अभिषेक शर्मा की कलम से : इस 'नाइट लाइफ' के मायने देश के लिए क्या हैं?

मुंबई:

मुंबई की नाइट लाइफ यानी रात की जिंदगी वापस आ रही है। ये देश और दुनिया की ख़बर बन रही है। मुंबई की जिंदगी में ये महज चंद घंटों की मस्ती का इज़ाफा हो लेकिन पूरा देश इसे अचरज से देखता है। और देखे भी क्यों ना, क्योंकि आधे से भी ज्यादा देश ने रात की जिंदगी या तो देखी ही नहीं या फिर उसे देखने ही नहीं दिया गया।


कभी डर के मारे देर शाम को लोगों को घर पहुंचा दिया गया या फिर पुलि‍सिया लाठी के जोर ने दुकानों को बंद करा दिया। बची खुची कसर समाज के ठेकेदारों, चोर उच्चकों और उठाईगीरों ने पूरी कर दी। अब ज़रा अंदाज़ा लगाईये यूपी या दिल्ली के नौजवान लड़के लड़कियों का जिन्होंने जगमग रातें नहीं देखी हैं। उन्हें नहीं मालूम कि रात के 9 बजे भी लड़के लड़कियां खुले आम टैक्सी ऑटो में बैठकर कैसे रेस्त्रां में जा सकते हैं। उन्हें नहीं मालूम कि रात को टहलने का ख्याल कोई अपराध नहीं होता। और परिवार वालों को भी नहीं मालूम की रात का मतलब सिर्फ सड़कों पर कर्फ्‌यू नहीं होता।

मान भी लें कि सूरज का डूबना, उगना उत्तर भारत में पश्चिम के मुकाबले थोड़ा अलग है फिर भी इतना जुदा भी नहीं कि रात की जिंदगी कभी देखने को न मिले।

ऐसा नहीं है कि रात के दुश्मन गोवा, बेंगलुरु या मुंबई में नहीं हैं। लेकिन बार-बार कुछ आवाज़ें उठती हैं जो रात की रोशनी की वकालत करती हैं। हैरानी की बात है कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक हमारी पुलिस एक जैसा सोचती है। उसे लगता है कि जो दुकानें वगैरह देर रात तक खुले रहते हैं वहां सिर्फ बदमाश ही जुटते हैं। और इससे निपटने का राम बाण ही यही है कि सब बंद कर दो। जो अच्छे लोग सड़क पर कभी निकल भी आएं तो उन्हें इतना धमकाओ कि वापस कभी रात में ना निकलें।

गोवा में अपराध कुछ बढ़ने लगे तो सबसे पहला काम पुलिस ने वहां पर दुकानों को जल्दी बंद कराके किया। उन्हें लगता है कि इससे खौफ पैदा होगा जो अपराध रोकेगा। हालांकि अब तक ऐसा कोई भी डाटा पुलिस पेश नहीं कर पाई है जिससे लगे कि रात में अगर दुकानें खुली रहेंगी तो अपराध बढ़ेगा।

मुंबई में कभी रात सच में हसीन हुआ करती थी। सड़कें जगमगाया करती थीं। जिनको दिन में वक्त ना मिलता था वो रात को फुरसत निकाल कर मन बहलाने निकलते थे। लेकिन बम धमाकों और आतंकी वारदातों के बाद पूरा शहर डर के साए में चला गया। लोग घरों को जल्दी जाने लगे, बार, डांस बार बंद होने लगे, रेस्त्रां, पब के शटर गिरने लगे, टैक्सियां रात में मिलना दुश्वार होने लगा और धीरे-धीरे मुंबई को भी देर रात से डर लगने लगा।

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ये डर का साया है जिससे एक बार फिर मुंबई उबरना चाहती है, देश के दूसरे हिस्से हो सकता है वैसा ना कर पाएं लेकिन मुंबई को तो मिसाल पेश करनी ही होगी कि उसे रात से डर नहीं लगता।