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This Article is From Aug 03, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या जीएसटी से टैक्स की चोरी रुक जाएगी?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 03, 2016 21:39 pm IST
    • Published On अगस्त 03, 2016 21:39 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 03, 2016 21:39 pm IST
भारत में केंद्र से लेकर राज्यों में सरकार भले ही अलग-अलग दलों की हो मगर आर्थिक नीतियां कमोबेश एक जैसी ही हैं. सबका मॉडल एक ही है लेकिन अब हर राज्य में एक ही प्रकार की कर प्रणाली होगी जिसका नाम जीएसटी है. गुड्स एंड सर्विसेज टैक्स. यह बदलाव आम उपभोक्ता को प्रभावित करने के साथ-साथ बड़ी कंपनियों से लेकर गांव कस्बों में चल रहे छोटे कारखाने और उत्पादों को भी प्रभावित करेगा. उससे कहीं ज्यादा केंद्र और राज्य में कर वसूली का जो मौजूदा ढांचा है उसे भी बदल देगा. जितनी उलझन आम दुकानदार को आएगी, उतनी ही परेशानी बड़े-बड़े कर अधिकारियों को भी आ सकती है. वन इंडिया वन टैक्स का नारा दिया गया है. वन टैक्स लग रहा है या टैक्स लगाने की कोई एक समान प्रणाली लाई जा रही है. दोनों में अंतर है. क्योंकि जीएसटी के तहत भी केंद्र के कर अलग हैं. राज्य के कर अलग हैं और शराब, तंबाकू और पेट्रोलियम पदार्थों के कर अलग हैं. जीएसटी एक छतरी है जिसके नीचे कई कमानियां हैं या जीएसटी बिना किसी कमानी की छतरी है. तकनीकि मामला है लेकिन आम अवाम को भी इसका सामना करना ही पड़ेगा. समझने में और बरतने में भी.

संविधान का 122वां संशोधन बिल राज्यसभा में पेश कर दिया गया है. यह बिल लोकसभा में पास हो चुका है. वित्त मंत्री ने कहा कि यह राज्यों की संप्रभुता का आत्मसमर्पण नहीं है बल्कि केंद्र और राज्य मिलकर पहले से बेहतर और आधुनिक कर प्रणाली की दिशा में बढ़ रहे हैं. जिससे ज़्यादा राजस्व पैदा होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था को गति मिलेगी. जीएसटी के कारण भारत में उत्पादों की आवाजाही पहले से कहीं ज़्यादा आसान हो जाएगी. कर चोरी बंद हो जाएगी. इंस्पेक्टर राज और टैक्स पर टैक्स लगने का दौर चला जाएगा. इससे केंद्र और राज्य दोनों को लाभ होगा.

राज्यसभा से पास होने के बाद राष्ट्रपति इसे सभी राज्यों की विधानसभा के पास भेजेंगे. जिनमें से 15 विधानसभाओं को मंज़ूरी देनी होगी। उसके बाद जीएसटी काउंसिल बनाने का काम शुरू होगा. जीएसटी काउंसिल के लिए नौकरशाही का नया ढांचा केंद्र और राज्य में बनेगा. मसलन केंद्र में प्रिंसिपल चीफ कमिश्नर ऑफ सेंट्रल जीएसटी जैसे पद होंगे तो राज्यों में स्टेट जीएसटी कमिश्नर होगा. इसके लिए अधिकारियों का प्रशिक्षण शुरू भी हो चुका है. केंद्र सरकार को दो जीएसटी कानून बनाने हैं. सेंट्रल जीएसटी और इंटर स्टेट जी एसटी. राज्य सरकारों को अपने अपने यहां स्टेट जीएसटी कानून पास करवाना होगा. लेकिन उससे पहले इन तीनों कानूनों के ड्राफ्ट पर जीएसटी काउंसिल में चर्चा होगी.

जीएसटी काउंसिल में किसी मुद्दे को तीन चौथाई मतों से ही पास कराया जा सकेगा. दो तिहाई मतदान का अधिकार राज्यों को दिया गया है. एक तिहाई मतदान का अधिकार केंद्र के पास रहेगा. बिना दोनों की व्यापक सहमति के जीएसटी काउंसिल में कोई प्रस्ताव पास नहीं हो सकेगा. केंद्र का राज्यों पर वीटो होगा और राज्यों का केंद्र पर.

वित्त मंत्री ने कहा है कि इन तीनों कानूनों के बनने के बाद और इसे लागू करने के लिए इंफॉर्मेशन टेक्नालजी का ढांचा खड़ा होते ही जीएसटी लागू कर दी जाएगीऋ. उन्होंने कोई तारीख तो नहीं बताई मगर कहा कि बहुत देर नहीं होगी। कई लोगों का कहना है कि नई कर प्रणाली के वजूद में आने में हो सकता है. एक से तीन साल का वक्त लग जाए. क्योंकि अभी वो समान दर क्या होगी इसका फैसला जीएसटी काउंसिल में होना है. समान टैक्स रेट को लेकर लगता नहीं कि एक दो बैठकों में मामला तय हो जाएगा. एक तरह से राज्यों का बजट क्या अब जीएसटी काउंसिल में बनने लगेगा. गैर भाजपा और गैर कांग्रेस दलों ने राज्यों के अधिकार को लेकर सवाल उठाए हैं.

बीजेडी सांसद ए यू सिंह देव ने कहा कि केंद्र के पास वीटो पावर क्यों होना चाहिए. ...राज्यों को ज्यादा वीटो पावर होना चाहिए. बसपा के सतीश मिश्रा ने कहा कि जीएसटी काउंसिल में वाइस चेयरमैन का पद होना चाहिए जो केंद्र में सरकार चला रही पार्टी और विपक्षी पार्टी से अलग हो ताकि संतुलन बना रहे. एनसीपी के प्रफुल्ल पटेल ने कहा कि बृहन मुंबई म्यूनिसपल कॉरपोरेशन का राजस्व कई राज्यों से ज्यादा है. अगर समय पर पैसा नहीं मिला तो मुंबई जैसे शहरों का काम रुक जाएगा. शिवसेना ने भी कहा कि जीएसटी के ज़रिये मुंबई को कमज़ोर करने की कोशिश हो रही है, मुंबई ने कभी केंद्र से पैसा नहीं मांगा लेकिन अब मुंबई का क्या होगा.

तृणमूल कांग्रेस के सांसद डेरेक ओ ब्रायन ने जीएसटी को गिरगिट समझौता टैक्स कहा है. उनकी पार्टी जीएसटी की समर्थक रही है लेकिन डेरेक ओ ब्रायन का कहना था कि इसे लेकर कांग्रेस और बीजेपी ने बच्चों सी राजनीति की है. इसे तुरंत लागू करना चाहिए. अर्थशास्त्री नरेंद्र जाधव ने कहा कि जीएसटी लागू होने से जीडीपी 1.5 प्रतिशत से दो प्रतिशत तक बढ़ जाएगी. सरकारों के लिए टैक्स वसूली का दायरा बढ़ जाएगा और काला धन घटेगा. पर नरेंद्र जाधव ने यह भी कहा कि सिर्फ जीएसटी से अर्थव्यवस्था की सारी बुराइयां दूर नहीं हो जाएंगी. जहां भी जीएसटी ठीक से लागू नहीं हुआ है वहां इसका फायदा नहीं हुआ है. नरेंद्र जाधव ने कहा कि अगर जीएसटी रेट अधिक हुआ तो ग़रीब लोगों पर मार पड़ेगी. सर्विस सेक्टर में टैक्स दर अधिक हुई तो अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचेगा. थोड़े समय के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और कपड़ा काफी महंगा हो सकता है.

कांग्रेस पार्टी की तरफ से बोलते हुए पी चिदंबरम ने सरकार से अपील की है कि सरकार बिल में ही 18 फीसदी के स्टैंडर्ड टैक्स रेट को जोड़ दे. दुनिया भर में टैक्स रेट 14.1 से लेकर 16.8 प्रतिशत है. भारत में भी अधिकतम दर तय हो जानी चाहिए. अगर जीएसटी आने के बाद भी 24 से 26 प्रतिशत का टैक्स लगता रहे तो कोई लाभ नहीं होगा. चिदंबरम ने कहा कि जीडीपी का 57 फीसदी सर्विस सेक्टर से आता है. अगर सर्विस टैक्स 14.5 से बढ़कर 24 प्रतिशत हुआ तो महंगाई बढ़ जाएगी. इसलिए 70 फीसदी वस्तु और सेवाओं पर 18 फीसदी से अधिक टैक्स नहीं लगना चाहिए.

सीपीएम सांसद सीताराम येचुरी ने जीएसटी को लेकर राज्यों के अधिकार में कटौती को रेखांकित किया. उन्होंने कहा कि टैक्स तय करने का अधिकार राज्य का होना चाहिए. येचुरी ने सेल्स टैक्स पर संविधान सभा में डॉक्टर अंबेडकर के कथन का ज़िक्र किया। उन्‍होंने कहा, 'मुझे ऐसा लगता है कि अगर हम प्रांतों को सेल्स टैक्स लगाने देते हैं तब प्रांत को आज़ादी होनी चाहिए कि वे अपनी स्थितियों के अनुसार सेल्स टैक्स की दरों में बदलाव कर सकें. इसलिए अगर केंद्र की तरफ से सीलिंग लगाई गई तो सेल्स टैक्स को लेकर बहुत दिक्कतें आएंगी. बेहतर है सेल्स टैक्स तय करने का अधिकार प्रांतों के पास रहे क्योंकि केंद्र के पास पर्याप्त संसाधन होते हैं.

येचुरी का कहना है कि अब राज्यों के पास सेल्स टैक्स का अधिकार नहीं रहेगा. राज्य अपना संसाधन कैसे बढ़ाएगा. येचुरी ने कहा कि जीएसटी अप्रत्यक्ष कर है. इसके कारण गरीबों पर बोझ पड़ता है. जैसे इस बजट में वित्त मंत्री ने कहा कि भारत में 37.7 प्रतिशत कर प्रत्यक्ष कर से आता है. जिसे आप इनकम टैक्स के रूप में जानते हैं. 62.3 प्रतिशत अप्रत्यक्ष कर से आता है, सेल्स टैक्स वैट टैक्स वगैरह। इंडोनेशिया जैसे देश में प्रत्यक्ष कर का हिस्सा 55.8 प्रतिशत है, दक्षिण अफ्रीका में 57.5 प्रतिशत है.

येचुरी तर्क कर रहे थे कि एक समय सदन में ही जीएसटी का रेट 27 फीसदी बताया गया था. अगर ऐसा हुआ तो अर्थव्यवस्था चरमरा जाएगी. तो यह सब दलीलें दी गईं. आशंका और संभावना को लेकर बातें हुई. कर प्रणाली में बदलाव अब तय है. क्या होगा हम नहीं जानते हैं. फ्रांस में 1954 में ही जीएसटी लागू हुई थी. फ्रांस की जीडीपी 1.16 प्रतिशत है. 140 देशों में जीएसटी है. चीन की जीडीपी 6.81 प्रतिशत है, जापान की जीडीपी 0.59 प्रतिशत है, जर्मनी की जीडीपी 1.51 प्रतिशत है, ब्रिटेन की जीडीपी 2.52 प्रतिशत है,

अमेरिका में जीएसटी नहीं है. वहां की जीडीपी 2.57 प्रतिशत है. भारत में इस वक्त जीएसटी नहीं है. भारत की जीडीपी 7.26 प्रतिशत है. सारे भाषण तो नहीं सुने लेकिन जितने भी वक्ताओं को सुना उनकी बातों में दुनिया भर में जीएसटी के क्या अनुभव रहे हैं इसका नाम मात्र का ही ज़िक्र रहा. एक नागरिक के तौर पर हम उन देशों के अनुभवों को जानने से वंचित रहे. हमें नहीं मालूम कि जिन 140 देशों में जीएसटी लागू हुई क्या सभी की जीडीपी में उछाल आया. भारत में जीएसटी के बाद डेढ़ से दो फीसदी की उछाल के दावे का आधार क्या है. क्या उन देशों में कर चोरी कम हो गई, काला धन कम हो गया. इसमें कोई शक नहीं कि भारतीय कर प्रणाली में बुनियादी सुधार की ज़रूरत है. क्या अब से चुंगी समाप्त हो जाएगी. ट्रकों को कोई नहीं रोकेगा. कर चोरी नहीं होगी. लघु व मध्यम उद्योग में करोड़ों लोग काम करते हैं. उन छोटे कारखानों को क्या वैसा ही लाभ होगा जो बड़े कारखानों को होगा.

नई प्रणाली है. इसके नए नए अनुभव होंगे और सुधार होता चलेगा. इतना बड़ा बदलाव एक बार में सर्वगुण संपन्न तो नहीं हो सकता लेकिन जो गुण है और जो दोष है उस पर हम बात तो कर सकते हैं. ताकि हम सबकी इस मसले पर समझ बेहतर हो. अगर इसकी संभावनाओं के बारे में पढ़ना है तो आप फ्लिपकार्ट के सचिन बंसल का लेख पढ़ सकते हैं जो 25 जुलाई के दिन इकोनोमिक टाइम्स में छपा था. जिसमें वो दावा करते हैं कि जीएसटी से ई-कामर्स में भयंकर उछाल आएगा. उनका कहना है कि जीएसटी से कर प्रणाली पहले से बेहतर होगी जिसका लाभ हर सेक्टर को मिलेगा. सख़्त आलोचना पढ़नी हो तो आप 19 दिसंबर 2015 के रोज़ कैच न्यूज़ पर छपे देवेंद्र शर्मा का लेख पढ़ सकते हैं.

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