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This Article is From Aug 30, 2017

मुंबई में एक ही दिन की बारिश भारी पड़ गई, रवीश कुमार के साथ प्राइम टाइम

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 31, 2017 21:43 pm IST
    • Published On अगस्त 30, 2017 20:53 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 31, 2017 21:43 pm IST
मौत अगर पैमाना है तो यकीन जानिये कि हिन्दुस्तान में कोई हादसा हादसा ही नहीं है. मंगलवार को मशहूर साहित्यकार अमिताभ घोष ने नीना सतीजा का एक लेख ट्वीट किया जो अमेरिका के ह्यूस्टन शहर में आई बाढ़ पर था. उस लेख में प्राकृतिक आपदाओं के असर का अध्ययन करने वाले टेक्सास के A&M University के प्रोफेसर सैम ब्रोडी का एक बयान है. हालांकि अब ह्यूस्टन की बाढ़ में 30 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन जब यह संख्या 16 थी तभी प्रोफेसर साहब ने कहा कि कहीं और की बाढ़ की तुलना में यहां इतने लोग मर गए. स्थिति और बिगड़ने वाली है. मैं सोच रहा था कि यही प्रोफेसर साहब बिहार की बाढ़ का अध्ययन कर रहे होते तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होती जहां 514 लोगों की मौत हो चुकी है और पौने दो करोड़ लोग बाढ़ से प्रभावित और विस्थापित हैं.

बंगाल में बाढ़ से 152 लोगों ने गंवाई जान
बंगाल की बाढ़ में 152 लोगों से अधिक की मौत हो चुकी है. उत्तर प्रदेश की बाढ़ में 99 लोगों की मौत हो चुकी है. असम में आई बाढ़ से 102 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं. इसमें बिहार के 514 मौतों को जोड़ दें तो संख्या 867 हो जाती है. जुलाई में गुजरात के तीन ज़िलों में आई बाढ़ में 218 लोग मारे गए. राजस्थान में 17 और ओडिशा में 7 लोगों की बाढ़ से मौत हुई है. इन सबका टोटल कीजिए तो जुलाई अगस्त में सात राज्यों में 1109 लोगों की मौत हो चुकी है.

सरकार मौत पर मुआवजे का कर देती है ऐलान
हमारे यहां मौत सिर्फ एक संख्या है, आजकल सरकार मौत की खबर सुनकर मुआवज़े का एलान ऐसे कर देती हैं जैसे वो कोई बीमा कंपनी हो और उसका काम इस एलान के बाद समाप्त हो जाता हो. गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में पिछले तीन दिन में 61 बच्चों की मौत हो चुकी है. पीटीआई की ख़बर के अनुसार इस अगस्त महीने में बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में 290 बच्चों की मौत हो चुकी है. 77 बच्चों की मौत एन्सिफलाइटिस वार्ड में हुई है. 213 बच्चों की मौत निये नेटल आई सी यू में हुई है. जनवरी से अगस्त के बीच एक अस्पताल में 1250 बच्चे मारे जा चुके हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का एक बयान आया है कि कहीं ऐसा न हो कि लोग अपने बच्चे दो साल के होते ही सरकार के भरोसे छोड़ दें और सरकार उनका पालन पोषण कर दे. पत्रकार उनसे गोरखपुर के अस्पताल में हुई मौत के बारे में पूछ रहे थे. अब इसके आगे कुछ भी कहने से पहले आगे पीछे देख लीजिए कि सोशल मीडिया पर ट्रोल सेना है कि नहीं. किसे फर्क पड़ता है कि महाराष्ट्र और गुजरात में ही स्वाइन फ्लू ने आठ सौ लोगों को मार दिया है.

VIDEO:  कमर तक पानी में डूब गई पूरी मुंबई पुराने अनुभवों से हमने क्या सीखा?



गुजरात में स्वाइन फ्लू से 343 की मौत
गुजरात में इस साल अगस्त तक 343 लोग स्वाइन फ्लू के कारण मारे जा चुके हैं. महाराष्ट्र में स्वाइन फ्लू से मरने वालों की संख्या 450 पार कर चुकी है. राजस्थान में स्वाइन फ्लू से 86 और मध्य प्रदेश में 23 लोगों की मौत हो गई है. दिल्ली में 5 उड़ीसा में 30 और केरल में 74 लोगों की मौत हुई है. सिर्फ सात राज्यों में स्वाइन फ्लू से 1,011 लोगों की मौत हो चुकी है. एक अच्छी चीज़ यह हो रही है कि लोग अब सरकार की जगह चैनलों से ही उम्मीद करके घर चले जाते हैं कि फलां टॉपिक पर डिबेट हुई या नहीं. चैनलों को भी हिन्दू मुस्लिम और राष्ट्रवाद की लहर फैलाने से कहां फुर्सत है. संसद को टीवी चैनलों के लिए एक कानून बना देना चाहिए कि हर दिन कम से कम छह घंटे हिन्दू मुस्लिम पर डिबेट करना ही है. इससे लोगों को भी उम्मीद नहीं होगी कि उनके मसले पर चर्चा नहीं हो रही है. वैसे मुंबई की बारिश ने चैनलों को मौका दे दिया कि लोगों के बीच जाकर पत्रकार होने का लाइसेंस रिन्यू करा लिया जाए. वर्ना किसी को वक्त निकाल कर देखना चाहिए. 
मुंबई में जुलाई 2005 में 700 लोग मारे गए, हज़ारों करोड़ की बर्बादी हुई, उससे हमने क्या सबक सीखा और वो सबक कहां है इस वक्त. 2015 में चेन्नई शहर में बारिश और बांध के कारण बाढ़ का पानी घुस गया. एक मंज़िला घर डूब गए. 343 लोग मारे गए. क्या हमने कोई सबक सीखा, सीखा तो वो सबक क्या है.

10 मार्च 2017 के हिन्दू अख़बार में चेन्नई बाढ़ पर फोलोअप स्टोरी छपी है. तमिलनाडु सरकार चेन्नई की नदियों के किनारे बसे 55,000 परिवारों को हटाने की योजना बना रही है. बाढ़ के दो साल बाद राज्य एक्शन प्लान इसलिए बना रहा है क्योंकि मद्रास हाईकोर्ट ने अदयार और कूअम नदी के किनारे से अतिक्रमण हटाने को कहा है. साफ है सरकार अभी तक टहल ही रही है. गुड़गांव ज़रा सी बारिश में क्या डूबा कि लोगों को मिलेनियम नाम से ही चिढ़ हो गई. गुरमीत सिंह के समर्थकों से घिरने से चंद रोज़ पहले पंचकुला भी तो इसी तरह डूबा था जहां सेना से रिटायर प्रभावशाली लोग रहते हैं. इसके बाद भी वहां का बुनियादी ढांचा चरमरा रहा है. दरअसल बुनियादी ढांचे के नाम पर हम हाईवे बनाकर निकल चलते हैं. बारिश का बाढ़ हर शहर के लिए ख़तरा बनता जा रहा है.

संसद में रखी गई कैग रिपोर्ट  
इस 21 जुलाई को सीएजी ने संसद में एक रिपोर्ट रखी. उस रिपोर्ट में 2007 से लेकर 2016 के बीच भारत के 17 राज्यों में बाढ़ नियंत्रण की क्या तैयारी है उसकी समीक्षा की गई है. आपको हैरानी होगी कि अगस्त 2016 तक देश के 15 राज्यों और कें शासित प्रदेशों में फ्लड फोरकास्टिंग सिस्टम ही नहीं लगा है, तय हुआ था कि 100 लगाएंगे. कई जगहों पर टेलीमेट्री स्टेशन बनना था, जिससे तुरंत का तुरंत डेटा मिल जाए, एक तो बना नहीं और जहां बना वहां उपकरण वगैरह चोरी या खराब हो गए. भारत में 4,862 बांध हैं मगर 90 फीसदी के पास आपातकालीन योजना नहीं है.

बिहार बाढ़ से बेहाल
बिहार की बाढ़ में न जाने कितनी सड़कें बह गईं. कोई पूछने और बताने वाला नहीं है कि नदी के बहाव के रास्ते में ये सड़कें कैसे बन गईं. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि अभी तक किसी भी राज्य ने अपने यहां बाढ़ के संभावित मैदानों की पहचान नहीं की है मतलब अगर पानी बढ़ा तो कहां तक फैल सकता है और उन इलाकों में घर दुकान नहीं बनाना है. सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि 1981 में राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने बाढ़ के संभावित मैदानों की पहचान का सुझाव दिया था. असम और यूपी को छोड़ किसी ने कोई काम नहीं किया. 1975 में सेंट्रल वाटर कमीशन ने राज्यों के लिए एक आदर्श बिल बना कर दिया, मणिपुर और राजस्थान को छोड़ कर किसी ने ऐसा बिल पास नहीं किया. बिल ही पास हुआ होगा, काम तो हुआ नहीं होगा. ये हाल है हमारे देश में बाढ़ नियंत्रण की. 

असम ने केंद्र से 2,392 करोड़ रुपये की मांग की 
बाढ़ के समय आप अक्सर सुनते होंगे कि मुख्यमंत्री ने प्रधानमंत्री से बाढ़ राहत के लिए इतने पैसे की मांग की है. इस साल के लिए असम ने केंद से 2,392 करोड़ रुपये की मांग की है. सीएजी की रिपोर्ट पढ़कर सन्न रह गया. असम ने 2007 से 2012 के बीच 2,043 करोड़ की मांग की थी, इस पैसे का चालीस फीसदी ही अभी तक मिला है. ज़ाहिर है बाढ़ का पुनर्वास भी एक घोखा है. Darryl D'Monte ने मुंबई की बाढ़ पर स्क्रोल डॉट इन पर लिखा है कि जुलाई 2005 में मुंबई में बाढ़ की तबाही के बाद भी बीएमसी और अन्य संस्थाओं ने कोई तैयारी नहीं की है. सब बहाने बना रहे हैं जो तर्क दिए जा रहे हैं वो टिकने वाले नहीं हैं. कई साल से एक ही जगह पर पानी जमा हो रहा है मगर वहां भी कुछ नहीं हुआ है.

1985 में हुई बारिश के बाद बीएमसी ने ब्रिटिश कंस्लटेंट वाट्सन हॉक्स्ले को नियुक्त किया कि वे शहर की योजना बना कर दें कि एक घंटे में 50 मिलिमीटर बारिश हो जाए तो कैसे निपटा जाए. आठ साल लगाकर रिपोर्ट तैयार की गई, लेकिन बीएमसी ने लागू करने में 12 साल और लगा दिए. इस प्रोजेक्ट का पूरा पैसा भी खर्च नहीं हुआ, न ही सारे सुझावों पर अमल किए गए. मुंबई की नदियं पोइसर, ओशिवारा, दहीसर, मिठी को आज़ाद करने की ज़रूरत है ताकि बारिश का पानी इनके ज़रिये बाहर प्रवाहित हो सके. मगर प्राकृतिक रास्तों का अतिक्रमण होता रहा है. अनदेखी होती रही है. बिल्डिंग बना देंगे तो पानी के निकलने का रास्ता कहां से निकलेगा.

मगर हम राजस्थान की बात करेंगे. हिन्दी में भी छप रही डाउन टू अर्थ पत्रिका की इस बार की कवर स्टोरी राजस्थान पर है. अनिल अश्विनी शर्मा ने राजस्थान के बाढ़ग्रस्त इलाकों पाली, सिरोही, जालौर, बाड़मेर और जैसलमेर की तीन दर्जन से अधिक गांवो का दौरा कर यह रिपोर्ट तैयार की है. राजस्थान में बाढ़ न केवल नियमित होती जा रही है बल्कि विनाशकारी रूप धरती जा रही है. राजस्थान के पाली ज़िले में पिछले ही महीने बाढ़ आई थी. बाढ़ का पानी तो उतर गया है मगर लोग सरकार का इंतज़ार कर रहे हैं कि उनके नुकसान की भरपाई करने कब आएगी.

यही पाली अगर मुंबई की पाली हिल्स होती तो टीवी वाले तूफान मचा देते. गनीमत है कि राजस्थान वाले पाली के स्थानीय लोग जनहित याचिकाओं के ज़रिए सरकार का ध्यान खींचने की कोशिश कर रहे हैं. पंह साल में बारिश वहां 15 फीसदी की रफ्तार से बढ़ती जा रही है. जलवायु परिवर्तन के कारण यह सब हो रहा है. इस साल राजस्थान के पांच ज़िलों के हज़ार से अधिक गांव बाढ़ से प्रभावित हुए हैं. बारिश के कारण नदियों की धारा बदल रही है. अनिल अश्वनी शर्मा की मेहनत से लिखी गई यह रिपोर्ट राजस्थान और बाढ़ के बारे में समझ ही बदल देती है. अच्छी बात है कि हिन्दी में ऐसी रिपोर्ट लिखी गई है. आमतौर पर पर्यावरण पर पढ़ने लायक लेख अंग्रेज़ी में ही लिखे जाते हैं. 

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