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This Article is From Aug 17, 2021

गांधी परिवार के नेतृत्व पर कम होता भरोसा?

Manoranjan Bharati
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 17, 2021 21:46 pm IST
    • Published On अगस्त 17, 2021 20:40 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 17, 2021 21:46 pm IST

क्या गांधी परिवार के नेतृत्व पर खुद कांग्रेस के नेताओं का भरोसा कम होता जा रहा है. ये सवाल इसलिए महत्वपूर्ण होता जा रहा है कि कांग्रेस से नेताओं के जाने का सिलसिला रुक नहीं रहा है. सबसे ताजा उदाहरण सुष्मिता देब हैं जो असम से कांग्रेस की सांसद रह चुकी हैं. यही नहीं राष्ट्रीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी रही हैं. मगर अब उन्होंने ममता बनर्जी वाली तृणमूल कांग्रेस का दामन थाम लिया. वो तो भला हो सुष्मिता देब का कि उन्होंने कहा ''हमारा कांग्रेस से तीस साल का रिश्ता रहा है. कांग्रेस ने मुझे काम करने का बहुत मौका दिया. अगर मुझसे कोई कमी रह गई है तो सोनिया जी मुझे माफ करें. मैंने राहुल के नेतृत्व में काम किया और अब ममता जी के नेतृत्व में काम करूंगी. दोनों नेताओं में खूबियां हैं.'' ये सुष्मिता देब के बोल हैं. जाहिर है खानदानी कांग्रेसी रहीं हैं. उनके पिता संतोष मोहन देब नरसिम्हा राव सरकार में मंत्री रह चुके हैं और सात बार के सांसद भी, जिसमें 5 बार असम से तो दो बार त्रिपुरा से.

अब देब परिवार की इसी खूबी को ममता बनर्जी ने पहचाना और झट से अपने पाले में कर लिया. कहा जा रहा है कि उन्हें राज्य सभा में लाया जा सकता है. मगर कहानी सुष्मिता देब नहीं हैं, असल बीमारी ये है कि इतने लोग आखिर कांग्रेस छोड़ कर क्यों जा रहे हैं. पिछले 6-7 सालों में कांग्रेस को कम से कम 30 बड़े नेता छोड़ कर जा चुके हैं. यदि असम की ही बात करूं तो सुष्मिता देब के अलावा राज्यसभा में कांग्रेस के चीफ व्हीप और सांसद भुवनेश्वर कलिता, हृरण्या भुंइया और सांसद सेन्टीयूज कुजुर जैसे लोग भी जा चुके हैं. फिर सबसे बड़ा नाम आता है ज्योतिरादित्य सिंधिया, जिन्होंने कांग्रेस छोडने के बाद कमलनाथ की सरकार गिराई और अब केन्द्र में मंत्री हैं. फिर आते हैं जितिन प्रसाद. इन सब नेताओं का जिक्र करना इसलिए भी जरूरी है कि ये सब उस युवा वर्ग से आते हैं जिन पर कांग्रेस को आगे ले जाने की जिम्मेवारी थी और जो राहुल और प्रियंका गांधी के साथ या कहें हम उम्र के लोग हैं.

सवाल तो वही है कि क्या इनको दोनों नए गांधी के नेतृत्व पर भरोसा नहीं रहा या फिर इनकी कोई सुनने वाला नहीं था. या फिर इन्हें लगा कि कांग्रेस में रहना टाईम वेस्ट करना होगा क्योंकि शायद अगले कुछ चुनावों तक वो सत्ता में नहीं आ पाए क्योंकि जो भी नेता कांग्रेस छोड़ कर गए हैं वो लोकसभा का चुनाव हार गए थे और बीजेपी में जा कर अधिक से अधिक वो मंत्री ही बन सकते हैं या फिर सांसद. ये भारतीय राजनीति का ट्रेंड है कि किसी तरह सत्ता के करीब रहना है. चाहे कांग्रेस से ही क्यों ना जीते हों, यदि बीजेपी की सरकार बन रही है तो वहीं चले जाते हैं.

नहीं तो मध्यप्रदेश के 22 कांग्रेस विधायक पाला क्यों बदलते. गोवा में तो 15 कांग्रेसी विधायकों में से 10 बीजेपी में चले गए. कर्नाटक में भी कांग्रेस और जेडीएस के 14 विधायकों ने अपनी सरकार गिरा कर बीजेपी की सरकार बनवा दी. मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश में तो कांग्रेस के मुख्यमंत्री ने ही पाला बदल लिया. उसी तरह असम में कांग्रेस नेतृत्व से नाराज हो कर बीजेपी गए हेमंत बिस्वा शर्मा आज मुख्यमंत्री हैं.

मनोरंजन भारती NDTV इंडिया में मैनेजिंग एडिटर हैं...

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