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This Article is From Jun 26, 2015

ललित मोदी ने एक-एक कर सबको लपेटा

Ravish Kumar
  • Blogs,
  • Updated:
    जून 26, 2015 21:44 pm IST
    • Published On जून 26, 2015 21:38 pm IST
    • Last Updated On जून 26, 2015 21:44 pm IST
पहले माना कि कोई दस्तावेज़ नहीं है, फिर कहा कि दस्तख़त नहीं है फिर दस्तखत आ गया तब कहा गया कि कौन कहता है कि दस्तवाजे सही है या नहीं, जब उसके सही होने की बात मज़बूत होती गई तो अब बीजेपी ने एक नया सही खोज लिया है। बीजेपी इस नतीजे पर पहुंची है कि हलफनामा भी है, सिग्नेचर भी है मगर वसुंधरा ने उसे कोर्ट में जमा नहीं किया और गवाही नहीं दी।

वसुंधरा राजे को दो हफ्ते में यह सब याद आया या इस बार बीजेपी ने मुकम्मल कर लिया है कि उनसे कोई ग़लती नहीं हुई। सूत्र बोलने लगे हैं कि बीजेपी वसुंधरा को लेकर आक्रामक होने जा रही है। प्रवक्ताओं से कह दिया गया है कि बचाव की मुद्रा में न रहें। वैसे आपने देखा क्या कि बीजेपी आक्रामक नहीं थी या बचाव नहीं कर रही थी लेकिन राजनीति माहौल बनाने का भी एक नाम है।

आरोप मुक्त ऐलान से पहले दिल्ली में बीजेपी के शीर्ष नेताओं ने मिलकर चर्चा की। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मुलाकात की। वित्त मंत्री ने प्रधानमंत्री से भी किन्हीं अन्य संदर्भ में मुलाकात की जहां वसुंधरा प्रकरण पर भी चर्चा हुई। सूत्रों ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को भी आगे कर दिया कि संघ ने कह दिया कि बचाव की मुद्रा में आने की कोई ज़रूरत नहीं है। संघ बिहार चुनाव से पहले किसी तरह की कार्रवाई के ख़िलाफ़ है।

जयपुर में आज प्रदेश बीजेपी के अध्यक्ष अशोक परनामी ने कहा कि वसुंधरा जी ने तब कहा कि था मुझे डाक्यूमेंट के बारे में पता नहीं है। ये ड्राफ्ट स्टेटमेंट था जिसे जमा करने के लिए वसुंधरा राजे लंदन के किसी अदालत में उपस्थित नहीं हुई। प्रवक्ताओं ने कहा कि ये जानकारी में लाना आवश्यक है कि यूके सिविल प्रोसिजर रूल 1998 के अनुसार ऐसा ड्राफ्ट स्टेटमेंट ना तो witness statement है, ना ही शपथ पत्र है, ना ही न्यायालय में दिए गए बयान, ना ही न्यायलय में दिए गए साक्ष्य की परिभाषा में आता है। जिस ड्राफ्ट स्टेटमेंट की चर्चा की जा रही है जिसे अनावश्यक तूल दिया जा रहा है।

बीजेपी नेता ने एक नए प्रकार का तर्क दिया कि हलफनामे के अंतिम पन्ने पर वसुंधरा राजे के दस्तखत तो हैं लेकिन सभी पन्नों पर नहीं हैं। तो दो हफ्ते बाद बीजेपी को यह पता चल गया कि वसुंधरा राजे ने हलफनामे पर दस्तखत तो किया मगर वो वहां की अदालत में जमा नहीं हुआ इसलिए कोई नैतिक या कानूनी या राजनीतिक अपराध नहीं हुआ है। मोन्टिनिग्रो में ललित मोदी ने इंडिया टुडे के राजदीप सरदेसाई से कहा था...
राजदीप- तो वसुंधरा ने आपके लिए खुलेआम गवाही देने की पेशकश की या आपने उन्हें ऐसा करने के लिए कहा।
ललित मोदी- नहीं, वो तो खुलकर मदद करने के लिए तैयार हुईं लेकिन दुर्भाग्य से जब मामला ट्रायल में पहुंचा, वे मुख्यमंत्री बन चुकी थीं, इसलिए वे गवाही के लिए नहीं आ सकीं। जो बयान उन्होंने दिया वो अदालत के रिकॉर्ड में हैं।

ललित मोदी के इस बयान के अनुसार बीजेपी की एक बात सही लगती है कि उन्होंने वहां की अदालत में गवाही नहीं दी, लेकिन बीजेपी का यह बयान कि वसुंधरा का हलफनामा वहां की अदालत में जमा नहीं हुआ, संदेह के घेरे में रह जाता है क्योंकि ललित मोदी ने साफ कहा है कि वो अदालत के रिकॉर्ड पर है। लेकिन एनडीटीवी को मिले दस्तावेज़ के अनुसार जुलाई 2013 में लंदन की अपर ट्राइब्यूनल ने फैसला देते वक्त नीचली अदालत के फैसले को सही माना है और कहा है कि दावेदार की ज़िंदगी को ख़तरा बरकरार है और भारतीय प्रशासन ने राजनीतिक कारणों से दावेदार की सुरक्षा को कम कर दिया है, यह सब विश्वसनीय गवाहों के हलफमाने से साबित होता है।

जिन तीन लोगों ने ललित मोदी के लिए हलफानामा दिया और जिसे अदालत ने अपना आधार बनाया उसमें वसुंधरा राजे का हलफनामा भी था। इससे पहले की मामला ठंडा पड़ता दुष्यंत सिंह और ललित मोदी के कारोबारी रिश्ते वाले मामले में कुछ और बातें सामने आ गईं।

लंदन में जाकर वसुंधरा ने गवाही भले न दी हो लेकिन कांग्रेस के लगाए इस आरोप के अनुसार वे 2012-13 के साल में ललित मोदी की कंपनी के साथ कारोबार कर रही थीं। आरोप लगा था कि दुष्यंत की कंपनी ने 2007 में ललित मोदी से 3 करोड़ 80 लाख का लोन बिना गारंटी के लिए था। इस लोन पर 16 लाख 50 हज़ार का ब्याज़ दिया गया और टैक्स भी काटा गया जिसका ज़िक्र आयकर रिटर्न में हुआ है। धौलपुर महल, आगरा और लखनऊ की संपत्तियों को होटल को बदलने पर शेयर में बदला गया और तभी दस रुपये का शेयर 96 हज़ार रुपये में दिया गया।

बीजेपी ने बताया कि 10 रुपये का शेयर 96 हज़ार का इसलिए हुआ क्योंकि कंपनी की संपत्ति में वसुंधरा राजे के महलों के दाम जुड़ गए लेकिन तथ्य कुछ और लगते हैं। बीजेपी का दावा है कि धौलपुर पैलेस के कारण दुष्यंत की कंपनी का मूल्य बढ़ गया। धौलपुर पैलेस की लागत 380 करोड़ के आस पास आती है। कंपनी के बहिखाते में संपत्ति के रूप में धौलपुर पैलेस का ज़िक्र ही नहीं है। बहिखाते में अचल संपत्ति 2006 से 2009 के बीच 9 करोड़ ही दिखाई गई है। यही नहीं दुष्यंत सिंह ने अपने 2012-13 के इनकम टैक्स रिटर्न में धौलपुर पैलेस को आश्रित संपत्ति के रूप में दिखाया था और उसमें इसका वैल्यू 16 करोड़ बताया गया था। ललित की कंपनी ने कथित रूप से एक शेयर 96,190 के भाव से खरीदा। 415 शेयर की कीमत रही 4 करोड़ 4 लाख।दुष्यंत की पत्नी ने 10000 नियंत शेयर खरीदे, हर शेयर की कीमत थी 10 रुपये।

2013 के अपने चुनावी हलफनामे में वसुंधरा राजे ने बताया है कि उनके पास नियंत हेरिटेज होटल में 3280 शेयर हैं। इसमें ललित मोदी की आनंद हेरिटेज ने 11 करोड़ निवेश किये। आठ करोड़ मलेशिया में रजिस्टर्ड एक फर्ज़ी कंपनी बनाकर और 3 करोड़ शेयर के ज़रिये। यह ज़रा तकनीकी मामला है लेकिन शुक्रवार सुबह जब ललित मोदी ने ट्वीट किया कि लंदन में प्रियंका गांधी और रॉबर्ट वाड्रा से मुलाकात हुई थी, कांग्रेस की सांस फूल गई। ललित मोदी कांग्रेसी नेताओं के नाम भी लेते रहे हैं। उनका ट्वीट था, 'लंदन में गांधी परिवार से मिलकर ख़ुशी हुई थी। प्रियंका और रॉबर्ट वाड्रा से मैं अलग-अलग रेस्टोरेंट में मिला था। वे लोग टिमी सरना के साथ थे। उनके पास मेरा मंबर है। वे मुझे फोन कर सकते हैं। मैं उन्हें बताऊंगा कि मैं उनके बारे में क्या महसूस करता हूं। मैं बिल्कुल खरी बात कहूंगा, कोई सौदा नहीं करूंगा। अगर मुझे याद है तो पिछले और उसके पिछले साल ये मुलाक़ात हुई थी। तब वे सत्ता में थे।'

कांग्रेस कहती है बीजेपी ध्यान भटकाने के लिए आरोप लगा रही है, दोनों का मिलना अपराध नहीं है। अब यहां दो बात है। कांग्रेस भूल गई कि ट्वीट बीजेपी ने नहीं, ललित मोदी ने किया है और यह साबित होना है कि तय मुलाकात थी या अचानक। अगर तय थी तब यह सवाल बनता है कि जो भारत के कानून से भागा है उसके साथ लंच डिनर कैसे किया जा सकता है। प्राइवेट इंडिविजुअल वाला अभी याद नहीं दिलाऊंगा।

कई मामलों में यह कोयला खदान घोटाले जैसा है जब मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भी खदानों के आवंटन में घपले के आरोप लगते थे। इसके बाद भी मनमोहन सरकार कोयला घोटाले से अपना दामन नहीं बचा सकी। क्रिकेट और कोयला में कोई अंतर नहीं रहा।

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