यह ख़बर 13 अगस्त, 2014 को प्रकाशित हुई थी

बाबा की कलम से : बीजेपी के लिए कठिन है डगर राज्यसभा की

फाइल फोटो

नई दिल्ली:

लोकसभा में नया उपाध्यक्ष चुना गया, कायदे से यह पद मुख्य विपक्षी दल को जाता है। पिछली बार करिया मुंडा उपाध्यक्ष थे। मगर इस बार चूंकि कांग्रेस को मुख्य विपक्षी दल का दर्जा नहीं दिया गया इसलिए अभी तक उसे न तो नेता विपक्ष का पद मिला और न ही लोकसभा में उपाध्यक्ष का।

सरकार चाहती तो यहां बीजेपी के किसी नेता को भी उपाध्यक्ष बना सकती थी, मगर उसने ऐसा नहीं किया। सरकार की नजर राज्यसभा की संख्या पर थी। एआईएडीएमके के राज्यसभा में 11 सदस्य हैं और 42 सदस्यों वाली बीजेपी के लिए एआईएडीएमके एक बडी़ सहयोगी हो सकती है क्योंकि राज्यसभा में सरकार बुरी तरह से अल्पमत में है। उसके सभी बिल संख्या के आधार पर लटकते जा रहे हैं।

ऐसे में राज्यसभा में मुखर रहने वाली एआईएडीएमके एक माहौल बनाने के साथ-साथ संख्या बल में भी सरकार की मदद कर सकती है। सरकार जानती है कि राज्यसभा में उसका अल्पमत में होना अभी काफी दिनों तक उसे परेशान करता रहेगा क्योंकि निकट भविष्य में सरकार के पास राज्यसभा में संख्या नहीं आने वाली। यदि, बीजेपी महाराष्ट्र, हरियाणा और दिल्ली जीत भी जाए तो भी फर्क नहीं पड़ेगा।

अगले दो सालों तक राज्यसभा के जिन सीटों पर चुनाव होने हैं उनमें से अधिकतर बीजेपी के ही पास है और राज्यसभा के लिए बड़ा चुनाव दो साल बाद ही होना है। बीजेपी को राज्यसभा में तभी बहुमत मिलेगा यदि वह उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में सत्ता में आती है।

यही वजह है कि बीजेपी कभी एनसीपी पर डोरे डालती है तो कभी नवीन पटनायक की बीजेडी पर, लेकिन राज्यसभा में दो बड़े दल तृणमूल कांग्रेस और मायावती से सरकार को नजदीकियां बढ़ानी होगी, तभी सरकार का बेड़ा पार हो सकता है या फिर हर बिल पर कांग्रेस के साथ कोई डील हो क्योंकि हर बिल के लिए सरकार संसद का संयुक्त सत्र बुलाना नहीं चाहेगी।

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कुल मिलाकर यदि मोदी का जादू चला तो 2016 के बाद बीजेपी का राज्यसभा में बहुमत हो सकता है और तब तक उसे जोड़तोड़ से ही काम चलाना पड़ेगा।