भोपाल में दिग्विजय सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ने के लिए BJP की पसंद हैं, 48-वर्षीय साध्वी प्रज्ञा ठाकुर, जो हत्या, षड्यंत्र रचने और इससे भी ज़्यादा वर्ष 2008 में हुए मालेगांव बम ब्लास्ट केस की आरोपी हैं.
नौ साल जेल में बिताने के बाद प्रज्ञा ठाकुर को 2017 में ज़मानत मिली थी. उनकी उम्मीदवारी कई कारणों से कतई निर्णायक अवसर है. मेरे विचार में, यही है, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अध्यक्ष अमित शाह के अंतर्गत संचालित BJP को देश की अन्य सभी राजनैतिक पार्टियों से अलग करती है. कोई भी अन्य पार्टी इतनी दूषित नहीं हुई है कि वह आतंकवाद के आरोपी को पार्टी प्रत्याशी बना दे.
प्रज्ञा का चयन करने के लिए BJP अध्यक्ष अमित शाह की ओर से ज़िद पर अड़े शख्स की तरह दी गई सफाई यह थी कि इससे कांग्रेस को 'हिन्दू आतंकवाद' का मुद्दा उठाने के लिए दंडित किया जा सकेगा. इस तरह का अड़ियल बयान राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) द्वारा की जा रही जांच और प्रज्ञा के खिलाफ सुनवाई कर रही अदालत को पूरी तरह खारिज करता है.
इससे यह भी साफ नज़र आता है कि 'सबका साथ, सबका विकास' के नारे को BJP ने लगभग दफना दिया है, ताकि कट्टर हिन्दुत्व की लाइन को बढ़ावा देकर बचे हुए छह चरणों (गुरवार को मिलाकर) में वोटों का ध्रुवीकरण किया जा सके.
इसी लाइन पर आगे बढ़ते हुए प्रज्ञा ठाकुर ने इसे 'धर्मयुद्ध' की संज्ञा दे डाली और दिग्विजय सिंह पर भगवा को आतंकवाद के समकक्ष बताने का आरोप लगा डाला. दूसरी तरफ, दिग्विजय इस पर बेहद चौकन्ने रहे, और कोई भी टिप्पणी करने से इंकार करते हुए सिर्फ इतना कहा कि वह 'प्रज्ञा ठाकुर का भोपाल में स्वागत करते हैं...'

हालांकि अतीत में दिग्विजय सिंह 'भगवा आतंकवाद' के मुद्दे पर काफी कुछ कहते रहे हैं, और उन्होंने तो कांग्रेस के ही नेतृत्व वाली UPA सरकार तक पर सवाल खड़े कर दिए थे, जब वर्ष 2008 में दिल्ली में बाटला हाउस मुठभेड़ हुई थी, और पुलिस ने संदिग्ध मुस्लिम आतंकवादियों को मार गिराया था.
सो, 2019 में सबसे ज़्यादा ध्रुवीकरण कहीं होने जा रहा है, तो वह भोपाल में हो रही दिग्विजय बनाम ठाकुर लड़ाई में ही है.
मोदी के कार्यकाल के दौरान BJP हिन्दुत्व के नए धुरंधरों को मुख्यधारा में लेकर आई है, जिनमें कट्टरपंथी साधु से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने योगी आदित्यनाथ शामिल हैं, और अब, प्रज्ञा को सामने लाया गया है, जबकि हिन्दुत्व के वास्तविक कट्टर पैरोकारों और पार्टी के संस्थापकों लालकृष्ण आडवाणी और मुरली मनोहर जोशी को पार्टी ने रिटायरमेंट में धकेल दिया है.
ध्यान देने लायक बात यह है कि योगी आदित्यनाथ तथा अन्य की मदद से जिस 'फुंदने' को टांका गया था, वही अब BJP का मूल स्वरूप बन चुका है. चुनाव आयोग ने योगी आदित्यनाथ पर ऐसी टिप्पणियां करने के लिए 72 घंटे तक प्रचार करने की पाबंदी लगाई है, जो आदर्श आचार संहिता का उल्लंघन करती हैं, और साम्प्रदायिक भावनाएं भड़काती हैं.
30 साल से BJP के कब्ज़े में बने हुए गढ़, यानी भोपाल में प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी कांग्रेस प्रत्याशी दिग्विजय सिंह के नाम की घोषणा के लगभग एक महीने बाद तय हुई है, और दिग्विजय ने शुरू में ही कहा था कि वह 'कठिन सीट' की चुनौती को स्वीकार करते हैं.

अमित शाह ने इससे पहले राज्य के पूर्व मुख्यमंत्रियों शिवराज सिंह चौहान और उमा भारती से भोपाल सीट पर लड़ने के लिए कहा था, लेकिन दोनों ने ही इंकार कर दिया. प्रज्ञा ठाकुर को उतारने का सुझाव राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की ओर से आया, और मोदी तथा शाह ने इसे तुरंत ही स्वीकार कर लिया, खासतौर से इसलिए, क्योंकि ख़बरों के मुताबिक, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की आठ सीटों पर पहले चरण में हुए मतदान में BJP-विरोधी SP-BSP-RLD गठबंधन ने बेहतर प्रदर्शन किया.
विदर्भ में पहले चरण में भी मतदान हुआ था, और गुरुवार को दूसरे चरण में भी. वर्ष 2014 में BJP ने यहां सभी 10 सीटें जीती थीं. BJP के अंदरूनी सर्वे के मुताबिक, इस बार पहले चरण के मतदान में पार्टी का प्रदर्शन खासतौर से अच्छा नहीं रहा है.
नागपुर स्थित RSS मुख्यालय से मिला संदेश था कि विकास और राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे काम नहीं कर रहे हैं. बालाकोट हवाई हमले का मुद्दा उठने से पहले कुछ देर के लिए BJP द्वारा उठाए गए राम मंदिर के मुद्दे से BJP का समर्पित मतदाता उत्साहित नहीं हो पाया, सो, अब हिन्दुत्व का संदेश फैलाने में ही भलाई है, क्योंकि बालाकोट से मोदी के लिए पैदा हुआ उत्साह भी जल्द ही फीका पड़ गया लगता है.
कांग्रेस भी इस कदम से हैरान रह गई है. एक वरिष्ठ नेता ने मुझसे कहा, "हम प्रज्ञा ठाकुर के खिलाफ चुनावी लड़ाई लड़ेंगे, लेकिन हम वे बातें हरगिज़ नहीं कहेंगे, जिनकी BJP हमसे बेचैनी से उम्मीद कर रही है... यह हमारे लिए बिछाया गया जाल है, और हम अपनी ओर से ध्रुवीकरण करने में उन्हें कोई मदद नहीं देंगे..."
जम्मू एवं कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने ट्वीट किया, "उस गुस्से की कल्पना कीजिए, अगर मैंने आतंकवाद के किसी आरोपी को चुनाव मैदान में उतार दिया होता... चैनल पगला गए होते, और हैशटैग ट्रेंड कर गया होता... इन लोगों के मुताबिक, जब भगवा कट्टरपंथियों की बात होती है, तो आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता, वरना सभी मुस्लिम आतंकवादी होते हैं... तब तक दोषी, जब तक वे बेगुनाह साबित न हो जाएं..."
Imagine the anger if I'd field a terror accused. Channels would've gone berserk by now trending a mehboobaterrorist hashtag! According to these guys terror has no religion when it comes to saffron fanatics but otherwise all Muslims are terrorists. Guilty until proven innocent https://t.co/ymTumxgty7
— Mehbooba Mufti (@MehboobaMufti) April 17, 2019
लेकिन ठाकुर के चयन का लक्ष्य BJP के समर्पित वोटरों को फिर एकजुट करना, और दूर चले गए पुराने विश्वासियों को वापस लाने की कोशिश है. इससे यह भी सुनिश्चित हो सकेगा कि BJP को हमेशा लाभ देने वाली RSS भी जीत सुनिश्चित करने के लिए पूरी ताकत लगा दे.
लकीर को पार कर आतंकवाद के आरोपी शख्स को संसद में पहुंचाने से मोदी-शाह को कोई फर्क नहीं पड़ता है, जो किसी भी कीमत पर 2019 का चुनाव जीतना चाहते हैं.
स्वाति चतुर्वेदी लेखिका तथा पत्रकार हैं, जो 'इंडियन एक्सप्रेस', 'द स्टेट्समैन' तथा 'द हिन्दुस्तान टाइम्स' के साथ काम कर चुकी हैं...
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