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This Article is From Aug 06, 2018

नीतीश कुमार आखिरकार देर से आए लेकिन दुरुस्त आए..

Manish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 06, 2018 23:17 pm IST
    • Published On अगस्त 06, 2018 23:17 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 06, 2018 23:17 pm IST
इंसान कभी-कभी खामोश रहके अपने समर्थकों और विरोधियों दोनों को परेशान करता है. लेकिन जब वो इस मौन व्रत को खत्म करता है तब उसके वाक्य और प्रतिक्रिया की सबको बेताबी से इंतज़ार रहता है. मुजफ्फरपुर प्रकरण पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की हालत कुछ वैसे ही खामोश इंसान की थी. जिनकी चुप्पी से उनके अपने समर्थक और विरोधियों को परेशानी थी.

पिछले तीन दिनों से मुजफ्फरपुर की घटना पर यहां वहां अलग-अलग कार्यक्रमों में भाषण के दौरान उक्त घटना पर कुछ वाक्य बोलने के बाद सोमवार को उन्होंने सार्वजनिक रूप से खुलकर बोला और खुद बोला पत्रकारों के हर एक सवाल का जवाब दिया इसके बाद समर्थक तो दूर विरोधियों ने भी माना कि नीतीश देर आए लेकिन दुरुस्त आए. अपने जवाब में वो संतुलित रहे हैं और मुज़फ़्फ़रपुर कांड से सम्बंधित हर एक पहलू पर खुलकर बेबाक़ बोले जिसके बाद इस मुद्दे पर कोई भ्रम की स्थिति नहीं रही इस संवाददाता सम्मेलन से साफ़ झलक रहा था. न केवल केवल नीतीश बल्कि उनके अधिकारियों ने भी खूब जमकर इस प्रेस कॉन्फ़्रेन्स के लिए तैयारी की थी मामले की हर पहलू पर उनकी हर दिन हो रही आलोचना का जवाब तैयार करके आए थे और हर सवाल का जवाब देने के लिए तैयार बैठे थे.

ये संवाददाता सम्मेलन कई कारणों से आने वाले दिनों में याद किया जाएगा जिसमें सबसे पहला नीतीश का वो बयान होगा की मुज़फ़्फ़रपुर का मुद्दा आपस में टकराव का मुद्दा नहीं होना चाहिए. उन्होंने दो टूक शब्दों में सबसे पहले स्वीकार कर लिया कि बाल गृहों और ऐसे विशेष गृहों के संचालन में उसकी व्यवस्था में ख़ामी है और वो अब एनजीओ के माध्यम से इसका संचालन नहीं चाहते. इस मुद्दे पर उनकी तैयारी भी पूरी थी कि उन्होंने घोषणा की कि आने वाले समय में सरकार ऐसे गृह का संचालन सरकारी भवनों में अपने कर्मचारी और अधिकारी के माध्यम से करेगी क्योंकि उनकी जवाबदेही होती है. हालांकि उन्होंने साफ़ स्वीकार किया कि ये क्रमवार समयबद्ध तरीक़े से होगा. हालांकि मंत्री मंजू वर्मा के इस्तीफ़े पर नीतीश को जमकर आलोचना झेलनी पड़ रही है लेकिन नीतीश शायद उनकी जाति और महिला होने के कारण जांच एजेन्सी की कार्रवाई का इंतज़ार कर रहे हैं. मंजू वर्मा ने ख़ुद स्वीकार किया था कि वे ब्रजेश ठाकुर के घर पर बने बाल गृह में जाती थीं लेकिन उनके लिए सबसे बड़ी राहत है अभी तक विपक्ष उनकी संलिप्तता का एक भी सबूत नहीं दे पाया है. उन्हें मालूम है कि जिस दिन एक काग़ज़ मिल गया उनका इस्तीफ़ा एक औपचारिकता रह जाएगा.

नीतीश को इस बात का आभास और अन्दाज़ भलीभांति है कि मुज़फ़्फ़रपुर की घटना पर कार्रवाई करने के बावजूद पूरे देश में उनकी जमकर आलोचना हो रही है. इसलिए वो बार बार बोलते रहे कितने राज्यों ने TISS जैसे संस्थान से ऑडिट करवाया. लेकिन उनकी आलोचना के पीछे उनकी पार्टी के नेताओं का मानना है कि देश के सेक्युलर मीडिया जो पिछले साल जुलाई तक उनके साथ और पीछे खड़ी रहती थी और और भाजपा के इशारे पर चलने वाले न्यूज़ चैनल के बीच नीतीश पर हमला करने के लिए एक अलिखित समझौता भी है. इन नेताओं का साफ़ कहना है कि आप देखिए जब राज्यपाल ने पत्र लिखा और उसी दिन से चैनल के एजेंडा पर मुज़फ़्फ़रपुर कैसे सबसे पहले आ गया. इन चैनलों द्वारा नीतीश को उनके तमाम कार्रवाई के बाद एक विलेन की भूमिका में पेश किया जा रहा है. लेकिन वो चाहे आईआरसीटीसी का मामला हो या मुज़फ़्फ़रपुर का नीतीश कुमार को अब कोई भ्रम नहीं होगा कि उन पर जब भी कोई संकट आएगा तब शायद सहयोगी भाजपा विपक्षी राजद से कहीं अधिक इस लक्ष्य के लिए आतुर रहता है कि उन्हें राजनीतिक रूप से कैसे निबटाया जाए.

हालांकि भाजपा के सत्ता में रहने के कारण राजद में विपक्ष उतना असरदार और प्रभावी नहीं है जिससे सत्ता में बैठे लोगों की नींद हराम हो जाए. मुज़फ़्फ़रपुर में तेजस्वी यादव और उनके समर्थक भले इस बात को लेकर ख़ुश हैं कि दिल्ली में जंतर मंतर पर आयोजित धरना पर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल से लेके कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पहुंचे लेकिन एक दूसरा पक्ष ये भी रहा कि जब विधानसभा में सरकार जवाब दे रही थी तब तेजस्वी अपने विधानसभा चेम्बर में नहीं बल्कि घर पर बैठे थे. वैसे ही इस मुद्दे पर बिहार बंद का समर्थन तो किया लेकिन सड़कों पर नहीं उतरे. मधुबनी के बाल गृह से एक बच्ची के ग़ायब होने को उन्होंने एक गवाह को गायब होने को संज्ञा दी लेकिन तथ्य कुछ और था. असल में वो बच्ची गूंगी है और गवाह नहीं थी. जिससे तेजस्वी के बयानों का हल्कापन पता चला. वैसे ही उन्होंने अपने बयान में आरोप लगा दिया कि प्राथमिकी से ब्रजेश ठाकुर का नाम ग़ायब है लेकिन वो भी सच नहीं निकला.

लेकिन तमाम आलोचना कि बावजूद बिहार सरकार और नीतीश के आलोचक भी मानते हैं कि ब्रजेश ठाकुर के प्रकरण में मुज़फ़्फ़रपुर पुलिस ने जांच में ग़लतियां बहुत कम कीं. जहां तक ब्रजेश के हॉस्पिटल में रहने का सवाल है और पूछताछ के लिए रिमांड ना लेने का सवाल है उस पर राज्य के पुलिस  महानिदेशक ने साफ़ किया चूंकि वो न्यायिक हिरासत में हैं इसलिए कोर्ट के आदेश से उन्हें हॉस्पिटल की सुविधा मिली है. वहीं इस मामले में कोर्ट में पूछताछ के लिए रिमांड मांगने के बावजूद कोर्ट से आदेश यही मिला कि पूछताछ जेल में किया जाए. लेकिन इसके बावजूद ये भी सच है कि ब्रजेश फला फूला तो नीतीश कुमार के ज़माने में. कई जानकार लोगों का कहना है कि सेक्स और पैसे के सामने वो लोगों को फंसाता गया और एक ऐसे ज़ोन में चला गया कि विश्वास कर बैठा कि कोई उसका कुछ बिगाड़ नहीं सकता.

लेकिन ब्रजेश की कहानी अभी ख़त्म नहीं हुई. कम से कम नीतीश कुमार को ये प्रकरण कई सारे सबक़ दे गया. उन्हें शायद इस बात का कभी अंदाज़ा नहीं होगा कि उनके पुराने मित्र सत्यपाल मालिक राज्यपाल की भूमिका में दबाव में उनसे पत्राचार करेंगे. दूसरा भले उनकी सहयोगी है भाजपा, मौके की तलाश में है, उन्हें येन केन प्रकरण कैसे कमज़ोर किया जाए. साथ ही उन्हें अपने मंत्रियों के परिवार के साथ सरकारी दौरे पर जाने पर नज़र रखनी होगी. इस बार नीतीश को ये भी महसूस हुआ होगा कि मीडिया में उनकी बात ना सुनने या उनके किए कामों को लिखने वाले चुनिंदा लोग बचे हैं.

फ़िलहाल आने वाले समय में नीतीश कुमार की असल परीक्षा दो फ़्रंट पर होगी. कैसे ब्रजेश ठाकुर को जल्द से जल्द वो सज़ा दिलाते हैं.भले जांच सीबीआई के हाथों में हो लेकिन नीतीश को ये दबाव बनाए रखना होगा कि जांच एजेन्सी ट्रायल जल्द पूरा हो. बच्चियों का भविष्य सुरक्षित करने के लिए कितना जल्द वो सरकारी भवन में रखने के अपने निर्णय को कार्यान्वित करते हैं. सबसे ज़्यादा ब्रजेश के ऊपर जिन अधिकारियों के ऊपर हाथ था उनके ख़िलाफ़ क्या कार्रवाई करते हैं.


मनीष कुमार NDTV इंडिया में एक्ज़ीक्यूटिव एडिटर हैं...

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