करहल के बाज़ार में जली हुई दुकानें देखकर मैं ड्राइवर से कार रोकने को कहता हूं। मेरा सहयोगी संजय जैसे की कार से उतरता है उसके हाथ में कैमरा देखकर भीड़ इकट्ठा होने लगती है।
मैनपुरी के पास इस कस्बे में जहां शुक्रवार को हिंसा भड़की थी अब हालात काबू में दिखते हैं। दुकानें खुली हैं। ठेला लगाने वाले भी वापस सड़क पर आ गये हैं। लेकिन अब भी चारों और फोर्स तैनात है।
एक दंगा नियंत्रक गाड़ी हमारे पास से निकलती है और फिर आगे जाकर कहीं रुक जाती है। अब तक दुकानों के आगे कुर्सियों पर अलसाये बैठे पुलिस वाले भी कैमरा देखकर खड़े हो जाते हैं और अपने कपड़े झाड़ने लगते हैं।
असलम और कलाम की दुकानें
जली हुई दुकान के आगे जो शख्स खड़ा है उसका नाम छोटेलाल है। मैंने उससे पूछा - आपकी दुकान है? वह लाचारगी भरी नज़र से कैमरे की ओर देखता है और कहता है - नहीं... इसके पीछे वाली है। ' मैंने पूछा कि वो दुकान भी तो जल गई थी ना जिस पर छोटेलाल ने रोते हुए हां में जवाब दिया।
43 साल के छोटेलाल की करहल के इसी बाज़ार में हार्डवेयर की छोटी सी दुकान थी। वो हिन्दू समुदाय से हैं लेकिन शुक्रवार की आग उनकी रोज़ी को भी निगल गई। उनके पास अब कुछ नहीं बचा है। ज़िंदगी दोबारा शुरू करनी पड़ेगी।
जब मैं छोटेलाल से बात कर रहा था तब भीड़ में कुछ लोगों ने दो लोगों को खींचकर मेरे सामने लाकर खड़ा कर दिया। ‘ये इनकी दुकानें हैं भाई साहब ' एक आदमी उन्हें कैमरे के सामने धकेलते हुए कहता है। मैने उनके नाम पूछे तो उन्होंने एक एक करके अपना नाम असलम और कलाम बताया।
असलम ने बताया कि जब भीड़ आयी तो डर के मारे सब भाग गये थे। भीड़ के सिर पर खून सवार था। भाई कलाम ने बताया कि वह दोनों सब्ज़ी का व्यापार करते हैं। थोक में खरीदते हैं और फिर उसे इस बाज़ार में बेचते हैं।
मैंने छोटेलाल की तरफ इशारा करते हुए पूछा ‘तो आपकी दुकानें आपस में चिपकी हुई थीं।’ इस पर असलम ने जवाब दिया ‘जलाने तो वो मियां लोगों की दुकानें आए थे, लेकिन इनकी दुकान हमसे चिपकी हुई थी। उसने भी आग पकड़ ली।’
'अपना' आदमी तबाह हो गया
छोटेलाल हिन्दू है और उसने बताया ‘मैं तो बुझाने की कोशिश करता रहा साहब आग को। लेकिन वह तेज़ी से फैली। दुकान बचा नहीं पाये हम। ' भीड़ को असलम और कलाम को तबाह करना था। छोटेलाल भीड़ का ‘अपना’ आदमी था लेकिन गौरक्षा करने वालों ने उसे ही तबाह कर दिया।
असलम ने बताया ‘वो गऊ माता को लेकर नारे लगा रहे थे, कह रहे थे कि गऊ माता को मारने वालों को भगाओ। जला दो।’
गाय अचानक बहुत पवित्र और प्रिय हो गई है। जो भीड़ सड़क पर गिरे ज़िंदा इंसान के लिए नहीं रुकती उसे जानवरों की चिंता सताने लगी है। छोटेलाल के शब्द मेरे कान में पड़े जो कह रहा था ‘दंगा नहीं होना चाहिये सर। इस दंगे ने हमें खत्म कर दिया।’
दो घंटे बाद पुलिस आई
मैंने पूछा ‘कोई आया नहीं तुम्हें बचाने ' जिस पर जवाब मिला ‘बहुत देर तक पुलिस वालों को फोन लगाया सर… कह रहे थे आ रहे हैं आ रहे हैं... लेकिन दो घंटे बाद आई पुलिस।’
तभी पीछे से पुलिस वाले कैमरे के आसपास जुटी भीड़ को हटाते हुए कहने लगे ‘चलो हटो यहां से भीड़ मत लगाओ।’
देर से अलसाये बैठे इन पुलिस वालों को लगा कि अब काम करने का वक्त आ गया है। जो पुलिस दंगाइयों से इन गरीबों को नहीं बचा पाई वो हमें यहां से जाने को कह रही थी। मैंने जाने से पहले पीछे मुड़कर देखा। छोटेलाल अब भी असलम और कलाम के सामने खड़ा था, अपनी जली दुकान के आगे।
This Article is From Oct 11, 2015
‘जलाने तो वो मियां लोगों की दुकानें आये थे लेकिन...’ मैनपुरी पर हृदयेश जोशी
Hridayesh Joshi
- ब्लॉग,
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Updated:अक्टूबर 13, 2015 12:07 pm IST
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Published On अक्टूबर 11, 2015 11:17 am IST
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Last Updated On अक्टूबर 13, 2015 12:07 pm IST
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