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This Article is From Jun 06, 2017

प्राइम टाइम इंट्रो : क्‍या सिर्फ़ आश्‍वासनों से भरेगा किसान का पेट?

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जून 07, 2017 14:10 pm IST
    • Published On जून 06, 2017 21:50 pm IST
    • Last Updated On जून 07, 2017 14:10 pm IST
मार्च के मध्य में जंतर-मंतर पर तमिलनाडु के किसानों ने कई दिनों तक अपना प्रदर्शन किया. हर दिन उनका प्रदर्शन एक नए स्तर पर पहुंचता रहा, मगर अंत में नतीजे पर नहीं पहुंचा. वही आश्‍वासन लेकर लौटना पड़ा. किसानों के ज़्यादातर आंदोलन की सबसे बड़ी सफलता यही होती है, आश्‍वासन. एक आश्‍वासन से दूसरे आश्‍वासन के बीच किसान झूलता रहता है. उसकी समस्याएं वहीं की वहीं रहती हैं. काश हमारे पास कोई आंकड़ा होता, जिससे हम बता देते कि इस साल इतने प्रदर्शन हुए और उन सबके अलग-अलग नतीजे क्या रहे. मध्यप्रदेश में आज गोली लगने से मारे जाने वाले किसानों की तादाद अब पांच हो गई है.

राज्य के गृहमंत्री का बयान है कि किसानों की मौत पुलिस और वहां तैनात सीआरपीएफ जवानों की गोली से नहीं हुई है. दोनों ने किसानों पर गोली नहीं चलाई है. किसान एक जून से दस दिनों के हड़ताल पर हैं. उनकी मांग है कि कर्ज़ माफ हो, सब्ज़ी की उचित कीमत मिले. उज्जैन, शाजापुर, आगर-मालवा, इंदौर, धार, रतलाम, नीमच, मंदसौर में हड़ताल का असर देखा गया है. कई जगहों पर किसानों ने फल-सब्ज़ी लेकर मंडी जा रहे ट्रकों को रोका है. कई जगहों पर प्रदर्शन उग्र हुए हैं और पुलिस और किसानों के बीच टकराव की घटनाएं हुई हैं. मंदसौर में किसानों की मौत के बाद कर्फ्यू लगा दिया गया है. बुधवार को मध्यप्रदेश बंद का आह्वान किया गया है. पश्चिमी मध्यप्रदेश में इंटरनेट सेवा बंद कर दी गई है. इंदौर में किसानों को शांति मार्च निकालने की अनुमति नहीं मिली तो किसान आक्रामक होने लगे... मगर वहां कोई अनहोनी नहीं हुई. ज़िला कलेक्टर के ऑफिस के बाहर किसानों ने एडीएम को ज्ञापन दिया, लेकिन किसानों का दावा है कि वहां से लौटते वक्त पुलिस ने उन पर लाठी चार्ज किया.

हमारे सहयोगी अनुराग द्वारी ने राज्य के गृहमंत्री भूपेंद्र सिंह से बात की. उनका कहना था कि मंदसौर और नीमच में 5-6 दिनों से किसानों की आड़ में असामाजिक तत्व लूटपाट कर रहे थे. गाड़ियों में आग लगाई जा रही थी. इसके बाद भी सरकार का निर्देश है कि किसानों पर कोई कार्रवाई न की जाए. लगातार एंटी सोशल एलिमेंट पुलिस पर हमला कर रहे हैं और अब हमने आदेश जारी किया है कि अगर कहीं पर किसानों के नाम पर एंटी सोशल एलिमेंट पुलिस पर हमला कर रहे हैं तो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई हो. ये उनके ही बयान का हिस्सा है जो मैंने पढ़ा है. 

गृहमंत्री के अनुसार, सिर्फ दो ज़िलों में आंदोलन है. प्रदेश में कहीं पर किसानों की तरफ से कोई आंदोलन नहीं है. इसके पीछे कांग्रेस और एंटी सोशल एलिमेंट्स का हाथ है. वैसे, आजकल एंटी सोशल एलिमेंट भी किसान आंदोलन करते हैं. ये बात कुछ नई है. मंदसौर की सांसद कांग्रेस से हैं, मगर मंदसौर विधानसभा की आठ विधानसभा सीटों में से सात पर बीजेपी का कब्ज़ा है. एक विधानसभा की सीट कांग्रेस के पास है. महाराष्ट्र में भी किसान एक जून से ही आंदोलनरत हैं.

यहां किसानों ने छठे दिन भी अलग-अलग जगहों पर तहसील कार्यालयों को बंद कर दिया. शहरों की तरफ जाने वाली दूध और सब्ज़ियों की गाड़ियों को रोकने का ऐलान किया गया. बीड, अहमदनगर, कोल्हापुर, पुणे, नासिक, औरंगाबाद, सांगली, लातूर में किसानों की हड़ताल का असर दिखाई दे रहा है. मुख्यमंत्री का कहना है कि सरकार किसानों के साथ खड़ी है, मगर कुछ लोग किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति कर रहे हैं. यह एक तरह से पाप है. मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र दोनों जगहों पर सरकार की नज़र में किसान आंदोलन की विश्वसनीयता संदिग्ध है. उनके किसान होने पर शक है. सरकारों को लगता है कि विरोधी दल किसानों के कंधे पर बंदूक रखकर राजनीति कर रहे हैं और पाप कर रहे हैं. और किसान बड़े सीधे हैं वो अपने कंधे पर कांग्रेस को बंदूक रखने दे रहे हैं. वैसे शिवसेना ने किसानों को अपना समर्थन दिया है. यह सही है कि किसानों के आंदोलन में कई संगठन शामिल है. इनका आरोप है कि सरकार किसानों के संगठनों को बांट रही है. कुछ किसानों ने मुख्यमंत्री का प्रस्ताव स्वीकार किया है तो कुछ का कहना है कि वे आश्‍वासन से नहीं मानने वाले.

बेहतर है सीधे किसानों की मांग पर ही आ जाते हैं. किसान मुख्य रूप से दो ही चीज़ों की मांग कर रहे हैं. मध्यप्रदेश में भी और महाराष्ट्र में भी... उपज का सही दाम मिले और कर्ज़ा माफ हो. बीजेपी ने लोकसभा चुनाव के वक्त किसानों से वादा किया था. हिन्दी वाले घोषणापत्र के पेज नंबर 26 पर लिखा है कि...ऐसे कदम उठाए जाएंगे कि जिससे कृषि क्षेत्र में लाभ बढ़े. यह सुनिश्चित किया जाएगा कि लागत का 50 फीसदी लाभ हो.

महाराष्ट्र में किसान यही मांग कर रहे है कि उपज की उचित कीमत मिले और लागत का 50 फीसदी सुनिश्चित किया जाए. 28 मई को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने पीटीआई से कहा है कि कोई भी सरकार स्वामिनाथक फॉर्मूला के हिसाब से नहीं चल सकती है, क्योंकि उसमें ज़मीन की लागत भी शामिल है. अमित शाह ने पीटीआई से कहा कि मोदी सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य में लागत का 43 प्रतिशत बढ़ा कर दिया है. क्या किसानों को यह बात मालूम है. क्या यह दावा सही है. इसके अलावा कहा जा रहा है कि 2022 तक किसानों की आमदनी दुगनी कर दी जाएगी. इस वक्त किसानों की आमदनी कितनी है, हमारे पास दो अलग-अलग आंकड़े हैं. दोनों में से कोई मुकम्मल नहीं है फिर भी एक अनुमान मिल सकता है. जुलाई 2016 में इंडियन एक्सप्रेस में अशोक गुलाटी और श्वेता सैनी के लेख में बताया है कि किसानों की आमदनी को लेकर आखिरी बार जो राष्ट्रीय स्तर पर सर्वे हुआ था वो पांच साल पुराना है. 

-2012-13 के नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस के अनुसार, पंजाब के किसानों की औसत मासिक आमदनी 18,059 रुपये थी.
-इसके बाद हरियाणा के किसानों का नंबर आता है. उनकी मासिक आमदनी 14, 434 रुपये थी.
-सबसे कम बिहार के किसानों की मासिक आमदनी थी, 3,588 रुपये.
-इस सर्वे के अनुसार, भारत के किसानों की औसत मासिक आमदनी होती है, मात्र 6, 426 रुपये.

दूसरा आंकड़ा आर्थिक सर्वे 2016 का है, जिसका ज़िक्र देवेंद्र शर्मा ने अपने लेख में किया है. यह आंकड़ा नेशनल सैंपल सर्वे की तरह पूरे देश का नहीं है, सिर्फ 17 राज्यों का है, जिसके अनुसार किसानों की मासिक आमदनी मात्र 1700 रुपये हैं... प्रति वर्ष 20,000 रुपये. दोनों में तुलना ठीक नहीं रहेगी, मगर अंदाज़ा मिलता है जो बहुत ख़तरनाक है. नेशनल सैंपल सर्वे के अनुसार, 2012-13 में किसान की मासिक आमदनी 6, 426 रुपये थी. 2016 के आर्थिक सर्वे के अनुसार, 1700 रुपये हो गई. अब इस हिसाब से क्या...

-2012 से 2017 के बीच किसानों की मासिक आमदनी में 4,726 रुपये की कमी आई है.
-तब किस आधार पर दावा किया जा रहा है कि पांच साल बाद आमदनी दुगनी हो जाएगी.
-2016 के हिसाब से 1700 अगर 2022 में 34,00 रुपये हो भी गई, तो क्या ये बहुत होगा.

दोनों ही आंकड़ों से पता चलता है कि किसान इतनी कम कमाई में पांच लोगों का परिवार नहीं पाल सकता है. सरकार को सबसे पहले यह बताना चाहिए कि इस वक्त देश का किसान महीने का कितना कमाता है, ताकि उन्हें पता चले कि 2022 में उसकी कमाई दुगनी हुई या नहीं. इसमें लागत मूल्य में वृद्धि का हिसाब जोड़ा जाएगा तो 2022 में किसान और ग़रीब हो जाएगा. 

अब आते हैं कर्ज माफी पर. यूपी सरकार ने 4 अप्रैल को ऐलान किया कि लघु और सीमांत किसानों का एक लाख तक का फ़सली ऋण माफ़ किया जा रहा है. इस योजना के तहत दो करोड़ 15 लाख किसान आएंगे, जिनका कुल 30,729 करोड़ रुपये का कर्ज़ माफ़ किया गया है. इसके लिए छह सदस्यों की कमेटी बनी थी जो तमाम बैंकों के साथ मिलकर कर्ज माफी की प्रक्रिया को अंजाम देगी.

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अभी तक यही कहते रहे कि कर्ज माफी नहीं करेंगे, क्योंकि यह हल नहीं है. मगर अब कह रहे हैं कि महाराष्ट्र के इतिहास की सबसे बड़ी कर्ज माफ करने जा रहे हैं. अक्तूबर तक तीस हज़ार करोड़ का कर्जा माफ होगा, जिससे 34 लाख किसानों को लाभ होगा. यूपी में भी करीब 30,000 करोड़ का कर्ज माफ हो रहा है, मगर वहां 15 लाख किसानों को ही फायदा हो रहा है, जबकि यूपी में एक लाख तक का कर्ज माफ हो रहा है.

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