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This Article is From Jan 09, 2020

मुम्बई में मृत छात्र आंदोलन को ज़िंदा करने के लिए शुक्रिया TISS और IIT Bombay

Sohit Mishra
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जनवरी 09, 2020 17:15 pm IST
    • Published On जनवरी 09, 2020 17:07 pm IST
    • Last Updated On जनवरी 09, 2020 17:15 pm IST

5 जनवरी को जेएनयू में छात्रों पर हुए हिंसक हमले से जहां पूरा देश हैरान था, तो वहीं मुम्बई में ऐसा कुछ हुआ जो पिछले कुछ सालों में कभी नहीं हो पाया था. लोग इस हमले का विरोध करने गेटवे ऑफ इंडिया पर जमा होने लगे, वो भी रात 12 बजे. जब इसकी जानकारी मुझे मिली तो मैंने सोचा कि अगली सुबह सोमवार होने के कारण शायद ही कोई इसमें शामिल होगा, लेकिन मैं गलत साबित हुआ. सुबह तक जमा हुए लोगों की तादाद में बढ़ोतरी हुई और सोमवार शाम तक सैकड़ों की संख्या में लोग बैनर पोस्टर लेकर ऐतिहासिक गेटवे ऑफ इंडिया और ताज होटल के बीच खड़े होकर इस हिंसा का विरोध कर रहे थे. बहुत समय बाद बड़ी संख्या में छात्र इसमें शामिल नज़र आए जो मुम्बई जैसे शहर के लिए एक बहुत बड़ी बात है. आखिर छात्रों में यह बदलाव कैसे आया?

साल था 2011, देशभर में अन्ना आंदोलन की लहर दौड़ रही थी. तब मैं सोमैया कॉलेज में पढ़ाई कर रहा था और टीवी चैनलों में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे इस मुहिम को देखकर मैं और मेरे मित्र विनीत ने तय किया कि हमें इसमें शामिल होना चाहिए. 16 अगस्त के दिन पहली बार हम दोनों छात्र आज़ाद मैदान पहुंचे. सरकार के खिलाफ जमकर नारेबाजी की. जिसके बाद पुलिस ने हमें हिरासत में लिया. तब मैं पहली बार पुलिस की गाड़ी में बैठने का अनुभव कर रहा था और यह सारा सिस्टम किस तरह काम करता है इसे अनुभव कर रहा था. अगले दिन हम दोनों ने तय किया कि हम हमारे अनुभव को कॉलेज में अपने साथियों के साथ साझा करेंगे और ज़्यादा से ज़्यादा छात्रों को भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे इस मुहिम से जोड़ेंगे, लेकिन जिस तरह हमने सोचा था, चीज़ें उस मुताबिक नहीं हुईं.

हमारे दोस्त और साथी हमपर हंसने लगे. कहने लगे इन सब में कुछ नहीं रखा है और हमें हमारे पढ़ाई और करियर पर ध्यान देना चाहिए. ऐसा ही कुछ कॉलेज के स्टाफ से भी सुनने को मिला. वैसे ऐसा भी नहीं है कि मेरे सभी दोस्त पढ़ाई कर रहे थे, लोग फ़िल्म देखना या क्रिकेट खेलने को इस मुहिम से जुड़ने से ज़्यादा महत्व दे रहे थे. जैसे कि भ्रष्टाचार का उनके जीवन से कोई लेना देना नहीं है. यही हाल मुम्बई के लगभग सभी कॉलेजों का था. छात्रों को अपने करियर और मनोरंजन को छोड़ किसी भी चीज़ से कोई लेना देना ही नहीं था, जिसके कारण अगर आप देखें तो 2011 के अन्ना आंदोलन में मुम्बई में कम भीड़ थी और उसमें कॉलेज के छात्रों की संख्या और भी कम!

पढ़ाई खत्म करने के बाद जब 2017 में मैं NDTV से जुड़ा तब रवीश कुमार जी के यूनिवर्सिटी सीरीज के लिए काम करने का मौका मिला. इसके जरिये हमने यूनिवर्सिटी की इमारतों, लाइब्रेरी की खराब हालत पर कई स्टोरी की. उसी समय मुम्बई विश्वविद्यालय ने ऑनलाइन सिस्टम से छात्रों के कॉपियों को जांचने की शुरुआत की थी, लेकिन उसमें कई गड़बड़ियां हुईं. जिसके कारण नतीजों के ऐलान में करीब 6 महीनों का समय लग गया. नियमों के अनुसार परीक्षा खत्म होने के 90 दिनों के भीतर नतीजों को घोषित किया जाना चाहिए, लेकिन यहां छात्रों को करीब 6 महीनों का इंतज़ार करना पड़ा, जिसका असर विदेश जाने वाले छात्रों के साथ ही मास्टर्स की पढ़ाई करने वाले छात्रों पर पड़ा. तब भी लॉ की पढ़ाई कर रहे अभिषेक भट्ट, सचिन पवार जैसे कुछ छात्र दिन रात इसका विरोध मुम्बई विश्वविद्यालय में रहे थे, लेकिन उनके साथ केवल 30 से 40 छात्र ही जुड़े हुए थे. जबकि इसका असर हज़ारों छात्रों पर पड़ रहा था. ऐसा लग रहा था कि छात्रों का इससे कोई लेना देना ही नहीं है या उन्हें पता ही नहीं है कि विरोध कैसे किया जाता है, यह दूसरी बार था जब मुम्बई के छात्रों ने निराश किया था.

लेकिन इसी यूनिवर्सिटी सीरीज के समय हमने मुम्बई के टाटा इंस्टीटूट ऑफ सोशल साइंस में चल रहे आंदोलन को कवर किया. प्रशासन ने SC और ST छात्रों को मिलने वाले ग्रांट को बंद करने का निर्णय लिया था. जिसका असर TISS के करीब 1200 छात्रों पर पड़ने वाला था. इसके खिलाफ छात्रों ने आंदोलन शुरू कर कैम्पस के मेन गेट पर धरना दे दिया और उस गेट को पूरी तरह ब्लॉक कर दिया. इस प्रदर्शन में बड़ी संख्या में छात्र इकट्ठा होकर प्रशासन के खिलाफ न केवल बोल रहे थे, बल्कि उन्हें पता था कि आखिर वो किस चीज़ का विरोध कर रहे थे, क्या सही है और क्या गलत. इस प्रदर्शन के समय तब के TISS के जनरल सेक्रेटरी फहाद अहमद ने सभी लोगों को बहुत प्रभावित किया था. छात्रों का आंदोलन करीब 110 दिन चला और पूरे 110 दिनों के लिए उन्होंने कैम्पस के मेन गेट को बंद रखा. मेरे लिए यह पहला अनुभव था जब छात्रों ने अपनी एकता की ताकत दिखाई.

इसके बाद इसी तरह की खबरें IIT बॉम्बे से भी आने लगीं, छोटी या बड़ी घटना पर यहां के छात्र खुलकर बोल रहे थे और अपनी बात सभी के सामने रख रहे थे. पहली बार लगा कि मुम्बई में भी छात्र दिल्ली की तरह ही देश के मुद्दों को जानते हैं और उसपर अपना मत रखते हैं. धीरे-धीरे अब बदलाव आना शुरू हो चुका था. अगर आप 2019 के 'आरे बचाओ' आंदोलन को भी देखें तो आपको बड़े पैमाने पर छात्र इससे जुड़े नज़र आएंगे. जिन 29 लोगों को पेड़ काटने से रोकने पर गिरफ्तार किया गया था, उसमें आपको TISS के कपिल अग्रवाल और मीमांसा सिंह का नाम भी मिलेगा जो खुलकर अब ऐसे मुद्दों पर बात करने लगे थे, उसके बाद TISS ने नागरिकता कानून के खिलाफ बड़े पैमाने में रैली निकाली जिसमें पहली बार सैंकड़ों छात्र एकसाथ मुम्बई के सड़कों पर प्रदर्शन करते और अपनी बात रखते नज़र आए. 19 दिसंबर को ग्रांट रोड के अगस्त क्रांति मैदान में नागरिकता कानून के खिलाफ हुए ऐतिहासिक प्रदर्शन में TISS और IIT बॉम्बे के छात्रों ने अहम भूमिका निभाई थी.

तो क्या अब मुम्बई की छात्र राजनीति में बदलाव आया है?

जवाब है नहीं, क्योंकि अगर आप देखें तो जितने भी छात्र बढ़ चढ़कर ऐसे प्रदर्शनों में हिस्सा ले रहे हैं, उनमें से अधिकांश लोग मुम्बई से नहीं बल्कि कहीं और से आते हैं, जहां उन्हें अपनी बात रखने की अहमियत पता है और इसलिए जब उनके सामने एक प्लेटफार्म मौजूद है तो वो खुलकर इसपर बोल रहे हैं. हालांकि अब ऐसे मुहिम में मुंबई के छात्र भी जुड़ते नज़र आ रहे हैं और उम्मीद यही है कि भविष्य में शायद मुम्बई के छात्र भी लोकतंत्र में अपने ज़िम्मेदारियों को समझकर उसका पालन करेंगे. इसकी शुरुआत करने के लिए TISS और IIT बॉम्बे के छात्र को बधाई देने की ज़रूरत है.

जब यह ब्लॉग लिख रहा हूं तब भी IIT बॉम्बे में बड़े पैमाने पर छात्र और शिक्षक दिन रात जेएनयू हिंसा के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं और अपनी बात को खुलकर रख रहे हैं. सैंकड़ों की तादाद में छात्रों के साथ ही 140 फैकल्टी मेंबर भी इसमें शामिल हैं, जो लोकतंत्र में अपनी ज़िम्मेदारी को बखूबी निभा रहे हैं. याद रहे, बतौर छात्र अगर आप अपनी जिम्मेदारियों को नहीं निभाएंगे, सिस्टम को नहीं समझेंगे और गलत को गलत नहीं कहेंगे तो आप एक अधमरे नागरिक बन जाएंगे जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है.  

- सोहित राकेश मिश्रा एनडीटीवी के संवाददाता हैं.  

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) :इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति NDTV उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार NDTV के नहीं हैं, तथा NDTV उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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