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This Article is From Aug 17, 2015

संयुक्त अरब अमीरात में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी...

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अगस्त 17, 2015 21:46 pm IST
    • Published On अगस्त 17, 2015 21:04 pm IST
    • Last Updated On अगस्त 17, 2015 21:46 pm IST
दशकों तक दुबई नेपाल की तरह आम हिन्दुस्तानियों के लिए विदेशी सामान का सपना हुआ करता था। बाद में दुबई को हमारी फिल्मों ने उन तत्वों का अड्डा बना दिया जो डॉन बनकर अमावस की रात गोदी पर दुबई से सोना लेकर आते थे या दुबई भाग जाते थे। शेष भारत दुबई की इस छवि में जीता रहा तो एक भारत रोज़गार तलाशते दुबई पहुंच गया। एक छोटे से भारत के लिए दुबई रईसी का अड्डा भी बना।

दिल्ली के पालिका बाज़ार वालों का भी शुक्रिया अदा करना चाहिए। उनके मार्फत भी दुबई का सामान न जाने कितने घरों में पहुंचा होगा। इन तमाम छवियों के बीच हम यह भूल गए कि दुबई या अन्य खाड़ी देशों में मेहनतकश ईमानदार भारतीय भी रहते हैं। दुबई, कतर, अबू धाबी, अजमान, फुज़ायरा, रास अल ख़ायमा, शारजाह, और उम अल क्वैन। इन सात अमीरातों को मिलाकर संयुक्त अरब अमीरात बनता है जिसके दौरे पर हमारे प्रधानमंत्री गए हैं। जहां 25 लाख भारतीय रहते हैं।

अभी तक आपने प्रधानमंत्री को अमरीका आस्ट्रेलिया और इंग्लैंड में रहने वाले अप्रवासी भारतीयों के बीच देखा है, एनआरई के रूप में भारत में उनका दबदबा भी रहा है। शायद पहली बार प्रधानमंत्री मोदी की इस यात्रा से अरब मुल्कों में मज़दूरी करने गए लाखों भारतीयों को अमरीका वाले एन आर आई जैसा महत्व मिला है। संयुक्त अरब अमीरात की आबादी का तीस प्रतिशत हिस्सा भारतीयों का है। वहां की स्थानीय आबादी से भी ज़्यादा वहां भारतीय हो गए हैं। यहां आज़मगढ़ के मुसलमान रहते हैं तो सीवान के हिन्दू भी रहते हैं।

पंजाब के दलित सिख भी गए हैं तो केरल के ईसाई भी गए हैं। ये लोग हर साल 1300 करोड़ रुपया भारत भेजते हैं। 34 साल बाद कोई प्रधानमंत्री संयुक्त अरब अमीरात की यात्रा पर गए हैं। अबु धाबी में शेख मोहम्मद बिन ज़ायेद अल नह्यान और उनके पांच भाइयों ने प्रोटोकोल तोड़ कर एयरपोर्ट पर प्रधानमंत्री का स्वागत किया। इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक इस तरह का स्वागत इसी मई में मोरक्को के राजा का किया गया था।

कारोबारी रिश्ते के मामले में अमरीका और चीन के बाद संयुक्त अरब अमीरात भारत का तीसरा बड़ा पार्टनर मुल्क है। प्रधानमंत्री ने वहां के लेबर कैंप में रहने वालों से भी मुलाकात की। अरब मुल्कों में रह रहे भारतीय मज़दूरों की अनेक समस्याएं हैं। उम्मीद की जानी चाहिए उनके इस दौरे से वहां के भारतीय मज़दूरों की समस्याओं का भी कुछ समाधान निकला होगा।

प्रधानमंत्री मोदी बार बार  21 वीं सदी को एशिया की सदी कहते हैं। क्या अब वह वक्त आ गया है कि उनकी इस बात को फलसफे के तौर पर देखा जाए। इस यात्रा को मिलाकर वे सात मुस्लिम देशों की यात्रा कर चुके हैं। मध्य एशिया के दौरे पर मीडिया ने कम ही ध्यान दिया।  उज़्बेकिस्तान, कज़ाख़्स्तान, किर्गीस्तान, ताजीकिस्तान और तुर्कमेनिस्तान से पहले वे बांग्लादेश जा चुके हैं। इससे पहले वे बौद्ध धर्म के लिहाज़ से म्यानमार, कोरिया, श्रीलंका, जापान चीन और मंगोलिया की यात्रा कर चुके हैं। 25 देशों की उनकी विदेश यात्रा में अगर मैंने ठीक से गिना है तो प्रधानमंत्री ने एशिया के सत्रह छोटे बड़े मुल्कों की यात्रा की है।

रविवार को जब प्रधानमंत्री शेख ज़ायद मस्जिद गए तो इसकी आलीशान इस्लामी वास्तुकला पर लोगों की कम नज़र गई। मक्का मदीना के बाद यह दुनिया की तीसरी बड़ी मस्जिद है जिसे अमीरात के संस्थापक शेख ज़ायेद बिन सुल्तान अल नह्यान की याद में बनाया गया है। 13 साल में बनी इस मस्जिद में एक साथ चालीस हज़ार लोग नमाज़ पढ़ सकते हैं। यह मस्जिद पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केंद्र है।

लेकिन मस्जिद में मोदी की तस्वीर को लेकर सोशल मीडिया में उनके समर्थकों और आलोचकों को रविवार भर के लिए अच्छा मसाला मिल गया। कुछ लोग इसे हिन्दू विजय बताने लगे तो कुछ इसी बहाने सवाल करने लगे कि बाहर की मस्जिद में जाकर हिन्दुस्तान की मस्जिदों में जाते तो भारत के मुसलमानो को बेहतर संदेश जाता।

ये दोनों ही प्रतिक्रियाएं अतिवादी और हल्की हैं। इसका ज़िक्र इसलिए किया कि सोशल मीडिया पर चल रहे इस खेल को आप सुविधा के हिसाब से नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते हैं। यह हमारी राजनीतिक विमर्श का बड़ा और महत्वपूर्ण हिस्सा है। सेंट्रल एशिया के मुस्लिम देशों की यात्रा को फिर क्यों न इस नज़र से देखा जाए। नेपाल के पशुपति नाथ मंदिर की यात्रा को हिन्दू छवि से जोड़ा गया लेकिन आज कम ही को वो छवि याद होगी। प्रधानमंत्री अबू धाबी के एकमात्र गुरुद्वारा में भी चले जाते लगे हाथ पंजाब में उनकी पार्टी का कुछ भला हो जाता।

विदेश यात्राओं को हमेशा इस तरह की संकुचित नज़र से नहीं देखा जाना चाहिए। कम से कम इसे फेसबुक ट्वीटर पर बन रहे भक्त बनाम आलोचक के खेल का मसाला बनाने से तो निश्चित ही बचना चाहिए। लोग कितनी जल्दी भूल गए कि प्रधानमंत्री ने इसी साल अजमेर शरीफ़ मुख़्तार अब्बास नक़वी के हाथों चादर भेजी थी। उससे भारतीय मुसलमानों में क्या संदेश नहीं पहुंचा या कुछ कम पहुंचा जिसे पूरा करने के लिए प्रधानमंत्री को इस मस्जिद में जाना पड़ा।

बीजेपी के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी कह दिया कि अगर मोदी जी के प्रयासों से आबू धाबी में शिव मंदिर बन सकता है तो अयोध्या में भी भव्य श्री राम मंदिर अवश्य बनेगा। बस उचित समय और वातावरण बनने तक धैर्य रखने की ज़रूरत है।

प्रधानमंत्री मोदी ने मस्जिद में कहा कि इस्लाम शांति सदभावना का धर्म है। कुरआन में इल्म शब्द का 800 शब्द का प्रयोग किया गया है। अल्लाह के बाद इल्म यानी ज्ञान शब्द सबसे ज़्यादा बार इस्तमाल हुआ है। जो दिखाता है कि इस्लाम में ज्ञान की क्या अहमियत है। े

रविवार को एक और बड़े फैसले की खबर आई जिसे प्रधानमंत्री ने भी मील का पत्थर बताया। अमीरात सरकार ने भारत को अबू धाबी में मंदिर बनाने के लिए ज़मीन देने का एलान किया था। दुबई में भगवान शिव और कृष्ण के मंदिर हैं लेकिन कहा जाता है कि अबू धाबी में मंदिर नहीं है। लेकिन टाइम्स आफ इंडिया की  2013 की एक ख़बर से संदेह फैला जिसमें कहा गया है कि कुछ मुसलमान कारोबारियों ने गुजरात के स्वामीनारायण संप्रदाय को मंदिर बनाने के लिए पांच एकड़ ज़मीन दी है।

अल जज़ीरा न्यूज़ वेबसाइट ने भी इस खबर का ज़िक्र करते हुए लिखा है कि अब यह साफ नहीं है कि मौजूदा फैसला उसी ज़मीन का है या ये कोई अलग निर्णय है। वैसे गूगल से पता चला कि 2013 के साल में स्वामिनारायण संस्था ने कई अरब मुल्कों में सत्संग का आयोजन किया था। इन खबरों की विशेष प्राथमिकता शायद अरब देशों की छवि के कारण भी मिल जाती होगी। जो भी है यह एक सुखद शुरुआत तो है ही।

सोमवार सुबह प्रधानमंत्री ने मसदर शहर की यात्रा की। इसे ज़ीरो कार्बन स्मार्ट सिटी कहते हैं। इसे स्मार्ट सिटी की तर्ज पर बसाया गया है। 2006 में यह शहर बनना शुरू हुआ था और 2009 में इसका पहला चरण पूरा हुआ था। 2020 से 25 में पूरी तरह बनकर तैयार होगा।

यहां प्रधानमंत्री मोदी ने एक सेल्फ ड्राइविंग कार की सवारी की जो सौर ऊर्जा से चार्ज होने वाली बैटरी से होती है। इस शहर में कार में नहीं चलती है। इसका एक प्राइवेट रैपिड ट्रांसपोर्ट सिस्टम है। यहां की सड़कों पर सेल्फ ड्राईविंग कारें चलती हैं। छह वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल है इस शरह का। प्रधानमंत्री की इस यात्रा को स्मार्ट सिटी में उनकी दिलचस्पी से जोड़ कर देखा जा सकता है।

इस शहर में प्रधानमंत्री बिजनेस जगत के साथ एक बैठक भी की और कहा कि भारत में तीन खरब डालर के निवेश की संभावना है। रेल से लेकर रक्षा तक में निवेश किये जा सकते हैं। 2013 में मुबारक अल नह्यान ने पाकिस्तान में 45 अरब डालर के निवेश का समझौता किया है जो पाकिस्तान में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है।

भारत संयुक्त अरब अमीरात से भारी निवेश की उम्मीद करता है तो उसके लिए भी अपने आप को हाज़िर करना चाहता है। दोनों मुल्कों के जो साझा बयान जारी हुए हैं वे भी कम दिलचस्प नहीं हैं। खाड़ी देशों में भारत के सत्तर लाख लोग रहते हैं। साक्षा बयान में कहा गया है कि यूएई बहुसंस्कृति समाज का एक ज्वलंत उदाहरण है। भारती भारी विविधता धार्मिक बहुलवाद और मिली जुली संस्कृति वाला देश है।

दोनों देश धर्म और आतंकवाद के बीच किसी रिश्ते और चरमपंथ को खारिज करते हैं...दोनों देश ऐसी कोशिशों की निंदा करते हैं चाहे वो देशों द्वारा ही की जा रही हों जहां धर्म को दूसरे देशों के ख़िलाफ़ आतंकवाद को बढ़ावा या समर्थन देने के लिए इस्तेमाल किया जाता हो... दोनों देश पश्चिम और दक्षिण एशिया में ऐसे देशों की कोशिशों की निंदा करते हैं जो राजनीतिक मुद्दों और विवादों को धार्मिक और कट्टर रंग देते हैं और अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए आतंकवाद का इस्तेमाल करते हैं...

धार्मिक कट्टरता के खिलाफ यूएई और भारत पार्टनर होंगे इस बात पर चर्चा की जानी चाहिए बजाए इस बात की कि प्रधानमंत्री मस्जिद क्यों गए। साक्षा बयान में आतंकवाद को लेकर जो बातें कही गईं वो भी अपने लिहाज़ से बेहद अहम हैं। इन सब पर बात होगी लेकिन पहले दुबई के उस स्टेडियम में चलते हैं जहां पचास साठ हज़ार लोग प्रधानमंत्री को सुनने का इंतज़ार कर रहे हैं। खाड़ी देशों के कई हिस्सों से लोग वहां सुनने के लिए मौजूद हैं।

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