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This Article is From Feb 21, 2016

जाट आरक्षण आंदोलन : हरियाणा में ऐसी 'अराजकता' जायज है?

Rakesh Tiwari
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    फ़रवरी 23, 2016 11:35 am IST
    • Published On फ़रवरी 21, 2016 13:28 pm IST
    • Last Updated On फ़रवरी 23, 2016 11:35 am IST
देश का एक हिस्सा इन दिनों आरक्षण की 'आग' में झुलस रहा है। जाट आरक्षण की मांग के बीच हुई भीषण हिंसा और लूटपाट की घटनाएं चिंताजनक हैं। कुछ इस आंदोलन के समर्थन में हैं, तो कुछ विरोध में, वहीं एक तीसरा पक्ष भी है जो 'असमंजस' में है। ऐसा ही होता है जब हमें देश से ज्यादा अपने 'वोट बैंक' की चिंता होती है। केंद्र या संबंधित राज्य के सत्ताधारी दल का ही उदाहरण लीजिए, उसने अपने ही एक सांसद को इसकी आलोचना करने पर कारण बताओ नोटिस थमा दिया है। मतलब साफ है उन्हें देश के नुकसान से ज्यादा किसी और चीज का डर है। मेरा सवाल आरक्षण पर नहीं बल्कि इसे मांगने के तरीके पर है और मेरे सवाल पर 'सवाल उठाने' से पहले कृपया इस आंदोलन के अब तक के दुष्परिणामों पर एक नजर डाल लीजिए-
  • 5 से 7 रेलवे स्टेशन बर्बाद! मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आंदोलन की हिंसा में 5-7 स्टेशनों को जबर्दस्त नुकसान हुआ है, जिसमें लगभग 200 करोड़ रुपये के नुकसान की आशंका जताई जा रही है।
  • लगभग 800 ट्रेनें रद्द! आप इससे रेलवे को होने वाली राजस्व हानि की कल्पना कर सकते हैं। साथ ही जनजीवन अस्तव्यस्त है। लाखों लोग जहां के तहां फंसकर रह गए हैं।
  •  कई बस स्टैंड और सरकारी दफ्तर आग के हवाले
  •  कई सड़कें खोद डालीं और उन पर जाम लगा दिया, यहां तक कि सेना को भी हेलिकॉप्टर से प्रवेश करना पड़ा। पूरे देश से राज्य का संपर्क टूटा।
  •  लगभग 1000 से अधिक वाहनों और 500 से अधिक दुकानों को जलाए जाने की खबर
  •  जम्मू की 20 ट्रेनें रद्द होने से वैष्णो देवी के 30 हजार से अधिक यात्री फंसे।

ये आंकड़े अलग-अलग मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित हैं। इसके अलावा भी काफी नुकसान संभावित है। कई बड़ी दुकानें  और मॉल जला दिए गए। इसमें इन दुकानदारों का क्या कसूर था। क्या आरक्षण नहीं देने में इनका कोई रोल था। फिर इन्हें क्यों सजा मिली? जबर्दस्त सरकारी नुकसान के अलावा जरा मानवीय दृष्टि से देखिए कि वे लोग जो खुद या अपने परिवार के साथ घर से बाहर निकले हैं और आंदोलन के कारण घर नहीं लौट पा रहे हैं, उनका क्या होगा। कुछ ऐसे लोग भी होंगे जिनके पास पैसों की कमी होगी, वे क्या करेंगे। उनके बच्चों का क्या होगा। एक बात और ऐसे में खाने-पीने के सामान की किल्लत होने से महंगाई भी चरम पर होगी।

उन निर्दोष लोगों पर भी ध्यान दीजिए, जिनका इससे कोई लेना-देना नहीं है, लेकिन हिंसा के कारण उन्हें जान गंवानी पड़ी है। उनके परिवार का क्या होगा। उन घायलों का क्या जो अस्पताल में संघर्ष कर रहे हैं।

दूसरी ओर हम सरकारों को विकास पर ध्यान नहीं देने के लिए कोसते रहते हैं, लेकिन क्या हमने रेलवे, सड़कों या अन्य सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाकर राज्य को विकास के रास्ते से काफी पीछे नहीं धकेल दिया है। अब इनकी मरम्मत पर आने वाले खर्च के बारे में भी सोचिए। इन दिनों जारी 'देशभक्ति' पर बहस के बीच हमें इस पर भी विचार करना चाहिए, क्योंकि देश के विकास में योगदान भी राष्ट्रभक्ति है। मेरा विरोध आरक्षण की मांग से नहीं है, क्योंकि यह अलग विषय है। मैं सवाल आरक्षण की मांग के तरीके पर उठा रहा हूं। क्या यह तरीका 'अराजक' नहीं है?

आखिर सरकार का दायित्व क्या है? केवल अपने वोट बैंक की चिंता करना या देश के व्यापक हित में फैसले लेना? इससे पहले भी हम गुर्जर आंदोलन के दौरान सरकारों के ढीले-ढाले रवैये का शिकार हो चुके हैं। आखिर यह कब तक चलेगा? हमें गंभीरता से सोचना होगा और हल तलाशना होगा...

राकेश तिवारी एनडीटीवी खबर डॉट कॉम में डिप्‍टी न्‍यूज एडिटर हैं...

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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