इंद्राणी पार्ट 3 - कत्ल का राज़, पुलिस कमिश्‍नर और मीडिया

इंद्राणी पार्ट 3 - कत्ल का राज़, पुलिस कमिश्‍नर और मीडिया

इंद्राणी मुखर्जी की फाइल फोटो

मुंबई:

सोचिये 8 घंटे मुंबई का कमिश्नर कब किसी पुलिस स्टेशन में बैठता है? ऐसा पुलिसिया इतिहास में कभी-कभी ही होता है कि परिवार का मुखिया खुद आ जाये और सीनियर इंस्पेक्टर का काम करने लगे। वो जांच अधिकारी बन जाए और कड़ियां जोड़ने लगे। खार पुलिस स्टेशन आजकल पूरे शहर की मीडिया का गढ़ बना हुआ है।

गुरुवार की रात तो 8 घंटे चली पूछताछ रात को 10.30 बज़े खत्म हुई। क्राइम रिपोर्टिंग करने वालों की हालत बुरी है। पुलिस स्टेशन के बाहर पहरा दे रहे हैं। कोई अर्दली भी निकलता है तो उन्हें लगता है कि शायद कोई छोटी सी जानकारी मिल जाए। सारे पुलिस के सूत्र इस वक्त सुन्न हैं। कोई सही ख़बर कैसे लीक कर दे जब कमिश्नर खुद सारा हिसाब किताब रख रहे हैं।

कमिश्नर बैठते हैं तो उनके खासमखास अफसर भी वहीं मौजूद रहते हैं। ये लोग उनके इशारे पर कड़ियां जोड़ने का काम करते हैं। ऐसा नहीं है कि जांच के दौरान सबको एक साथ बिठाकर पूछताछ हो रही है। पूरा काम अलग-अलग टीम कर रही हैं। एक टीम ड्राइवर से पूछताछ कर रही है। उससे जो कुछ मिलता है उसी के आधार पर इंद्राणी से सवाल जवाब होते हैं। और अब नया किरदार संजीव खन्ना भी आ चुका है। इंद्राणी का पूर्व पति है। इससे वो सब पूछा जाएगा जो अब तक इंद्राणी और संजीव खन्ना ने उगला है। ऐसी जांच में पुलिस मनोविज्ञान का खेल भी खेल रही है। एक पुलिस अफसर जो जांच में शामिल हैं वो अब इस नतीजे पर पहुंच चुके हैं कि इंद्राणी की सोच बेहद शातिराना है। और उसने जो कुछ अब तक बताया है वो किसी पेशेवर शातिर दिमाग जैसा है।

इस पूरी जांच में जो किरदार बाहर हैं वो लगातार खार पुलिस स्टेशन आ जा रहे हैं। पुलिस की कोशिश है कि ये किरदार अब मीडिया से ज्यादा बात न करें। वैसे जो कुछ मीडिया में छप रहा है वो पुलिस की सोची लाइन पर ही आ रहा है।

कमिश्नर का अनुभव इस जांच में काम आएगा। लेकिन पुलिस के मुखिया जब एक मर्डर की जांच खुद पुलिस स्टेशन में जाकर करते हैं तो इसके अपने नफे नुकसान हैं। फायदा ये हो सकता है कि पुलिस का अदना अफसर किसी बड़े रखूखदार के दबाव में नहीं आएगा। कोई ऐसी गड़बड़ी जांच में नहीं होगी जिससे सारे किये धरे का बंटाधार हो जाए। लेकिन नुकसार पूरे शहर का और आने वाले कमिश्नरों का होगा।

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शहर में जब शीना की मौत की जांच हो रही है तब उसी वक्त कई और क्राइम हो रहे हैं। ऐसे में क्या पुलिस कमिश्नर की ड्यूटी सिर्फ एक अपराध की जांच है? या फिर उसे बराबर वक्त और सिर्फ एक मार्गदर्शक की भूमिका निभानी चाहिये? नुकसान ये भी है कि हर हत्या के बाद क्या जनता नहीं चाहेगी कि कमिश्नर इसी तरह की दखलंदाजी करें? क्या ये हमारे सिस्टम में इतना वक्त और संसाधन हैं कि ऐसा किया जा सके। लोग सवाल तो करेंगे ही क्या वजह है कि कमिश्नर साहब हाई प्रोफाइल जांच खुद करते हैं?