लगता है बात चुभ गई है। इतनी चुभ गई है कि 24 घंटे बाद पता चला कि बोलने वाला शैतान था। बोलने वाले को बर्गर औ बैंगन का फर्क नहीं मालूम। बोलने वाला तो पाश्ता खाता है। पालक क्या क्या स्वाद जाने। सूट बूट की सरकार और बड़े लोगों की सरकार वाली बात चुभ गई है। वैसे नकवी साहब को कैसे पता कि राहुल गांधी को पास्ता पसंद है। कभी साथ नाश्ता तो नहीं किया है। पास्ता का संबंध इटली है वैसे नाश्ते में वह बच्चे भी टिफिन में पास्ता लेकर जाते हैं जिनकी तमाम पीढ़ियों में कोई इटली नहीं जा सका है।
संसद में जब राहुल गांधी मोदी सरकार पर निशाना साध रहे थे, तब आपने देखा होगा कि वेंकैया नायडू उन्हें बोलने दे रहे थे बल्कि अपने साथियों को भी हंगामा करने से मना कर रहे थे। कहा भी कि हंगामा करने की विपक्ष बीमारी सत्ता पक्ष में भी आ गई है। तब लगा कि कम से कम वेंकैया साहब हैं, जो इस बीमारी से बचे हैं और विरोधी को बोलने देने के लिए स्पेस बना रहे हैं।
वैसे वेंकैया की चुटकियों का मैं हमेशा से कायल रहा हूं। मीडिया का हेडलाइन हमारे लिए डेडलाइन नहीं है। कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने भी बिना किसी कटुता के विस्तार से बताया और राहुल गांधी को जवाब देने का प्रयास भी किया। कल की रिकार्डिंग आप देखेंगे तो लगेगा कि तकरारें हुईं मगर टकराव नहीं हुआ। लेकिन 24 घंटे बाद ऐसा क्या हो गया कि बीजेपी को लगा कि राहुल गांधी के भाषण को शैतान का प्रवचन कहना चाहिए। कहीं आज बीजेपी की संसदीय दल की बैठक में तो यह तय नहीं हुआ कि करारा जवाब नहीं दे सके, तो क्या हुआ अब दिया जाना चाहिए। फिर बीजेपी के नेता खुद से ही हमले करने लगे।
चुनाव के दिनों में राहुल गांधी को शहजादा कहा गया। मां-बेटे की सरकार तो याद ही होगा। ये सब तो चलता है, मगर सूट-बूट की सरकार क्या इसलिए नहीं चल सका क्योंकि सरकार अपनी छवि को लेकर लगातार सजग होती जा रही है। रविवार को प्रधानमंत्री ने साफ साफ कहा कि गरीबों के लिए मकान बनाएंगे तो मुकेश अंबानी तो नहीं रहेंगे उसमें। फिर भी क्या शैतान कहा जाना सही है? क्या राहुल गांधी का भाषण शैतान का प्रवचन था?
वैसे इस तरह के बयानों पर जाएंगे तो कांग्रेस बीजेपी के खजाने से इतने बयान निकलेंगे कि आप तराज़ू लेकर तौलते रह जाएंगे। हो सकता है कि इस बहस में कोई जीत जाए, लेकिन अकोला का इंगले परिवार कभी नहीं जीत पाएगा। आज इंगले ने अपनी पत्नी और तीन बच्चों के साथ अपने ही खेत में खुदकुशी कर ली। होना तो यह चाहिए था कि इस मामले में बहस कर रही संसद संयुक्त रूप से संवेदनशीलता ज़ाहिर करती है और कहती कि जब हम इस मसले पर बहस कर रहे हैं, जब बता रहे हैं कि कितना काम हो रहा है, जब हम कह रहे हैं कि और अधिक काम करेंगे तब भी कोई किसान आत्महत्या कर ले तो ज़रूर हम सब की नाकामी है। कोई नेता इस सामूहिक नाकामी पर अफसोस ज़ाहिर करते हुए ट्वीट भी कर सकता था, क्या पता किया भी हो।
वैसे यह नाकामी सिर्फ राजनीतिक सिस्टम की नहीं है। हमारे समाज की भी है। किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ रहा है कि किसान मर रहे हैं। सरकारी आंकड़े के अनुसार महाराष्ट्र में जनवरी से मार्च के बीच 601 किसानों ने आत्महत्या की है। महाराष्ट्र में विदर्भ से ही मुख्यमंत्री हैं जहां 300 किसानों की मौत की खबर है।
महाराष्ट्र में अकाल पीड़ित किसानों की संख्या करीब एक करोड़ बताई जा रही है। आंकड़े अलग-अलग हैं मगर सरकार ने 4000 करोड़ का राहत पैकेज देने की घोषणा की है। अलजेबरा की जगह सिंपल अंकगणित लगायेंगे तो हर किसान को 2000 रुपया भी नहीं मिलेगा। यहां किसान कर्ज़ माफी की मांग कर रहे हैं। बीजेपी के उस वादे का आसरा देख रहे हैं कि उसने चुनावी घोषणापत्र में कहा था कि किसानों को लागत पर पचास फीसदी का मुनाफा दिया जाएगा।
विदर्भ अगर जंतर-मंतर के बगल में होता तो सारे प्रदर्शन वहीं होते, लेकिन जंतर-मंतर या रामलीला मैदान से लाइव कवरेज़ पूरे देश में हो जाता है तो खेत खलिहान में जाकर किसान नेता बनने की ज़रूरत क्या है। क्या बड़े नेताओं को दिल्ली के साथ-साथ राज्यों की राजधानियों में जाकर प्रदर्शन का नेतृत्व नहीं करना चाहिए, ताकि उन पर भी तेज़ी से काम करने का दबाव बढ़े।
ज़मीन पर हालत बहुत ख़राब है। दिल्ली से आंकड़े गिना दिए जा रहे हैं मगर ज़मीन पर बराबरी से नज़र नहीं आते हैं। केंद्र सरकार मंत्रियों के दौरे बात कहती है पर यह नहीं बताती है कि उन दौरों को रिज़ल्ट क्या निकला। काम में तेजी आई या राज्य सरकार से अलग हालात का जायज़ा मिला।
राज्यवार दौरा तो कांग्रेस के नेताओं ने भी किया। पंजाब से लेकर मध्य प्रदेश तक। पर उससे क्या हुआ? क्या सिस्टम पहले से बेहतर काम करने लगा? नए पुराने बयानों को निकाल कर एक दूसरे की गर्दन पकड़ी जा रही है। वेकैंया नायडू ने कहा है कि कांग्रेस के 50 साल के शासन में सैंकड़ों अध्यादेश जारी किए गए। वेकैंया राहुल गांधी के अध्यादेश के जरिये भूमि अधिग्रहण बिल पास करने के आरोप का जवाब दे रहे थे। उन्हें एनडीए के छह साल के अध्यादेशों का भी बताना चाहिए था।
छह जनवरी के इंडियन एक्सप्रेस में नलसर यूनिवर्सिटी ऑफ लॉ के वाइस चांसलर फैज़ान मुस्तफा ने अध्यादेशों की यात्रा पर एक अच्छा लेख लिखा है, अमरीका और इंग्लैंड की कार्यपालिका को अध्यादेश का इख्तियार नहीं है, लेकिन भारत में यह व्यवस्था है। नेहरू के समय जब अध्यादेशों का सिलसिला शुरू हुआ, तब लोकसभा के पहले स्पीकर मावलंकर साहब ने नेहरू की आलोचना की थी अध्यादेश जारी करना अलोकतांत्रित है। भारत में 1952 से 2014 के बीच 668 अध्यादेश जारी किये गए हैं। राज्यों में तो यह आंकड़ा और भी खराब है। आप दर्शकों को यह भी पता करना चाहिए कि किस पार्टी की राज्य सरकार में अध्यादेश कम हैं या ज्यादा हैं।
फैज़ान मुस्तफ़ा ने लिखा है कि बिहार में 1967 से 81 के बीच 256 अध्यादेश आए। कई अध्यादेश तो 13 साल तक जारी होते रहे। 18 जनवरी 1986 को राज्यपाल जगन्नाथ कौशल ने एक दिन में 58 अध्यादेश जारी किए थे जो कि एक रिकॉर्ड है।
दूसरे राज्यों का अध्ययन हो तो वहां भी यही तस्वीर निकलेगी।
जब यूपीए सरकार ने भ्रष्टाचार विरोधी 6 अध्यादेश लाने का प्रयास किया था तब बीजेपी ने ज़ोर शोर से विरोध किया था, लेकिन 16 मई को सरकार बनते ही अपनी पसंद के अधिकारी के लिए मोदी सरकार सबसे पहले अध्यादेश का ही सहारा लेती है।
अब यह समझना मुश्किल है कि अध्यादेश को लेकर दोनों कह क्या रहे हैं। क्या दोनों अध्यादेश का विरोध कर रहे हैं या ये बता रहे हैं कि आप कर सकते हैं तो हम भी करेंगे। पूछने के लिए पूछ सकते हैं कि इस मामले में क्या सरकार नेहरू के रास्ते पर चलना चाहती है या योजना आयोग की तरह अध्यादेश की परंपरा को बंदकर मावलंकर साहब के बताए रास्ते पर चलना चाहती है। शैतान का प्रवचन बनाम सूट बूट की सरकार। प्राइम टाइम
This Article is From Apr 21, 2015
भूमि अध्यादेश पर सियासी खींचतान
Ravish Kumar, Saad Bin Omer
- Blogs,
-
Updated:अप्रैल 21, 2015 22:16 pm IST
-
Published On अप्रैल 21, 2015 22:13 pm IST
-
Last Updated On अप्रैल 21, 2015 22:16 pm IST
-
NDTV.in पर ताज़ातरीन ख़बरों को ट्रैक करें, व देश के कोने-कोने से और दुनियाभर से न्यूज़ अपडेट पाएं
कांग्रेस, राहुल गांधी, किसान, फसल बरबाद, पीएम नरेंद्र मोदी, वेंकैया नायडू, मुख्तार अब्बास नकवी, भूमि अधिग्रहण अध्यादेश, Congress, Rahul GAndhi, Farmer, Crop Loss, Prime Minister Narendra Modi, Venkaiah Naidu, Mukhtar Abbas Naqvi, Land Acqisition