पहाड़ों को चीर कर रास्ता कैसे बनाया जाता है ये कोई चीन से सीखे। कठोर पहाड़ और गहरी नदियों के बीच के फर्क को पाटते हुए चीन तिब्बत में लगातार रेल नेटवर्क के विस्तार में लगा है। उसने पहले बीजिंग और ल्हासा के दुर्गम इलाक़े को रेल लिंक से जोड़ा और अब वो ल्हासा से क़रीब 250 किलोमीटर आगे शिगाज़े तक रेल लाईन बिछा चुका है। शिगाज़े तिब्बत के दक्षिण में पड़ने वाला प्रिफेक्चर है, जिसकी सीमा नेपाल और भूटान से लगती है।
हमने ल्हासा-शिगाज़े रेल लिंक के बीच में पड़ने वाले एक स्टेशन चुश्वे को देखा। रेलवे स्टेशन को एयरपोर्ट जैसा बनाया गया है। यहां, सुरक्षा संबंधी तमाम ऐसे उपकरण लगाए गए हैं, जिसे अमूमन हम एयरपोर्ट पर ही देखते है। एशियाई देश होते हुए भी चीन ने विकास के पैमाने पर वो ऊंचाई हासिल कर ली है, जिसे हम इससे पहले सिर्फ पश्चिमी देशों में देखा करते थे।
ल्हासा शिगाज़े के बीच अभी एक ही ट्रेन चलती है जो ल्हासा से सुबह निकलती है और शिगाज़े से दोपहर निकल शाम को वापस ल्हासा पहुंच जाती है।
चुश्वे रेलवे स्टेशन के अधिकारी ज़ाओ सिंचुन ने हमें बताया कि यात्रियों की तादाद बढ़ने पर इस रेलखंड पर और ट्रेनें चलाई जा सकती हैं। रेलवे स्टेशन को इस तरह से बनाया गया है कि वो 50 साल बाद की ज़रूरतों पर भी खरा उतरे।
तिब्बत में दुरूह पहाड़ी इलाक़े होने की वजह से रेल लाइन बिछाने का काम आसान नहीं है, लेकिन सुरंग खोदना चीन के लिए मानों इतना आसान हो जितना कोई छोटा मोटा बिल खोदना। हालांकि तिब्बत ऑटोनामस रीज़न का दावा है कि इस तरह के विकास कामों को करने के पहले पर्यावरण से जुड़े हर मानक का ख्याल रखा जाता है।
चीन का लक्ष्य 2020 तक तिब्बत में 1300 किलोमीटर रेललाइन बिछा इसके सभी छह प्रिफेक्चर को रेल लिंक से जोड़ने की है। इसके अलावा वह तिब्बत में एक लाख किलोमीटर से ज़्यादा सड़कों के निर्माण में भी जुटा है।
उसकी योजना तिब्बत के हर गांव को एक हाइवे से जोड़ने की है ताकि किसी भी गांव की सीधी पहुंच बीजिंग तक हो सके। इसके अलावा वो पूरे तिब्बत में एक दर्जन से ज़्यादा एयरपोर्ट बनाने की योजना पर भी काम कर रहा है। इस तरह के विकास काम के लिए पिछले 20 साल में वो 13 बिलियन अमेरिकी डॉलर ख़र्च कर चुका है और आगे भी कितनी भी राशि ख़र्च करने की मंशा रखता है।
चीन की योजना इस रेल लाइन को नेपाल तक ले जाने की है। नेपाल की तरफ़ से बार-बार इसका अनुरोध किया जा रहा है। दोनों देशों के बीच इसे लेकर प्रतिनिधियों का दौरा भी हो चुका है। पहले योजना नेपाल के सीमावर्ती शहर तक रेल ले जाने की है और फिर नेपाल की राजधानी काठमांडू को इससे जोड़ने की। चीन की योजना तो भारत से लगने वाली सीमा तक रेल लाइन बिछाने की है जिसे लेकर भारत में सामरिक चिंता भी जताई जाती है।
लेकिन, इस तरह की किसी चिंता को ख़ारिज करते हुए पीपुल्स गवरमेंट ऑफ तिब्बत ऑटोनामस रीज़न का कहना है कि रेलवे का विस्तार किसी देश का आंतरिक मामला है और चीन की केन्द्रीय सरकार इसे ढांचागत विकास और व्यापारिक विस्तार के तौर पर देखती है। भारत को भी इसके फ़ायदे को समझना चाहिए। टीएआर का इशारा इस तरफ़ भी है कि चीन से सीधे रेल लिंक से जुड़ने के लिए भारत को भी सोचना चाहिए।
हालांकि इस तरह कोई औपचारिक प्रस्ताव अभी नहीं है। तिब्बत के इस दौरे से पता चलता है कि चीन ने विकास के रास्ते तिब्बत को इस तरह अपने में समा लिया है कि यहां किसी तरह का असंतोष मुखर ही न हो पाए। तिब्बत में एनडीटीवी इंडिया का सफ़रनामा जारी है...