बाबा की कलम से : जासूसी, एक खेल जो बदस्तूर जारी रहता है, सरकार चाहे जो भी हो

राहुल गांधी की फाइल फोटो

नई दिल्ली:

राहुल गांधी की जासूसी का मामला कांग्रेस गंवाना नहीं चाहती है। कांग्रेस ने दोनों सदनों में इस पर अपना विरोध जताया। कांग्रेस को पता है कि बजट सत्र के पहले हिस्से के खत्म होने में केवल चार दिन बचे हैं और उसे पता है कि सरकार का काफी काम काज बचा है, खास कर राज्य सभा में।

सरकार के पास इस सत्र में अपनी उपलब्धि दिखाने के लिए बीमा बिल और मोटर बिल के आलावा कुछ नहीं हैं और उसे बजट भी पास कराना है। ऐसे में सरकार विपक्ष को नाराज नहीं करना चाहती।

सरकार की यह दलील है कि अभी तक 526 लोगों की जांच की गई है, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की जांच 2014 में, बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह की जांच इसी साल और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अब तक तीन बार जांच की जा चुकी है।

सरकार का कहना है कि दिल्ली पुलिस ने यह प्रक्रिया 1957 में शुरू की थी, जिसमें 1999 में फेरबदल किया गया।

सरकार ने यह भी दलील दी है कि राजीव गांधी की बम ब्लास्ट में हत्या के बाद उनकी पहचान उनके जूते की साईज से की गई थी। ये सारे आंकड़े पुलिस के पास होते हैं जिसे हर 3-4 साल पर अपडेट किया जाता है। पुलिस जो जानकारी मांगती है उसमें आप क्या पहनते हैं, उसमें जूते का साईज भी है, मूंछ या दाढ़ी का रंग, आंखों का रंग, पहचान के लिए कोई विशेष निशान वगैरह। लेकिन विपक्ष ये सवाल कर रहा है कि उन्हें लगता है कि कइयों के फोन टैप किए जा रहे हैं, ऐसा ही एक मामला कुछ साल पहले आया था जब अरुण जेटली, जो उस वक्त नेता प्रतिपक्ष थे, का फोन किसी आदमी ने या किसी संस्था ने स्वतंत्र रूप से रिकॉर्ड किया था।

उस मामले की जांच भी दिल्ली पुलिस ने की थी। इस केस में पुलिस ने चार्जशीट दाखिल कर दी है। यदि सुनी सुनाई बातों की मानें तो सरकार, उसकी अलग-अलग एजेंसियां और कॉरपोरेट जगत को मिला दें तो रोजाना एक लाख फोनों की टैपिंग की जाती है। अपने देश में जासूसी शब्द मानो करंट की तरह है।

चन्द्रशेखर की 40 दिनों की सरकार से राजीव गांधी ने इसलिए समर्थन वापिस ले लिया था कि उनके घर के बाहर दो पुलिस वाले घूमते पाए जाते थे और कांग्रेस पार्टी को लगा कि ये राजीव गांधी की जासूसी कर रहे थे। फिर क्या था चन्द्रशेखर की सरकार गिर गई।

अभी फिलहाल ऐसे हालात नहीं हैं, मगर जिस बहुमत से बीजेपी की सरकार बनी है ऐसा भ्रम देने में कोई दिक्कत नहीं होगी कि सरकार मनमानी कर रही है। यह सरकार की कठोर छवि के साथ जाती भी है। यही वजह है कि सरकार ने दिल्ली पुलिस कमिश्नर को संसद में तलब किया और वे घंटों संसद में बैठे रहे और सरकार के लिए जवाब तैयार करने में लगे रहे।

पुलिस का मानना है कि राजनीति को सुरक्षा से अलग रखना चाहिए। इसके घालमेल से खामियाजा सुरक्षा को उठाना पड़ेगा। यह पुलिस का मामला है और इसे पुलिस पर ही छोड़ दिया जाना चाहिए। मगर क्या करें मामला राहुल गांधी से जुड़ा हो तो कांग्रेस पीछे हटते क्यों दिखना चाहेगी। यही वजह है कि कांग्रेस की तरफ से गुलाम नबी आजाद, आनंद शर्मा, दिग्विजय सिंह, समाजवादी पार्टी के नरेश अग्रवाल और जेडीयू के तरफ से केसी त्यागी ने सरकार पर हमला बोल दिया। आज के हालात में राज्यसभा को नया लोकसभा कहा जाने लगा है क्योंकि सरकार को यहां विपक्ष हर मुद्दे पर बैकफुट में रख रहा है।

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कांग्रेस भी राहुल के संसद में उपस्थित न होने के बावजूद मुद्दा को जिंदा रख रही है और सब पार्टियों को मालूम है कि जब भी जिसकी सरकार होती है वह विपक्ष या अपने राजनीतिक दुश्मनों पर नजर तो रखता ही है और पुलिस महज कठपुतली होती है। क्योंकि असली ताकत तो कहीं और बैठी होती है और ये खेल एक सरकार के बाद दूसरी सरकार तक बदस्तूर जारी रहता है और रहेगा।