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This Article is From Jul 25, 2016

मुख्‍यमंत्री महबूबा मुफ्ती के नाम निधि कुलपति का खुला खत...

Nidhi Kulpati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 25, 2016 17:34 pm IST
    • Published On जुलाई 25, 2016 16:55 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 25, 2016 17:34 pm IST
आप को लिखना अपने मन को हल्का करने जैसा है। जब से आप मुख्यमंत्री बनी हैं, सुकून के पल आपको नही मिल पा रहे हैं। जिन हालात में मुख्यमंत्री बनीं, वे दुखदायी रहे। साथ ही घाटी के हालात लगातार चुनौती खड़े करते रहे। आपको वह शक्ति मिले कि आप राज्य को सफलता से सामान्य हालात ही नहीं, बल्क‍ि विकास की बुलंदियों के रास्ते पर आगे ले जा पाएं। अब धीरे-धीरे कर्फ्यू हट रहा है, स्कूल खुल रहे हैं और अखबार छपने लगे हैं। लोग घरों के बाहर भी निकलने लगे हैं। केंद्र से नेता आ रहे हैं तो आप नेताओं का भी लोगों से मिलने का सिलसिला शुरू हो गया है।

जम्मू-कश्मीर की आबादी करीब 1 करोड़ 25 लाख है, जिनमें से करीब 45 लाख 15 से 30 साल के युवा हैं। इनमें से कई वे है जो पढ़-लिखकर अपना जीवन संवारने में लगे होंगे। कई अन्य राज्‍यों में जाकर पढ़ रहे होंगे। कुछ आईएएस बन राज्य का नाम रोशन कर रहे हैं, लेकिन कुछ वे भी होगे जो सड़कों पर नजर आये थे। हाथों में पत्‍थर लिये, खौलते जज्‍़बातों के साथ, नाइंसाफी की सोच के साथ, उनका हाथ थामना आप नहीं भूलना।

तब आपने हर किसी से हाथ मिलाने की बात कही थी
नौजवानों को गुस्‍सा सिर्फ कश्‍मीर में ही नहीं आता। युवावस्‍था के दौर में तीव्र जज्‍़बातों और बौखलाहट को हर परिवार को झेलना पड़ता है लेकिन अगर सिखाया जाये कि तुम्हारे साथ नाइंसाफी हो रही है तो संभलना मुश्किल हो जाता है। पिछले साल विधानसभा चुनावों के दौरान मुझे आपके राज्य का दौरा करने का मौका मिला था। आप से भी सोनावारी में मुलाकात हुई थी। जनसभा के बाद आपने एक जगह एक टेंट में खातिर में बिछाये वाजवान के बीच  मुझे इंटरव्‍यू भी दिया था, जिसमें आपने राज्य के लिए हर किसी से हाथ मिलाने की बात कही थी।

एक युवा का यह सवाल सुनकर हैरान रह गई
इसी दौरे में श्रीनगर के डाउनटाउन इलाके में भी गई थी। युवाओं से मिलकर उनके मन को समझना चाहती थी। ये इलाका पत्थरबाजों के लिए जाना जाता है। अपनी टीम लेकर जब गलियों से गुजर रही थी तो मुझे समझाया गया कि इस तरह आना यहां मुश्किल होता है खासकर कैमरे के साथ। बहरहाल,  हम गलियों से होते हुए एक घर में पहुंचे, जहां एक तरफ ड्रग डी-एडिक्शन सेंटर चल रहा था तो साथ ही वाले कमरे में चार युवा आये हुए थे। तीन लड़के और एक लड़की। ये चारों कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे। एक-दूसरे से मिलने का सिलसिला शुरू ही हुआ था कि उनमें से एक ने पूछा कि आप तो हमसे ये जानना चाहेंगी कि हम पत्थरबाज क्‍यों हैं ? मैं हैरान इसलिए नहीं थी कि मेरा मकसद वह नहीं था बल्कि इसलिए थी कि वह मेरी सोच पर सवाल लेकर आये थे। वह सवाल, जो उनके घाव को और गहराता हो। उनको लगा कि यही मेरा मकसद था।

श्रीनगर में युवाओं के मनोरंजन के लिए नहीं हैं ज्‍यादा साधन
और यही भाव पूरी बातचीत के दौरान झलका। यकीन दिलाना पड़ा कि उनकी बात पूरी दिखाऊंगी। उन्‍होंने भेदभाव के उदाहरण दिये, जब छात्र राज्य से बाहर पढ़ने जाते हैं। समझाया कि ये अन्य राज्‍यों से आये छात्रों के साथ भी होता है सिर्फ कश्‍मीरियों के साथ ही नहीं, अन्य बड़े शहरो में भी होता है। आखिर में हमने एक-दूसरे को समझने के वादे के साथ कहवा पिया। लेकिन बाहर निकले तो जो बताया गया वो आपके गौर करने लायक है। श्रीनगर में युवाओं के मनोरंजन के लिए इंटरनेट के अलावा कोई साधन नहीं हैं। सिनमाहाल बरसों से बंद पड़े हैं,  खेल के मैदान नहीं दिखते, न उनको बढ़ावा मिलता है। न कोई मॉल है जो देश के अन्य शहरों में युवाओं का 'डेरा' जैसा हो गया है जहां जाकर मन हल्का हो, अच्छी चीजें  देखकर मन में भी कमाने की लालसा बढ़े। न कोई इंटरटेनमेंट जोन है जहां जाकर युवा खेल सकें।

न एमबीए के संस्‍थान और न आईटीआई के
बड़ी दुकानें सिर्फ सैलानियों वाली सड़कों पर नजर आती हैं। लड़के तो फिर भी सड़कों पर निकल,  नुक्कड़ों पर मिलकर बात कर सकते हैं लेकिन लड़कियों के लिए तो वह ज़रिया भी नहीं है। टीवी-इंटरनेट ही मनोरंजन का एक जरिया है, परिवारों में बड़ों की सीख से दूर खुली हवा किस युवा को नहीं चाहिए होती है, श्रीनगर का ये हाल है तो घाटी के बाकी इलाकों का क्या  होगा ? घाटी में न तो एमबीए के संस्थान हैं,  न ही आईटीआई के जो प्रोफेशनल ट्रेनिंग देते हैं। इससे शिक्षा के लिए बाहर भेजने का रोष भी बढ़ा। रोजगार के अवसर भी नही बढ़े। कांग्रेस ने एक समय उद्योग लगाने का वादा किया था, लेकिन सब ठंडे बस्ते में गया। कश्मीरी शॉल बनाने का काम भी पंजाब जैसे राज्‍यों में चला गया है।

यदि आवंटन इतना तो क्‍या वह लोगों तक पहुंच रहा है?
'द हिन्दू'  में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार जम्‍मू-कश्‍मीर को 2000-16 तक केंद्रीय फन्ड का 10 प्रतिशत हिस्सा मिला है जबकि वहां देश की सिर्फ 1 प्रतिशत आबादी-बस्ती है। तुलना करें उत्तरप्रदेश से तो वहां देश की 13 प्रतिशत आबादी बसती है और मिलता  है सिर्फ 8.2 प्रतिशत हिस्सा। 2011 के सेन्सस के अनुसार फंड की राशि का भाग किया जाये तो हर व्‍यक्ति को पिछले 16 सालों में इस राज्य में 91,300 रुपये मिले और यूपी में सिर्फ 4,300 रुपये। ये जानना होगा कि  इस राज्य को विशेष का दर्जा हासिल है, लेकिन सवाल है कि अगर आवंटन इतना है तो क्या वह नागरिकों तक पहुंच रहा है, उनकी सुविधाओं और जीवन की बेहतरी के लिए इस्तेमाल क्‍यों नहीं हो रहा है और क्या वह चंद लोगों के हाथों में सिमटकर रह गया है?

आप को जमीनी हकीकत ज्यादा बेहतर पता होगी। आप खुद एक मां हैं। युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए खुली सोच और खुशी पनपने के पर्याप्त साधन मुहैया कराना बड़ों की जिम्मेवारी और दायित्व है। इंटरनेट के इस दौर में वह सिर्फ युवाओं की सोच को सीमित न रखे, इसके लिए आप कदम उठाएं। देश आपके हाथ मजबूत करेगा....।    

(निधि कुलपति एनडीटीवी इंडिया में सीनियर एडिटर हैं)

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