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This Article is From Feb 23, 2016

प्राइम टाइम इंट्रो : क्या जेएनयू मामले में विवाद समझने की कोशिश भी हुई?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 23, 2016 23:16 pm IST
    • Published On फ़रवरी 23, 2016 21:18 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 23, 2016 23:16 pm IST
विधायक ज्ञानदेव आहूजा में वित्त मंत्री बनने की सारी ख़ूबियां हैं। वे जेएनयू की तथाकथित बुराइयों को ऐसे गिन गए जैसे वित्त मंत्री बजट भाषण में मनरेगा और मिड डे मील के लिए दिए गए अनुदानों को पढ़ रहे हों।

गिनने वाले की क्षमता और धीरज का मैं कायल हो गया हूं। 1019 एकड़ में फैले जेएनयू में बीड़ी के टुकड़ों को गिन लेना वो भी बिना ऐप्स के ये अपने आप में किसी अजूबे से कम नहीं है। वो भी सारे फिगर राउंड राउंड हैं। लगता है कि गिनने वाले ने एक एक बीड़ी की गिनती की है। जैसे 3000 से अधिक बीयर के कैन मिले हैं। 2999 नहीं। 2645 नहीं। 3001 कैन नहीं। ऐसी काउंटिंग तो चुनाव आयोग भी नहीं कर पाता होगा। अंकगणित की इस उत्तर आधुनिक आहूजा पद्धति के अनुसार जेएनयू में प्रति दिन मिलने वाले पदार्थों की पूर्ण संख्या इस प्रकार है।

- 4000 से अधिक बीड़ी के टुकड़े
- 10,000 से अधिक सिगरेट के टुकड़े
- 50,000 छोटी बड़ी हडि्ययों के टुकड़े
- 2000 चिप्स की थैलियां और नमकीन के रैपर
- 3000 से अधिक कंडोम
- 500 गर्भ गिराने के इंजेक्शन
- 100 सिल्वर रंग के कागज़ जिनसे ड्रग पी जाती है।

सोचिये अगर आहूजा जी ने प्रति दिन की जगह प्रति माह के हिसाब से ये आंकड़े दिये होते तो कितने डरावने लगते। मसलन 29 दिनों की फरवरी में 14 लाख पचास हज़ार मांस की छोटी बड़ी हड्डियां पाईं गईं।

31 दिनों वाले जनवरी में 93,000 कंडोम का इस्तेमाल हुआ। आहूजा जी ने जो बयान दिया है वो ख़तरनाक भी है और क्यूट भी है। अंग्रेज़ी में मासूमियत के लिए क्यूट का इस्तेमाल होता है। आहूजा जी ने ऐसी गिनती अगर पूरे भारत में करने की घोषणा कर दी तो तब क्या होगा। देश जहां हैं वहीं रुक जाएगा और गिनने लगेगा।

क्या आप उसके बारे में नहीं जानना चाहेंगे जो जेएनयू में रोज़ फेंके गए सिगरेट के टुकड़ों को गिन लेता हो। गिनने वाला तमाम टुकड़ों को हटा भी देता होगा ताकि अगले दिन वो नए टुकड़ों को गिन सके। छोटी बड़ी हड्डिओं की गिनती मैंने भी कभी नहीं देखी है। अगर जेएनयू में किसी ने ऐसी गिनती देखी है तो प्लीज़ उसका वीडियो वायरल कर दे। ऐसी गिनती पर केस स्टडी न करने के जुर्म में हार्वड के तमाम छात्रों को निलंबित कर दिया जाना चाहिए। कंडोम की गिनती कैसे हुई होगी। क्या गिनने वाला कमरे से लेकर झाड़ी तक में गया होगा। पार्थसारथी रॉक का ट्रैक रिकॉर्ड भी अलग से गिना जाना चाहिए था।

जिस तरह से नेता जेएनयू की शान बढ़ा रहे हैं उसे देखते हुए जेएनयू को उन्हें एक कोर्स ऑफर करना चाहिए। जेएनयू को जानो। इस कोर्स में नेताओं से कहा जाए कि सुबह उठकर वो हड्डियों से लेकर सिगरेट की गिनती करेंगे।

कई लोगों ने जेएनयू को गरिआया है लेकिन आहूजा जी अकेले हैं जिन्होंने सब गिनकर बताया है। उन्हीं से आइडिया आ रहा है कि बीएचयू से लेकर केयु तक जितने भी यू हैं वहां ऐसी गिनती होनी चाहिए।

इसके लिए बीड़ी हड्डी कंडोम गणना आयोग का गठन किया जाए जिसका अध्यक्ष सिर्फ मुझी को बनाया जाए। आहूजा जी यहां तक कह गए कि छात्राओं के साथ कुकर्म होता है। वहां बच्चे नहीं दो बच्चों के बाप पढ़ते हैं। जब बीड़ी के टुकड़े गिन रहे थे तो उससे तो अच्छा होता कि इन बापों के बच्चों को भी गिन लेते।

ईश्वर ने आहूजा जी को अच्छी सेहत ही नहीं, गणित का ज्ञान भी बेजोड़ दिया है और नाम भी ज्ञानदेव आहूजा दिया है। फिर भी मैं गुज़ारिश करूंगा कि जिसने भी उन्हें ये तथ्य दिये हैं वे एक बार फिर से विचार करें। राजनीतिक जीवन में ऐसी नादानी हो जाती है। ज़रूर उन्हें ये सब व्हाट्सऐप से मिला होगा जो उन्हीं की समर्थक विचारधारा के लोगों ने फैलाये होंगे। विधायक जी ने जेएनयू की लड़कियों के बारे में जो कहा है उससे उन्हें तो कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन जो लड़कियां जेएनयू में नहीं पढ़ती हैं वो समझ लें कि ऐसी मानसिकता को बढ़ावा मिला तो एक दिन चार लोग गुट बनाकर उन्हें उनके ही मोहल्ले में बदनाम कर जायेंगे। यह बयान जितना जेएनयू विरोधी नहीं है उससे कहीं ज्यादा नौजवान लड़कियों के ख़िलाफ है। काफी लोकप्रिय विधायक रहे होंगे आहूजा जी तभी वे राजस्थान के रामगढ़ से तीन बार चुने गए हैं। उनकी योग्यता के बारे में लिखा है कि बीए प्रथम वर्ष तक ही पढ़ सकें। यानी आगे के दो वर्षों की कक्षा का ज्ञान प्राप्त नहीं हो सका इसके बावजूद ज्ञानदेव जी के ज्ञान में कोई कमी नहीं आई। आहूजा जी पत्रकार भी रहे हैं। कबड्डी, खोखो खेलते रहे हैं और आरएसएस से भी जुड़े रहे हैं।

जेएनयू के बारे में कई लोग तरह तरह के बयान दे रहे हैं। आहूजा जी ने जो कहा उसका ज़िक्र इसलिए कर रहा हूं कि ये बयान सबका चरम है। उनकी बात पर हंसी तो आती है लेकिन जिस तरह से जेएनयू के बारे में बातें कही जा रही हैं उस पर बात करना चाहिए। कुछ लोग जेएनयू का नाम बदलने की बात कर रहे हैं तो कुछ बंद कर देने की बात कर रहे हैं।

साध्वी प्राची का बयान है कि जेएनयू को जमात उद दावा का मुखिया हाफिज़ सईद पैसे देता है। सांसद महेश गिरि ने कहा कि जेएनयू गद्दारों का अड्डा है। सांसद योगी आदित्यनाथ ने कहा कि वहां बीफ पार्टी होती है, महिषासुर जयंती मनती है, जहां ये सब होगा उसे बंद कर देना चाहिए। बीजेपी सदस्य सुब्रह्ण्मयम स्वामी ने कहा है कि जेएनयू को चार महीने के लिए बंद कर देना चाहिए। इसके बाद सभी होस्टलों में रहने वालों की जांच होनी चाहिए। जिन छात्रों ने भी अपने अंडरग्रेजुएट कोर्स चार साल में और मास्टर्स डिग्री तीन साल में पूरे ना किए हों उन्हें यूनिवर्सिटी से निकाल दिया जाना चाहिए।

हाल ही में प्रधानमंत्री ने सईद आसिफ इब्राहीम को पश्चिम एशिया और काउंटर टेररिज्म के लिए विशेष दूत नियुक्त किया है। अरविंद गुप्ता जो उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हैं उन्होंने भी जेएनयू से पीएचडी की है। सेना से लेकर पुलिस तक में जेएन यू के तमाम छात्र हैं। अगर वहां हाफिज़ सईद के पैसे से गतिविधियां चल रही हैं तब तो सरकार को सबसे पहले यही बताना चाहिए। विदेश सचिव भी जेएनयू के ही हैं। इन सब छात्रों ने कभी तो देखा सुना होगा कि वहां हाफिज़ सईद के जमात उद दावा से पैसे आ रहे हैं। आतंकी गतिविधियां चल रही हैं।

मैं जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय में नहीं पढ़ सका लेकिन क्या सचमुच जेएनयू इतना बुरा है। क्या जेएनयू को लेकर कोई कुंठा है जो मौजूदा प्रकरण के बहाने सामने आ रही है। क्‍या वहां छात्राओं के साथ कुकर्म होता है। क्या वहां नंगा नाच होता है। सोचिये इन बातों को सुनने के बाद छात्र छात्राएं जब जेएनयू से अपने गांव कस्बों की तरफ जाएंगे तो उन्हें किस हिकारत का सामना करना पड़ेगा। कन्हैया एक गरीब परिवार का लड़का है। ये जेएनयू ही है कि वहां इस तबके का छात्र पहुंचता है। उसी जेएनयू में बड़ी संख्या में छात्र अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से भी जुड़े हैं। क्या वे इस चरित्र हनन का शिकार नहीं होंगे। जेएनयू में बेशक बुराइयां होंगी। वो कोई स्वर्ग नहीं है लेकिन क्या वो नरक ही है। आज की बहस का मकसद ही यही है कि क्या हम जेएनयू का कोई संतुलित मूल्यांकन कर सकते हैं। ऐसा नहीं है कि वहां से आरएसएस के बारे में अनाप शनाप बातें नहीं कहीं गई हैं। बिल्कुल कही गई हैं और कही जाती हैं। वैसे ही जैसे जेएनयू का चित्रण होता है संघ का भी होता है। लेकिन जब ये धारणाएं जेएनयू से बाहर छलकती हैं तो क्या जेएनयू जेएनयू रह जाता है।

कुछ देशभक्तों को यह बता देना ज़रूरी है कि राष्ट्रीय सुरक्षा अकादमी एनडीए से पास होकर थल सेना, वायु सेना और नौसेना के जो अफसर बनते हैं उन्हें जेएनयू की ही डिग्री मिलती है। कम से कम जेएनयू के कारण बजट पर लोगों का ध्यान नहीं गया। अर्थव्यवस्था की हालत की समीक्षा नहीं हुई। बैंकों की खस्ता हालत पर बात नहीं हुई। 30 महीने में डॉलर के मुकाबले रुपया निम्नतम स्तर पर है। इस पर भी बात नहीं हुई। जेएनयू का इतना योगदान तो स्वीकार किया ही जाना चाहिए। जेएनयू के बारे में जो कहा जा रहा है वो आपको जेएनयू के बारे में कहां ले जा रहा है।

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