आखिरकार कोई अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर पहली बार इतिहास में प्रधानमंत्री के रूप में शपथ लेने के लिए तैयार है. इमरान खान के नेतृत्व वाली तहरीक-ए-इंसाफ 116 सीट जीतकर सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर सामने आई है. सबकुछ योजनाबद्ध रहा है!! और इमरान की पार्टी को आसानी से किसी दूसरी पार्टी या निर्दलीय विजेता उम्मीदवारों से समर्थन मिल जाएगा.
सालों से भारतीय क्रिकेटप्रेमियों के बीच यह चर्चा जोर-शोर से चलती रही है कि इमरान खान और कपिल देव में से बेहतर ऑलराउंडर कौन है? यह सही है कि तौलने के लिए आंकड़े ही सर्वश्रेष्ठ कारक होते हैं, लेकिन यह अंतिम सत्य भी नहीं होते! बहरहाल, करोड़ों भारतीय सहित दुनिया के करोड़ों क्रिकेटप्रेमियों को यह स्वीकारने में सेकेंड्स भी नहीं लगेंगे कि कपिल देव और इमरान खान में कौन सर्वश्रेष्ठ कप्तान रहा है.
इमरान ने साल 1971 में बतौर निचले क्रम (नंबर-8) बल्लेबाज और एक औसत गेंदबाज के रूप में अपने टेस्ट करियर का आगाज किया था. लेकिन साल 1992 में उनके शानदार करियर का अंत बहुत ही यादगार और ऐतिहासिक उपलब्धियों के साथ हुआ. तब इमरान को क्रिकेट इतिहास के सर्वकालिक ऑलराउंडरों में से एक गिना गया, तो इससे ऊपर वह पाकिस्तान के सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ कप्तान करार दिए गए. एक ऐसा कप्तान जिसने पाकिस्तान क्रिकेट के चेहरे को पूरी तरह बदल दिया, अपने देश की क्रिकेट को सही ट्रैक पर लाते हुए नई ऊंचाइयां प्रदान कीं, यादगार जीतें हासिल कीं और उन्होंने महान वसीम अकरम और वकार युनिस सहित अगली पीढ़ी के कई खिलाड़ियों को "पैदा" करने में अहम योगदान दिया.
साथ ही, उन्होंने व्यक्तिगत रूप से कई रिकॉर्ड बनाए और पाकिस्तान को साल 1992 में विश्व कप का खिताब दिलाया. इमरान खान के कुछ यादगार रिकॉर्डों में इयान बॉथम के बाद सबसे कम टेस्ट (75) में तीन हजार और तीन सौ विकेटों का ‘डबल’ बनाना. वहीं, टेस्ट में नंबर छह बल्लेबाजी क्रम पर टेस्ट क्रिकेट के इतिहास में दूसरा सर्वकालिक सर्वश्रेष्ठ औसत (61.86) भी हासिल किया.
आम जनता के लिहाज से इमरान संभवत: पाकिस्तान के इतिहास की सबसे ब़ड़ी प्रेरणादायक शख्सियतों में से एक रहे हैं. लेकिन विकास के लिहाज से पाकिस्तान की आम जनता पर यह असर दिखाई नहीं पड़ा. इमरान की दीवानगी जरूर सिर चढ़कर बोली, लेकिन क्रिकेट मैदान से इतर एक राष्ट्रव्यापी नजरिए से परिणामों में यह असर नहीं दिखा. और यह दिखना भी नहीं था! और पाकिस्तान आजादी प्राप्त करने के सात दशकों और इमरान खान जैसी शख्सियतों के उदय के बाद भी आज भी एक खुद को एक सफल राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के लिए बुरी तरह संघर्ष कर रहा है. मोर्चे कई हैं. प्रजातंत्र, आतंकवाद से मुक्ति, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान, बेहतर अर्थव्यवस्था वगैरह-वगैरह.
इमरान खान ने टेस्ट क्रिकेट में हासिल किए 362 में से ज्यादातर विकेट या इसका एक बड़ा हिस्सा अपनी बहुत ही घातक इनकटर्स (टप्पा खाने के बाद जो गेंद अंदर की तरफ आती है) या ऑफ कटर्स गेंदों के जरिए प्राप्त किया. संभवत: इमरान खान क्रिकेट इतिहास के सर्वश्रेष्ठ या इसमें से एक इनकटर्स फेंकने वाले गेंदबाज हैं! कई बार ऐसा देखने को मिला कि जब बल्लेबाज ने गेंद को विकेटकीपर के लिए छोड़ा, तो गेंद उसके स्टंप्स बिखेर गई. इमरान खान की इनकटर्स काफी लंबी होती थीं. ऐसी गेंद फेंकने के लिए गेंदबाज को डिलीवरी प्वाइंट से पहले हाई जंप और कंधे की बहुत ज्यादा ताकत लगाने की जरुरत पड़ती है. इसी जरुरत या इन गेंदों में उनकी ताकत निहित होने के चलते इनकर्टस गेंदों ने इमरान खान के कंधे को बहुत "दर्द" दिया. इसका ऑपरेशन भी कराना पड़ा. इस शैली के ज्यादातर गेंदबाजों के करियर की ढलान के समय अक्सर ही कंधे की समस्या से दो-चार होना पड़ता है. कारण यह है कि इनकटर्स गेंदों के लिए कंधे की ताकत का इस्तेमाल आउट या इन स्विंग फेंकने की तुलना में कहीं ज्यादा करना पड़ता है.
बहरहाल, अपना राजनीतिक करियर साल 1996 में शुरू करने के बाद से इमरान खान ने हुए आम चुनाव में अपने करियर की सर्वश्रेष्ठ ‘इनकटर’ फेंकी है. इस इनकटर से वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री बनने की कगार पर खड़े हैं. यहां तक पहुंचने लिए इमरान को बहुत ज्यादा संघर्ष, उतार-चढ़ाव और प्रतिरोध से होकर गुजरना पड़ा है. और पिछले करीब 22 सालों ने इमरान खान को यह बात बहुत ही अच्छी तरह से समझा दी है कि क्रिकेट और राजनीतिक पिच एक नदी के दो किनारों की तरह है. उनके लिहाज से सबसे अच्छी बात यह रही कि ठीक क्रिकेट मैदान की तरह इमरान ने राजनीतिक पिच पर भी अपनी लोकप्रिय जिद और कभी हार न माने के जज्बे का बखूबी प्रदर्शन किया.
लेकिन मैदान की इन-कटर से इमरान की राजनीतिक इन-कटर एकदम जुदा है क्योंकि इस जुदा पिच पर उनके कंधे की ताकत के अलावा पाकिस्तान की सेना की ताकत का बहुत बड़ा योगदान है. इस योगदान के बिना इमरान "राजनीतिक इन-कटर" फेंक ही नहीं सकते थे! और यह बात उनके सामने खड़ी कई चुनौतियों को कई गुना बड़ा कर देती है. अनगिनत चुनौतियों सिर्फ घरेलू मोर्चे पर ही नहीं, बल्कि अंतरराष्ट्रीय मंच पर भी हैं. वास्तव में चुनावों में विपक्षी पार्टियों के सेना की दखलअंदाजी और भ्रष्टचार के आरोपों से इमरान की चुनौतियां बतौर प्रधानमंत्री शपथ लेने से पहले ही शुरू हो चुकी हैं.
भारत के नजरिए से वास्तव में कुछ भी नहीं बदलने जा रहा है. इमरान खान भी पाकिस्तान के 16वें सेना प्रमुख राहिल शरीफ द्वारा तय की लक्ष्मण रेखा को पार करने नहीं ही जा रहे. हो सकता है कि कुछ पुरानी और ‘घिसी-पिटी’ घोषणाओं को ऐलान हो जाए. उदाहरण के तौर पर दोनों देशों के बीच एक बार फिर से बातचीत की शुरुआत, किसी तटस्थ स्थान पर भारत-पाकिस्तान के बीच द्विपक्षीय सीरीज का आयोजन, या कुछ व्यापारिक आदान-प्रदान की घोषणाएं. लेकिन इससे ऊपर जाने की हिम्मत तो इमरान खान नहीं ही दिखा पाएंगे. और अगर कुछ अप्रत्याशित हुआ, तो उड़ी और पठानकोट जैसी घटनाएं फिर से सामने आ सकती हैं. कारण साफ है कि पाकिस्तान में सेना की दुकान ही सर्वोच्च दुकान है! और यह अभी से साफ है कि इमरान खान प्रधानमंत्री बनने के बाद भारत की लंबे समय से लंबित मुंबई आतंकी हमले के आरोपियों को कड़ी सजा दिलाने की दिशा में कुछ अलग या आउट-ऑफ-बॉक्स रवैया अख्तियार करने नहीं ही जा रहे हैं. वह भी इस मामले में पिछली सरकारों जैसे ही साबित होंगे. भारत के लिहाज से दोनों देशों के सबंध सुधरने की दिशा में इस मुद्दे का सही हल निकलना बहुत ही जरूरी है.
इमरान भारत के लिए कैसे साबित होते हैं, यह तो काफी हद तक अनुमान लगाया जा सकता है, लेकिन एक बात बहुत ही साफ दीवार पर लिखी इबारत की तरह पढ़ी जा सकती है. बतौर पीएम घरेलू मोर्चे पर इमरान खान के पास ‘बड़े विकेट’ चटकाने के लिए जरूर हैं. और इन बड़े विकेटों को आतंकवाद, दिन पर दिन कमजोर होती अर्थव्यवस्था, तहरीक-ए-तालिबान, अंतरराष्ट्रीय मंच पर सम्मान वगैरह-वगैरह के रूप में देखा जा सकता है. वास्तव में यह एक अंतहीन सूची है! और क्रिकेट मैदान से उलट इन ‘बड़े विकेटों’ की ऊंचाई और गोलाई कई और कई गुना ज्यादा है. ऐसे में बड़ा सवाल यही है कि क्या इमरान खान अपनी ‘राजनीतिक इनकटर’ से इन बड़े स्टम्प्स को बिखेर भी पाएंगे?? यह इमरान के लिए कमोबेश असंभव सरीखा है!
(मनीष शर्मा Khabar.NDTV.com में डिप्टी न्यूज एडिटर हैं...)
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This Article is From Jul 26, 2018
इमरान खान: क्या "सर्वश्रेष्ठ इन-कटर" क्रिकेट मैदान से आधी भी असरदार साबित होगी?
Manish Sharma
- ब्लॉग,
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Updated:जुलाई 30, 2018 18:49 pm IST
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Published On जुलाई 26, 2018 22:57 pm IST
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Last Updated On जुलाई 30, 2018 18:49 pm IST
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