रवीश कुमार की कलम से : दिलचस्प हुआ दिल्ली का दंगल

नई दिल्ली:

नमस्कार मैं रवीश कुमार। तो बीजेपी को भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा किसी चेहरे की ज़रूरत पड़ गई। महाराष्ट्र, झारखंड, हरियाणा जम्मू-कश्मीर जैसे राज्यों में पार्टी का चेहरा मतलब मोदी का चेहरा। तो क्या दिल्ली के लिए यह फार्मूला बदल गया। मोदी के साथ एक और चेहरा या किरण बेदी ही बीजेपी का चेहरा। सवाल होंगे, लेकिन बीजेपी ने दिल्ली की राजनीति को दिलचस्प मुकाम पर पहुंचा दिया है। अब इस तस्वीर को सीपिया टोन में देखिये।

वे भी क्या दिन थे जब किरण बेदी, अरविंद केजरीवाल, अन्ना हज़ारे सब लोकपाल लोकपाल गाया करते थे। लेकिन तब भी कई मसलों पर किरण बेदी और केजरीवाल की राय अलग हुआ करती थी। नितिन गडकरी के घर के सामने जब अरविंद केजरीवाल ने प्रदर्शन किया तो किरण बेदी ने इसका विरोध किया था। मैदान में किरण बेदी का यह गुस्से वाला सीन काफी मशहूर हो गया था। किरण बेदी काफी गुस्से में थीं। नकाब चढ़ाकर और उतारकर बीजेपी के दो बड़े नेताओं की तरफ इशारा किया था कि यहां कुछ बोलते हैं और वहां कुछ और। बीजेपी के नेताओं ने भी उनकी इस हरकत की आलोचना की थी। बाद में क्या हुआ आप जानते हैं। अरविंद केजरीवाल ने पार्टी बना ली और अन्ना हज़ारे, किरण बेदी, वीके सिंह राजनीतिक दल बनाने के विचार से अलग हो गए। वीके सिंह अब केंद्र में मंत्री हैं और किरण बेदी गुरुवार शाम भाजपा में शामिल हो गईं। राजनीति में जाने से बच गए अन्ना हज़ारे। अब वो उस फिल्मी सीन की तरह बच गए हैं या भुला दिए गए हैं जिसमें घर का मुखिया दीवार पर टंगी अपने पुरखों की तस्वीर निहारता रहता है। फिल्मी सीन भी रीयल हो जाता है। अब वाकई अन्ना आंदोलन की जड़ों को फिर से लौट कर देखने की ज़रूरत है कि कहीं ये किसी डिज़ाइन के तहत तो तैयार नहीं किया गया था। लेकिन सिर्फ इन आशंकाओं के आधार पर उस आंदोलन को खारिज नहीं किया जा सकता जिसने कम से कम दिल्ली की राजनीति को इस तरह से बदल दिया कि दोनों पुरानी पार्टियां दो साल की पार्टी के हिसाब से रणनीति बनाने लगी हैं।

सीपिया टोन से निकल कर अब आ जाते हैं इस्टमैन कलर में। क्या बीजेपी किरण बेदी को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाएगी? पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि मुख्यमंत्री का उम्मीदवार कौन होगा, पार्टी तय करेगी और कहां से चुनाव लड़ेंगी यह संसदीय बोर्ड तय करेगा। बीजेपी सांसद विजय गोयल ने ट्वीट कर दिया कि मुझे पूरा भरोसा है कि उनके प्रेरणादाय नेतृत्व में बीजेपी जीतेगी और दिल्ली का विकास होगा। वैसे इस मामले में औपचारिक घोषणा नहीं हुई है, लेकिन क्या किरण बेदी को अरविंद केजरीवाल के मुकाबले वाले फ्रेम से बाहर कर देख पाना संभव होगा। शायद नहीं।

बीजेपी के दफ्तर में उनके आगमन को बड़ा बनाने के लिए राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और वित्तमंत्री अरुण जेटली भी मौजूद थे। किरण बेदी ने अमित भाई और अरुण भाई कहकर संबोधित किया। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने उन्हें बिजी समय में भी अमित भाई और मुझे वक्त दिया इसके लिए आभारी हूं। उनका ये इंस्पीरेशनल लीडरशिप बहुत सारे भारतीयों को बदल रहा है और अगर आज मेरे जैसे व्यक्ति को बदला है तो मैं समझती हूं कि करोड़ों बदल चुके होंगे। किरण बेदी ने अपने पुलिस जीवन से लेकर सामाजिक कार्यों के बारे में भी बताया और कहा कि जब मुझे पुलिस कमिश्नर नहीं बनाया गया तो खुद से रिटायरमेंट ले ली। क्योंकि जो काम मुझे दिया गया वो मेरे लिए चैलेंजिंग नहीं थे। मैं ओहदा, गाड़ी, घर और पोज़िशन के लिए काम नहीं करती हूं। लेकिन जो मुझे आज मई से प्रेरणा मिली, ये प्रगति थी, ये इवोल्यूशन था, इवॉल्विंग हो रही थी, तब मैं अपने आप को समर्पित कर दूंगी, अपने लार्जर देश के लिए, समय की बात थी। और ये समय आया।

उन्होंने बताया कि राजनीति में आने का बदलाव उनके भीतर मई महीने में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के साथ आने लगा। किरण बेदी ने यह भी कहा कि ये घड़ी मैंने हाथ से नहीं लिखी। ऊपर वाला लिखता है। अब ये तो अमित शाह और प्रधानमंत्री मोदी ही बता सकते हैं कि किरण बेदी के लिए ये घड़ी उन्होंने तय की या उनसे भी किसी ऊपर वाले ने या दिल्ली की चुनावी मजबूरियों ने। किरण बेदी ने भी अपना एक सपना बता दिया। दिल्ली को दुनिया की नंबर वन राजधानी बनाने का सपना। राजनीति में प्रेरणा और सपना ये दो मुख्य तत्व हैं।

लेकिन उनके विरोधी सपना नहीं सियासत देख रहे थे। उनके शामिल होने की खबरों के साथ ही ट्वीटर पर उनके पुराने बयान निकाले जाने लगे कि कब उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर गुजरात दंगों को लेकर ट्वीट किया था, कब कहा कि बीजेपी वोट देने लायक पार्टी नहीं है, कब कहा था कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही फंड के मामले में पारदर्शी नहीं हैं।लेकिन, किसी ने यह ट्वीट नहीं किया कि उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी की प्रशंसा और अनुशंसा दोनों में ही कई ट्वीट किए थे। अरविंद केजरीवाल ने स्वागत करते हुए कहा है कि मैं हमेशा चाहता था कि वे राजनीति में आएं। लेकिन आम आदमी पार्टी के दूसरे नेताओं ने हमला शुरू कर दिया। कुमार विश्वास ने कहा कि युद्धों में कभी नहीं हारे, हम डरते हैं छल-छन्दों से, हर बार पराजय पाई है अपने घर के जयचन्दों से। अब इन पक्तियों में कवि ने किरण बेदी को जयचन्द तो कह दिया, लेकिन क्या यह भी कह दिया कि पराजय हो गई है।

आम आदमी पार्टी के एक और नेता मयंक गांधी ने ट्वीट किया कि किरण बेदी ने भी तो धरना किया था, क्या भक्त ये बतायेंगे कि वे नक्सल हैं या नहीं। यहां भक्त बीजेपी समर्थकों के बारे में कहा गया है। विशाल डडलानी ने चुटकी ली कहीं बीजेपी केजरीवाल से घबराकर ओबामा को ही पार्टी में शामिल न करा दे। कांग्रेस नेता अजय माकन ने कहा है कि केजरीवाल और किरण बेदी ने अन्ना आंदोलन के उद्देश्यों के साथ धोखा किया है। बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि किरण बेदी के आने से दिल्ली बीजेपी को बहुत मज़बूती मिलेगी। वित्तमंत्री अरुण जेटली ने कहा कि किरण बेदी जी का दिल्ली ही नहीं पूरे देश में नाम है। सरकार में भी वो क्रूसेडर के रूप में लड़ती रही हैं।

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तो क्या बीजेपी अन्ना आंदोलन के पुराने साथियों और आप के पुराने नेताओं के दम पर अरविंद केजरीवाल को घेरने जा रही है। यह वो लड़ाई है जिसे कोई हाथ से जाने नहीं देगा। केरजीवाल बनाम किरण की इस लड़ाई में टेंशन तो होगा बॉस। अब देखना होगा कि कौन जीतेगा। वो जो दो साल से दिल्ली की गलियों में भटक रहा है या वो चार हफ्ते पहले किसी पार्टी में आईं हैं। गलाकाट प्रतियोगिता है इस बार दिल्ली में। क्या बीजेपी को दिल्ली में चेहरा मिल गया है। अरविंद केजरीवाल के लिए किरण बेदी को घेरना मुश्किल हो जाएगा।प्राइम टाइम