गार्ड था.
कांग्रेस छोड़ने वालों में गुलाम नबी सबसे वरिष्ठ नेता बन गए हैं, और उन्होंने राहुल गांधी के "बचकाना व्यवहार और अपरिपक्वता" को सिर्फ रेखांकित ही नहीं किया बल्कि यह भी आरोप लगाया कि उन्होंने "पार्टी के भीतर सलाहकार तंत्र" को भी ध्वस्त कर दिया है. सूत्रों का कहना है कि आजाद अब नई पार्टी बनाने वाले हैं.
धीरे धीरे राहुल गाँधी के नेतृत्व को लेकर अपमानजनक टिप्पणियों का अंबार लगता जा रहा है, राहुल के वफादार उनका बचाव करने के लिए छलांग लगाते हुए सामने तो आ जाते हैं लेकिन इस मामले में उनके लिए बहस करना काफी मुश्किल हो जाता है. पार्टी से गिने-चुने लोगों के निकलने का सिलसिला हिमंत बिस्वा सरमा के साथ शुरू हुआ था. सरमा ने आरोप लगाया था कि बैठक में राहुल का ध्यान अपने कुत्ते पर ज्यादा था बनिस्पत कि उनकी बातों पर. उसके बाद ज्योतिरादित्य सिंधिया, अमरिंदर सिंह, आर पी एन सिंह, सुष्मिता देव, कपिल सिब्बल, जितिन प्रसाद तमाम लोग पार्टी से बाहर आ गए. हमेशा ही एक और वरिष्ठ नेता के पार्टी छोड़ने की अफवाहें फैलती रहती हैं.
एक नए अध्यक्ष का चयन करने के लिए बहुप्रचारित कांग्रेस संगठनात्मक चुनाव स्थगित कर दिया गया है क्योंकि "वर्तमान तिथियां ज्योतिष के अनुसार शुभ नहीं हैं." लेकिन कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि यह भी राहुल गांधी का काम है, जो अपनी मां को ढाल के रूप में इस्तेमाल करते हुए महत्वपूर्ण निर्णय लेते रहते हैं.
यह एक महत्वपूर्ण सवाल है कि जैसे ही कांग्रेस से संकट का धुआं निकलता है तो क्या गांधी परिवार वास्तव में परवाह करता है? अभी सोनिया गांधी और उनके बच्चे इलाज को लेकर विदेश में हैं.
कांग्रेस सेवा दल ने ट्वीट किया, "कांग्रेस निडर हैं, जो डर गए आजाद हैं." आजकल वहीं ज्यादा चहचहाहट है जहां कांग्रेसी मौजूद होते हैं.
पार्टी ने आजाद के बाहर निकलने पर एक बेहद ही उबाऊ पटकथा पेश किया. कांग्रेस ने एक जन नेता के रूप में गुलाम नबी की काबिलियत पर सवाल उठाया है और कहा है कि वह भाजपा के इशारे पर काम कर रहे थे क्योंकि मोदी ने पिछले साल फरवरी में संसद में उनकी तारीफ की थी. दोनों प्रतिक्रियाएं बचकाना है. अगर आजाद में कोई चमक या योग्यता नहीं थी तो कांग्रेस उन्हें चार दशकों तक क्यों इनाम देती रही. और अगर मोदी उन्हें प्रलोभन दे रहे थे तो कांग्रेस उन्हें क्यों नहीं रोक पाई? पिछले साल फरवरी में उनका कार्यकाल समाप्त होने पर भाजपा ने आजाद को राज्यसभा सीट की पेशकश की थी, मेरे सूत्रों ने इस बात की पुष्टि की है.
कुछ दिन पहले कांग्रेस के एक अन्य वरिष्ठ नेता, आनंद शर्मा ने सार्वजनिक तौर पर कहा कि पार्टी में उनका "अपमान" होता है और अब "परामर्श कल्चर की कमी" हो गई है. शर्मा ने कहा कि वह अपने राज्य हिमाचल प्रदेश के प्रचार में शामिल नहीं होंगे. हिमाचल और गुजरात में साथ साथ मतदान होंगे. अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रही कांग्रेस से उम्मीद नहीं है कि वो अच्छा प्रदर्शन करेगी. लोगों का कहना है कि कांग्रेस ये ‘पॉलिटिकल स्पेस' नौसिखिया आप को सौंपने के लिए तैयार है जो दोनों राज्यों से चुनाव लड़ रही है. आप द्विध्रुवीय राज्यों में कांग्रेस के वोटों पर निगाह गड़ाए हुए है और यह सुनिश्चित करती है कि कांग्रेस दिल्ली की तरह खोई हुई किसी भी जमीन पर फिर से कब्जा करने के काबिल न रहे.
कांग्रेस वर्तमान में दो बड़े राज्यों पर शासन करती है. राजस्थान में बतौर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट, जो स्वयं ही राज्य का मुखिया बनना चाह रहे हैं, के बीच झगड़े की कहानी कभी खत्म ही होने वाली नहीं है. गांधी परिवार गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में दिल्ली लाकर और पायलट को जो चाहिए वह देकर, इस गतिरोध को समाप्त करने की उम्मीद कर रही है. लेकिन गहलोत हैं कि मानने को तैयार ही नहीं है.
वरिष्ठ विपक्षी नेता कांग्रेस की स्थिति को देखकर चिंतित हैं क्योंकि कांग्रेस को विपक्षी एकता का मुख्य आधार बनाए जाने की उम्मीद है. शरद पवार से लेकर ममता बनर्जी तक सभी इस बात को मानते हैं कि राहुल गांधी के नेतृत्व में ताकत नहीं है. और कांग्रेस इस बात पर जोर देती है कि केवल राहुल गांधी ही उसके प्रधानमंत्री हो सकते हैं.
इस बीच गांधी परिवार हमेशा की तरह बिना चुने हुए लोगों की मंडली में आराम ले सकते हैं. यह मंडली अब यह कहना जारी रखेंगे कि बिना गांधी परिवार के कांग्रेस का अस्तित्व नहीं हो सकता. लाजिमी है कि भाजपा अरविंद केजरीवाल पर अधिक केंद्रित है. कांग्रेस को तब तक उसके अपने ही फार्मूलों पर छोड़ देना चाहिए जिससे वो इसके प्रभाव को कम कर सके.
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.