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This Article is From May 13, 2016

मैं विप्रो से सेक्सिज़म पर कई सालों तक लड़ी

Shreya Ukil
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    मई 13, 2016 13:33 pm IST
    • Published On मई 13, 2016 13:22 pm IST
    • Last Updated On मई 13, 2016 13:33 pm IST
-जैसा उन्‍होंने एनडीटीवी की राधिका अय्यर को लंदन में बताया

बहुत सालों तक मेरा ये मानना रहा कि विप्रो बड़ी कम्पनी के साथ-साथ नैतिकता और समानता का सम्मान करने वाली कम्पनी होगी। मैं कम्पनी में यूरोप में  BPO सेल्स हेड से लेकर प्रोडक्ट मार्केटिंग हेड तक की कई भूमिकाओं को निभाने सफल रही और कई परफॉरमेंस पुरुस्कार भी लिए। इसीलिए ये मेरे लिए एक सदमे से कम नहीं था जब मैंने 2011 के शुरू में जाना कि मुझे मेरे पुरुष सहकर्मियों की तुलना में आधा वेतन मिलता है। जब मैंने ये मुद्दा विप्रो के एचआर और विप्रो लीडरशिप टीम के समक्ष रखा तभी से मेरा विप्रो में समान वेतन और लिंगभेद के खिलाफ संघर्ष शुरू हो गया था।

जबकि लिंगभेद के मेरे सबसे बुरे अनुभव तो मुझे नवंबर 2013 और जनवरी 2014 में हुए। नवंबर 2013 हेलसिंकी में एक वित्त कार्यशाला मैंने अकेले सफलतापूर्वक पूरी की। मैंने नॉर्डिक देश में कम्पनी के ग्राहक से विप्रो की पहली डील हासिल कर ली। उपलब्धि की खुशी से सराबोर कार्यशाला से बाहर आते समय कम्पनी के ही एक सहकर्मी ने मुझ पर  डील का "लैटर ऑफ इंटेंट" हासिल करने के लिए "मैनुपुलेटिव बिच" होने का आरोप लगा दिया। मुझे याद है कि किस तरह से उस शाम में अकेली और रोती हुई होटल पहुंची थी।

इसी के जैसी एक और घटना दो महीने बाद हुई जब मैं एक 100 मिलियन डॉलर वाली बड़ी निविदा के लिए काम कर रही थी । मैं अपने काम में सफलता के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही थी। कम्पनी के एक वाइस प्रेसिडेंट ने सारे सहकर्मियों के सामने  सेक्सिस्ट इशारे  करते हुए टिप्पणी की कि मैं अपनी क्षमताओं के अलावा कुछ और इस्तेमाल कर रही हूं।
सही माध्यम  से की गई मेरी लोकपाल शिकायतों को "यू के ट्रायबूनल" ने इसे "एक्ट ऑफ वेंडालिज़म" यानि एक तरह की गुण्डागर्दी करार दिया। जैसे ही मैंने जाना कि मेरे पुरुष  सहकर्मियों की तुलना में बहुत कम वेतन मिलता है तभी से मैंने अपना वेतन सही करने के लिए बोलना शुरु कर दिया था और जब मैंने महसूस किया कि विप्रो में अब मेरी कोई सुनवाई नहीं होगी और यहां मेरी सारी संभावनाएं खत्म हो गई हैं, मुझे कोर्ट जाने का फैसला लेना पड़ा।

इस मामले में ऑफिस के बहुत से महिला और पुरुष सहकर्मी मेरे साथ हैं। कुछ मेरे साथ जो हुआ उस पर  चिंतित थे जबकि ज्यादातर हमेशा से मेरे सम्पर्क में रहे और मेरी जीत पर खुश भी हुए। लीडरशिप टीम की दो महिलाओं से मैंने बड़ी उम्मीद से  मदद मांगी उन्होंने भी मेरे दावों को खारिज कर दिया, यहां तक कि मेरी मुसीबतों के लिए भी जिम्मेदार बन गईं। नारी समानता के इस मुद्दे पर उनकी भूमिका बड़ी भयावह रही।

मेरी इस जंग का मेरी सेहत पर बहुत बुरा असर हुआ जिस कम्पनी को मैनें दस साल तक अपने घर जैसा समझा उसी के धोखे से मैं टूट सी गई थी। साफ था कि विप्रो का मेरी परेशानियों को वैध मानने का कोई इरादा नहीं था। मेरे पास खुद को साबित करने के लिए कोर्ट जाने के अलावा कोई रास्ता नहीं बचा था।

ऐसे पुरुष प्रधान उद्योग में लिंगभेदी नजरियों का होना और उन्हें चुनौती न मिल पाना आम बात है। मुझे इससे मतलब नहीं था कि मैं किसी बड़ी संस्था से जूझ रही हूं, मेरे लिए अब वो बड़ी रही भी नहीं थी। उनके लिए सारा सम्मान जा चुका था । उस पर मेरे पास अपने लिए काफी सबूत थे और मुझे विश्वास था कि मैं जीत ही जाऊंगी। विप्रो ने कम्पनी के हितों के विपरीत एक वरिष्ठ पुरुष सहकर्मी के साथ संबंधों को जाहिर ना करने का हवाला दे कर मुझे निकाल दिया।

ट्रिब्यूनल ने मेरे संबंधों को " जाहिर न करने" के मामले को गंभीरता से लिया, जबकि वास्तव में मैंने उसे घोषित किया था। मेरे वकीलों ने मुझे सलाह दी कि मैं मामले के इस पक्ष में विस्तार से टिप्पणी नहीं करूं। मैं नये कार्यक्षेत्र में उतरने वाली नई नारियों से ये कहना चाहती हूं कि पहले पड़ताल कर लें। जिस कम्पनी में काम करने जा रहीं हैं उसके बारे में जितना जान सकें जान लें। भेदभाव या प्रताड़ना संबंधी जानकारी के लिए ऑनलाइन सर्च करें। कम्पनी के बारे में अपने मित्रों से पूछें,  विशेषतौर पर ये जरुर पता करें कि क्या कम्पनी की अन्य महिलाओं की तरक्की के लिए सिफारिश की जा सकती है।

कम्पनी मार्केटिंग या पुरुस्कारों की बातों में न आएं क्योंकि मेरा अनुभव ये रहा है कि ऐसे पुरुस्कारों का कोई अर्थ नहीं है। मैं यहां ये कहना चाहती हूं कि कानूनी लड़ाई जीतना मेरे लिए  एक अध्याय  खत्म होना है। लेकिन इससे शुरुआत होती है एक लंबी और सार्थक परिचर्चाओं की जिनमें मैं महिलाओं के कार्यक्षेत्र में भेदभाव जैसे मुद्दों पर उनकी आवाज बन सकूं। इसमें समान वेतन, उच्च पदों पर महिलाओं की भागीदारी , जाने अनजाने पक्षपात, आदि मुद्दे भी शामिल हैं।

 महज इत्तेफाक से मुझे पता चला कि मुझे पुरुष सहकर्मियों की तुलना में आधा वेतन मिलता था महिलाओं के साथ  वेतन में ये अपारदर्शिता एक आम  बात है। मैं नहीं चाहती कि महीलाएं अपने सपने और महत्वाकांक्षाएं  छोड़ें। मै उनसे निवेदन करूंगी कि वे अपना एक मार्गदर्शकों का नेटवर्क बनाएं जिसमें महिला और पुरुष दोनों हों, चुनौतियां पहचानते हों और सलाह देने के लिए तैयार हों।  मैं महिलाओं से कहूंगी कि अन्य महिलाओं को सपोर्ट करें। और उच्च पदों पर पहुंच कर हम उन लोगों की सहायता करना ना भूलें जो हमारे समकक्ष आने के लिए समान रूप से प्रतिभाशाली हैं ।
ये मुद्दा भारत जैसे आउटसोर्सिंग उद्योग करने वाले देश के लिए बहुत जरुरी है। हम नहीं चाहेंगे कि एक बुरा अनुभव पूरी की पूरी आई टी इंडस्ट्री की छवि खराब कर दे। अगर ऐसाहो गया तो ये बहुत बुरा होगा।वैश्विक संस्थाएं, जो आउटसोर्सिंग  सर्विस प्रोवाइडर्स को काम सौंपती हैं, समान रोजगार अवसर कानून द्वारा नियंत्रित होती हैं  और महिलाओं के प्रति भेदभाव और प्रताड़ना जैसे मामलों के प्रति बहुत ही संवेदनशील होती हैं। कानून और ग्राहक संवेदनशीलता का मिश्रण ही कम्पनियों को बजाए मामलों को दबाने के त्वरित एवं सही कदम उठाने के लिए प्रेरित कर सकेंगीं। नारी प्रताड़ना का एक कानूनी मामला प्रतिष्ठा को लम्बे समय के लिए खराब कर देता है। कम से कम मै तो अपनी लड़की को ऐसी प्रतिष्ठा वाली कम्पनी में नहीं भेजुंगी।

(श्रेया उल्की एक वरिष्ठ बिज़नेस लीडर और समान वेतन अभियानकर्ता हैं।)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं। इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है। इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं। इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है।

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