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This Article is From Apr 21, 2019

यूपी में 74 सीटें अमित शाह ही जीत लेंगे तो बाकी वहां की राजनीति के शाह क्या करेंगे

Ravish Kumar
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    अप्रैल 21, 2019 19:14 pm IST
    • Published On अप्रैल 21, 2019 19:14 pm IST
    • Last Updated On अप्रैल 21, 2019 19:14 pm IST

उत्तर प्रदेश में 73 सीटों में से एक कम नहीं होगा. 72 की जगह 74 हो सकता है. यह बयान अमित शाह का है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह का इंडियन एक्सप्रेस में लंबा इंटरव्यू छपा है. उनके इस दावे से यही निष्कर्ष लगता है कि बसपा और सपा का गठबंधन समाप्त हो चुका है. इस बार फिर बसपा को शून्य आने वाला है और सपा अपने परिवार के नेताओं को ही जिता सकेगी. 2019 में अमित शाह के इस दावे पर हंसा जा सकता है लेकिन 2014 में यूपी के प्रभारी के तौर पर अमित शाह ने 73 सीटें जीत कर दिखाई थी. यूपी की राजनीति के सभी धुरंधर जानकारों को ग़लत साबित कर दिया था. क्या इस बार भी अमित शाह तमाम धुरंधरों को ग़लत साबित कर देंगे?

इसमें कोई शक नहीं कि अमित शाह मौजूदा दौर के सभी दलों के अध्यक्षों में काफी मेहनती हैं. आचार संहिता के बाद 100 रैलियों का आंकड़ा छू चुके हैं. उसके पहले भी वे लगातार रैलियां ही करते रहे हैं. किसी राजनीतिक पत्रकार ने अमित शाह की सभाओं का विश्लेषण नहीं किया है. क्या उनकी सभाओं में भी लोग प्रधानमंत्री की तरह सुनने के लिए दौड़े-दौड़े जाते हैं? आखिर 100 रैलियां कोई यूं ही नहीं करता है. क्या वाकई अमित शाह श्रोताओं को आकर्षित कर रहे हैं? लोगों के बीच लोकप्रिय नेता बन रहे हैं? अमित शाह की रैलियां और रैलियों में उनके आकर्षण को लेकर कोई बात नहीं करता है. अगर लोग उन्हें सुनने के लिए उमड़ रहे हैं तो बिल्कुल लिखा जाना चाहिए.

उत्तर प्रदेश के बारे में अमित शाह का दावा दिलचस्प है और चुनौतियों भरा है. यूपी को अमित शाह ने अपनी प्रयोगशाला में बदल दिया है. गुजरात की तरह बनाया है या किसी और की तरह, इसका विश्लेषण कभी किसी लेख में दिखा नहीं. आखिर यूपी में अमित शाह ने ऐसा क्या किया है कि सपा और बसपा के एक हो जाने के बाद भी दावा कर रहे हैं कि इनके एक होने के बाद भी बीजेपी को 80 में से 73 या 74 सीटें आएंगी. हालांकि जब एक्सप्रेस के रविश तिवारी और राजकमल झा ने पूछा कि दो चरणों के बारे में क्या कहते हैं तो टालते हुए जवाब देते हैं कि हम 74 सीटें जीत रहे हैं.

2014 के बाद देश में कई चुनाव हुए. यूपी ही अकेला चुनाव था जिसमें अमित शाह ने तय लक्ष्य से ज़्यादा हासिल कर दिखाया. 2017 के चुनाव में बीजेपी ने 203 का नारा दिया था मगर पार्टी को 300 से अधिक सीटें आ गईं. यानी अमित शाह भी अपने लक्ष्य और लहर का मूल्यांकन करने में सफल नहीं रहे. जितनी सीटें आ रही थीं उससे भी कम पाने की सोच रहे थे.

ख़ैर यूपी में दूसरी बार अमित शाह ने बड़ी सफलता हासिल की, इसलिए तीसरी बार के दावे पर हंसने से पहले एक ग्लास पानी पी लें. क्या वाकई ऐसा हो सकता है कि अखिलेश और मायावती का गठबंधन 0 से 6 पर सिमट जाए. फिर तो अखिलेश और मायावती को यूपी छोड़ देना चाहिए, गुजरात जाकर राजनीति करनी चाहिए.

2015 में बिहार के लिए बीजेपी ने मिशन 185 रखा था. 99 सीटें आईं. वहां जदयू, राजद और कांग्रेस की सरकार बनी. बाद में जद यू और बीजेपी की सरकार बनी.

2016 में बंगाल विधानसभा के लिए अमित शाह ने तृणमूल मुक्त बंगाल का नारा दिया था. बीजेपी ने वहां 294 में से 150 सीटों का लक्ष्य रखा था. 3 सीटें आईं.

पिछले साल कर्नाटक विधानसभा के लिए बीजेपी ने मिशन 150 का लक्ष्य रखा था. बीजेपी को 104 सीटें आईं. बहुत बुरा नहीं कहा जाएगा मगर बीजेपी सरकार नहीं बना सकी. कांग्रेस और जदएस की सरकार बनी.

गुजरात विधानसभा चुनावों में भी बीजेपी ने मिशन 150 का लक्ष्य रखा. वहां बीजेपी को 99 सीटें आईं. छठी बार बीजेपी सरकार बनाने में सफल रही.

हिमाचल प्रदेश में मिशन 50 प्लस रखा था. 44 सीटें आईं और बीजेपी की सरकार बनी. गोवा के चुनाव में बीजेपी 13 सीटें जीत सकी. 2012 में 21 सीटें थीं. दोबारा तो सरकार बन गई मगर कई दलों को मिलाकर सरकार बनानी पड़ी.

2017 में ही ओडिशा की रैली में अमित शाह ने 2019 के विधानसभा चुनावों में 120 सीटें जीतने का दावा किया था. इसका हिसाब भी समझाया था. इसके लिए लक्ष्य रखा है कि राज्य में 36000 बूथ हैं. हर बूथ पर 400 वोट लाना है. इससे वे नवीन पटनायक को उखाड़ फेंकेंगे. नतीजे आने दीजिए. अमित शाह के इस मिशन का भी हिसाब मिल जाएगा. अभी खारिज करना ठीक नहीं रहेगा.

40 से अधिक दलों के साथ गठबंधन बनाकर चुनावी मैदान में जाने वाली बीजेपी अमित शाह की कामयाबी है या नाकामी है? 16 राज्यों में सरकार बनाने के बाद बीजेपी 2019 में अपने दम पर चुनावों में नहीं जा सकी. तब भी नहीं जा सकी जब उसके पास सबसे बड़े ब्रांड नेता हैं. उत्तराखंड में बीजेपी की जीत में कांग्रेस भी है. उसके मंत्रिमंडल में कांग्रेस से आए नेता भी हैं. अमित शाह दबदबा बनाए रखने में माहिर नेता हैं. यह समझा जाना बाकी है कि उनकी जीत लोकप्रियता की जीत है या उस रणनीति की जिसके बारे में लोग कम जानते हैं.

अमित शाह अपने दावों में अजेय लगते हैं. हाव-भाव में भी. इसके बाद भी अमित शाह की रणनीति और निर्देशन में बीजेपी को बिहार, दिल्ली, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में हार का सामना करना पड़ा. 5 हिन्दी भाषी राज्यों में मिली हार कम बड़ी नहीं थी मगर अमित शाह अपने आत्मविश्वासी जवाब में उसे भी नकार जाते हैं. यूपी को छोड़ कई राज्यों में अपने तय लक्ष्य से कम लाने वाले अमित शाह ने 2019 के लिए मिशन 400 का लक्ष्य रखा है. यूपी के लिए 80 में से 74 का लक्ष्य रखा है.

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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