प्राइम टाइम इंट्रो : 112 हस्तियों को इस साल पद्म सम्मान, बधाई...

प्राइम टाइम इंट्रो : 112 हस्तियों को इस साल पद्म सम्मान, बधाई...

रजनीकांत और अनुपम खेर

थियेटर की दुनिया में कन्हाईलाल का चालीस साल से ज्यादा का सफर है। नाटक लिखा है, निर्देशन किया है और अभिनय भी। कन्हाईलाल को थियेटर की दुनिया में एक नया आंदोलन खड़ा करने का श्रेय दिया जाता है। इन्होंने 1969 में कलाक्षेत्र मणिपुर की स्थापना की। मणिपुर की परंपरा और संस्कृति के तत्वों को बटोरते हुए थियेटर की नई भाषा ही गढ़ दी है। पूरे देश में इन्होंने कार्यशालाओं का आयोजन किया है। कलाकारों को नई तरह से ट्रेनिंग देने के लिए कई तरह के माड्यूल पर शोध किया है। उन्हें तैयार किया है। कन्हाई लाल स्थानीय संदर्भों में थियेटर और लोकतंत्र के सवालों का जवाब खोजते रहे हैं। पत्नी साबित्री भी उनकी सहयात्री हैं। इनाम इकराम तो सब मिले हैं।
 
1985 में संगीत नाटक अकादमी अवार्ड मिला है। 1997 में मणिपुरी साहित्य परिषद ने नाट्य रत्न दिया है। 2012-13 में कालीदास सम्मान दिया गया है।
 
नाट्‌य कला को समीक्षक की निगाह से परिभाषित करने की मेरी सलाहियत नहीं है इसलिए सूचना की ज़रूरत तक ही प्रयास करूंगा। 50 साल से भी ज्यादा के दौर में इनके 20 नाटक पूरी दुनिया में खेले गए हैं। कन्हाईलाल के बारे में कहा जाता है कि वे चुप्पी से, हाव भाव से, शरीर की हरकतों से, आवाज़ से, संगीत से अपने पात्रों की पीड़ा, रोमांच या क्रोध को व्यक्त करते हैं। शब्द शरीर में मिल जाता है और शरीर शब्द हो जाता है।
 
कन्हाईलाल ने महाश्वेता देवी की कहानियों का भी मंचन किया है। एक समीक्षक ने लिखा है कि 2004 में इम्फाल में औरतों ने जब निर्वस्त्र होकर भारतीय सेना के ख़िलाफ़ आंदोलन किया था, उसकी प्रेरणा कन्हाईलाल के एक नाटक द्रौपदी से ही मिली थी। 32 साल की मनोरमा की मौत के ख़िलाफ़ 40 औरतों ने विरोध प्रदर्शन किया था। पद्म पुरस्कारों की घोषणा हो गई है। ऐसा ही एक नाम है एन एस रामानुज तताचार्या। तताचार्य को पद्मभूषण मिला है। 80 साल से ज्यादा उम्र के हैं और संस्कृत के विद्वान माने जाते हैं। फ्रेंच इंस्टीट्यूट ऑफ पांडिचेरी में पढ़ाते हैं। इनके बारे में हिन्दू अखबार ने 2008 में लिखा था कि संस्कृत, तमिल, तेलुगू, हिन्दी और अंग्रेजी भाषा में माहिर माने जाते हैं। आपको फ्रांस की सरकार ने Chevalier de la Legion d'Honneur से नवाज़ा है। कई किताबें लिखी हैं। न्याय, व्याकरण, मीमांसा और वेदांत के विद्वान माने जाते हैं। 16 अप्रैल 1928 को पैदा हुए। इनके पिता भी संस्कृत के प्रतिष्ठित विद्वान थे। तताचार्य के कार्यों का विस्तार इतना वृहद है कि आप तक ठीक ठीक बताने की मेरी क्षमता नहीं है। भारत के राष्ट्रपति भी इन्हें पहले सम्मानित कर चुके हैं।
 
पद्म पुरस्कारों की कई खूबियों में एक प्रचलित खूबी यह भी है कि इन नामों को इस तरह से भी पढ़ा जाता है कि कौन-कौन सरकार के करीब रहा है, कौन-कौन सरकार की विचारधारा के अनुकूल योगदान करता रहा है। ये हर सरकार और हर पद्म पुरस्कार के समय होता रहा है। इस दौड़ में जिन्हें सिर्फ काम की वजह से मिल भी जाता है उन पर भी लोग शक करने लगते हैं। पद्मविभूषण, पद्मभूषण, पद्मश्री इन तीन पुरस्कारों के लिए 112 नामों में से हर किसी की सुविधा के अनुसार नाम निकल ही आएंगे। बहुत लोग प्रयास भी करते होंगे और बहुतों को मिल भी जाता होगा। 3 जनवरी 2016 को केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा था, 'पुरस्कारों की वजह से सिरदर्द होने लगा है, लोग पीछे पड़ जाते हैं, पद्मश्री, पद्मभूषण पुरस्कार की चाहत में सिफारिशें चाहते हैं। फिल्म अभिनेत्री आशा पारेख पद्मभूषण पाने की उम्मीद में मेरे घर की लिफ्ट खराब होने के बावजूद 12 मंज़िलें चढ़कर पहुंची थीं। बड़ा ख़राब लगा था। उन्होंने कहा था कि मुझे पद्मश्री मिला है, लेकिन फिल्मों में मेरा योगदान देखते हुए मुझे पद्मभूषण मिलना चाहिए।'
 
हो सकता है कि मंत्री जी ने बात सही ही कही हो मगर इसे सार्वजनिक न करते तो अच्छा ही रहता। इस बयान के कारण लोग कहीं 112 नामों में से कई लोगों पर शक न करने लगें कि कौन-कौन सीढ़ी चढ़कर गया होगा या किसकी सीढ़ी चढ़कर कौन मंत्री बन गया। पुरस्कारों की सूची में कुछ प्रमुख नाम हैं -
 
धीरूभाई अंबानी, जिन्हें मरणोपरांत पद्मविभूषण दिया जा रहा है। रामोजी राव को साहित्य और मीडिया के लिए पद्मविभूषण पुरस्कार दिया गया है। पूर्व डीआरडीओ चीफ और वैज्ञानिक डॉक्टर वी.के. आत्रे, यामिनी कृष्णमूर्ति, गिरिजा देवी, डॉक्टर विश्वनाथ शांता, पूर्व राज्यपाल और केंद्रीय मंत्री जगमोहन को पद्मविभूषण दिया गया है। इस सूची में फिल्म अभिनेता रजनीकांत का नाम भी शामिल है। ज़रूर लतीफा उद्योग वाले पुरस्कार की रफ्तार और रजनीकांत को लेकर कुछ बनाने में जुट गए होंगे। पिछले साल जब पद्म पुरस्कारों के लिए श्री श्री रविशंकर और रामदेव के नाम की चर्चा होने लगी थी तब रामदेव ने राजनाथ सिंह को पत्र लिखकर कहा कि मैं संन्यासी हूं और अपने सन्यास धर्म के साथ राष्ट्र धर्म एवं सेवा धर्म को निष्काम और अनासक्त भाव से करना अपना कर्तव्य समझता हूं। संन्यासी को तिरस्कार और सत्कार दोनों ही अवस्थाओं में सम रहना चाहिए। मैं निवेदन करना चाहता हूं कि गौरवपूर्ण कार्य करने वाले किसी अन्य महानुभाव को प्रदान कर मुझे अनुगृहीत करेंगे। ऐसा मुझे पूर्ण विश्वास है।
 
स्वामी रामदेव का नाम इस बार की सूची में नहीं है लेकिन श्री श्री रविशंकर का नाम है। पद्मविभूषण के लिए। पिछले साल उन्होंने भी 24 जनवरी 2015 के रोज़ ट्वीट किया था कि राजनाथ सिंह जी ने मुझे फोन कर पद्म पुरस्कार के बारे में बताया। मेरे नाम पर विचार करने के लिए मैं सरकार का शुक्रिया अदा करता हूं। मैं चाहता हूं कि सरकार मेरी जगह किसी और को सम्मानित करे।
 
श्री श्री रविशंकर को बधाई... उन्हें आध्यात्म के लिए पद्मविभूषण दिया गया है। ऐसा नहीं है कि हर कोई चाहता ही है। कई लोग हैं जो नहीं भी चाहते हैं। कई लोग मिलने पर मना कर देते हैं। कई लोगों को लेना भी पड़ा जाता है कि सरकार को मना करें या देश को। चलो ले ही लेते हैं। पद्मभूषण पुरस्कार पाने वालों में शामिल हैं अनुपम खेर, उदित नारायण झा, पूर्व सीएजी विनोद राय, वाई लक्ष्मी प्रसाद, अजित अखबार के संपादक और पूर्व राज्य सभा सदस्य बरजिंदर सिंह हमदर्द, डी नागेश्वर रेड्डी, हफ़ीज़ कॉन्‍ट्रैक्‍टर, पालनजी शाहपुरजी मिस्त्री, इंदू जैन, आर.सी. भार्गव, सानिया नेहवाल, सानिया मिर्ज़ा, स्वामी तेजोमयानंद, दवंगत स्वामी दयानंद सरस्वती, पूर्व अमरीकी राजदूत रॉबर्ट ब्लैकविल, राजस्थान की मिस गुलाबी सपेरा, अजय देवगन, प्रियंका चोपड़ा, मालिनी अवस्थी, मधुर भंडारकर, प्रतिभा प्रह्लाद, पुष्पेश पंत, तीरंदाज़ दीपिका कुमारी, डॉक्टर प्रवीण चंद्रा, इम्तियाज़ कुरैशी, पीयूष पांडे सहित 82 लोगों को पद्म श्री दिया गया है। पत्रकार जवाहर लाल कौल, अशोक मलिक को भी पद्म श्री मिला है। सईद ज़ाफ़री को भी मरणोपरांत पद्मश्री दिया गया है।
 
अजय देवगन ने बिहार चुनाव में बीजेपी के लिए प्रचार भी किया था। अजय देवगन को देखने के लिए बिहार में काफी भीड़ जुट रही थी। 2012 में नरेंद्र मोदी ने जब पहली बार गूगल हैंगआउट किया था तो उसे अजय देवगन ने ही संचालित किया था। उदित नारायण ने भी चुनावों के दौरान एक गाना गाया था जिसके बोल थे 2014 में मोदी आने वाला है। वैसे उदित बढ़िया गायक हैं। अगर किसी को मोदी आने वाला से एतराज़ है तो वो दिलवाले दुल्हनिया का गाना सुन सकता है जो उदित ने ही गाये थे, बशर्ते उसे शाहरूख़ से एतराज़ न हो तो। राजनीतिक कारणों से अलग उदित नारायण झा अपने अनुभव के दम पर भी इन पुरस्कारों की पात्रता रखते हैं। अनुपम खेर और मधुर भंडारकर ने सहिष्णुता-असहिष्णुता की बहस के दौरान सक्रिय रूप से सरकार का बचाव किया था और अवॉर्ड वापसी का विरोध करते करते अवॉर्ड भी पा गए। लेकिन क्या कोई अनुपम खेर के अनुभव और अभिनय कला पर सवाल कर सकता है। 2004 में वाजपेयी सरकार के दौरान अनुपम खेर को पद्मश्री मिला था। इतने साल लग गए पद्मभूषण तक पहुंचने में। क्या इसके पीछे राजनीतिक कारण नहीं हो सकते हैं। इसलिए मिलने और न मिलने दोनों के ही राजनीतिक कारण होते हैं। अनुपम खेर पद्मभूषण पुरस्कारों की पात्रता रखते हैं और ज़रूरत पड़ने पर इन पुरस्कारों को पाने वालों की पात्रता पर भी सवाल कर देते हैं।

ट्विटर से पता चलता है कि उन्होंने 2010 के साल में इस पुरस्कार की मान्यता बहाल करने के लिए आवाज़ बुलंद की थी और ट्वीट किया था कि हमारे देश में पुरस्कार सिस्टम का मज़ाक बन कर रह गए हैं। किसी भी पुरस्कार में कोई प्रामाणिकता नहीं बची है। चाहे वो फिल्म पुरस्कार हों या अब पद्म पुरस्कार ही। 2010 में रेखा, आमिर ख़ान, सैफ़ अली ख़ान, ए आर रहमान, ज़ोहरा सहगल, पंडित छन्नूलाल मिश्र जो आगे चलकर 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लोकसभा चुनाव के समय प्रस्तावक बने, इल्लैया राजा को पद्म सम्मान मिले थे। उम्मीद है पद्म पुरस्कारों को लेकर अनुपम खेर की शिकायत समाप्त हो गई होगी। पद्मभूषण मिलने पर अनुपम खेर को जीवन का सारांश भी मिल गया। उनका बयान है, 'बहुत खुश हूं, सालों की मेहनत रंग लाई, प्लैटफ़ॉर्म पर सोया, 400 फ़िल्में कीं, सराहा गया है अब। देश ने सम्मान दिया।'
 
उन्होंने कहा कि एक क्लर्क के बेटे को पद्म पुरस्कार मिल रहा है। वैसे इस देश में चाय वाले के बेटे प्रधानमंत्री बन चुके हैं और अखबार बेचने वाला राष्ट्रपति पद तक पहुंचा है। कमाल का मुल्क है। कमाल के लोग हैं। पुरस्कार उस विराट का प्रसाद है जिसे हम मुल्क कहते हैं। कोई भी भावुक हो जाता है। इसलिए अनुपम खेर को बधाई, बल्कि सभी को बधाई। इस सूची में भी कई नाम दिलचस्प हैं और उनके रिकॉर्ड शानदार हैं।
 

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