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This Article is From Apr 14, 2015

बाबा की कलम से : शीला दीक्षित का दर्द

Manoranjan Bharti, Saad Bin Omer
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  • Updated:
    अप्रैल 14, 2015 20:21 pm IST
    • Published On अप्रैल 14, 2015 19:27 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 14, 2015 20:21 pm IST

शीला दीक्षित का यह कहना कि सोनिया गांधी जिम्मेदारी से नहीं भागती हैं और उनका सभी नेताओं के साथ सहजता से घुलना मिलना हो जाता हैं। अब इसका मतलब क्या है? जो बात शीला दीक्षित ने नहीं की वह है कि राहुल गांधी भगोड़े हैं, यानि राहुल को दो महीने की छुट्टी पर जाने के बजाए संसद के बजट सत्र में मौजूद रहना चाहिए था और भूमि अधिग्रहण बिल पर सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलना चाहिए था। यही नहीं किसानों की जो फसल बर्बाद हुई है, उसको लेकर इस वक्त उनके दुख-दर्द में शामिल होना चाहिए था।

शीला दीक्षित ने बात तो ठीक की है, राहुल गांधी अपनी पार्टी के नेताओं के साथ सहजता से घुल मिल नहीं पाते। यह अनुभव शीला दीक्षित को ही होगा या कांग्रेस के दूसरे नेताओं को। मगर इतना तो तय है कि बड़ी पीढ़ी के कई नेता चाहे वह हंसराज भारद्वाज हों या कैप्टन अमरिंदर सिंह, राहुल को और वक्त दिए जाने की बात कर रहे हैं।

यहां यह भी देखना होगा कि इन नेताओं ने या तो अपनी राजनीतिक पारी खेल ली है या अंतिम राजनैतिक दौर में हैं। इन सब को लगता है कि कहीं राहुल के आने के बाद उनकी कोई भी पूछ नहीं होगी। राहुल के खिलाफ बोलने के इन नेताओं के कई कारण हो सकते हैं, पंजाब में कैप्टन अमरिंदर प्रदेश अध्यक्ष प्रताप सिंह बाजवा से नाराज रहते हैं, तो दिल्ली में पार्टी की कमान अजय माकन को दे देने से शीला दीक्षित की नाराजगी स्वाभाविक है, क्योंकि शायद शीला दीक्षित को लगता होगा कि माकन संदीप दीक्षित के लिए पार्टी में कोई जगह नहीं देंगे।

शायद यही वजह है कि संदीप दीक्षित भी सोनिया गांधी के पक्ष में बयान दे चुके हैं। रही बात हंसराज भारद्वाज की तो अब उन्हें रिटायर हो जाना चाहिए। गांधी परिवार ने उन्हें काफी कुछ दिया। पांच बार राज्यसभा भेजा, केंद्र में मंत्री और फिर राज्यपाल बनाया।

राहुल का छुट्टी पर जाने के पीछे भी यही कारण है कि वह कांग्रेस को अपने ढंग से चलाना चाहते हैं और अपनी टीम बनाना चाहते हैं। दिक्कत यहीं है क्योंकि जो लोग अभी पार्टी में फैसले ले रहे हैं, उन्हें अपनी कुर्सी खतरे में दिख रही है। उनको यह नहीं पता कि टीम राहुल में उनकी जगह होगी या नहीं।

सोनिया गांधी के काम करने का तरीका अलग है, वह राजीव गांधी के टीम के लोगों पर भरोसा करती आई हैं और लंबे समय से जुड़े लोगों का सम्मान करती हैं और उन्हें दरकिनार नहीं करती। दूसरे प्रधानमंत्री पद को ठुकरा देने की वजह से उनका राजनीतिक कद राहुल के मुकाबले काफी बड़ा है। साथ ही राहुल जयपुर के चिंतन शिविर में सत्ता को जहर बता चुके हैं, जिससे उनकी छवि कुछ ऐसे नेता की बनी है जो राजनीति में शायद मजबूरी में हैं। फिर उनके मार्क शीट में भी अच्छे रिजल्ट नहीं हैं।

यही वजह है कि राहुल अपने आप में भरोसा पैदा नहीं करते हैं। खैर यह बताया जा रहा है कि राहुल एक दो दिन में आने वाले हैं और 19 अप्रैल को दिल्ली में कांग्रेस द्वारा आयोजित रैली में हिस्सा लेंगे। मगर इतना तो तय है कि राहुल की ताजपोशी का वक्त थोडा टल गया है।

पहले यह इसी महीने होना था, मगर अब इस साल के अंत तक होगा। हालांकि राहुल के कहने पर कांग्रेस संगठन के अंदरूनी चुनाव के लिए तारीख की घोषणा कर दी गई है। यह एक अच्छी शुरुआत है। नए पार्टी प्रवक्ताओं की नियुक्ति और कुछ प्रदेश अध्यक्षों को बनाने में भी राहुल की छाप दिख रही है।

कांग्रेस में राहुल को लेकर जो बेचैनी दिख रही है, वह जितना जल्दी खत्म होगा पार्टी के लिए उतना ही अच्छा होगा और सोनिया गांधी की भूमिका का भी सबको इंतजार रहेगा।

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