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This Article is From Jul 05, 2018

कितना कारगर होगा सोशल मीडिया की 'स्वच्छता' का अभियान?

Akhilesh Sharma
  • ब्लॉग,
  • Updated:
    जुलाई 05, 2018 17:39 pm IST
    • Published On जुलाई 05, 2018 17:39 pm IST
    • Last Updated On जुलाई 05, 2018 17:39 pm IST
सोशल मीडिया पर फैलता अफवाहों का जाल समाज के ताने-बाने को बुरी तरह से तहस-नहस कर रहा है. लोग आंखें मूंद कर व्हाट्सऐप या ऐसे ही दूसरे प्लेटफॉर्मस पर आई झूठी बातों, फर्जी खबरों और अफ़वाहों पर भरोसा कर एक-दूसरे के खून के प्यासे हो रहे हैं. शरारती और असामाजिक तत्व सोशल मीडिया की व्यापक पहुंच का फायदा उठा कर समाज में अशांति और गड़बड़ी फैलाने के लिए कर रहे हैं. देश का सांप्रदायिक माहौल खराब करना, झूठे प्रचार के ज़रिए किसी राजनीतिक पार्टी के समर्थन में माहौल तैयार करना या फिर गांव-कस्बों में अपरिचित या बाहरी लोगों के खिलाफ बच्चा चोरी की अफवाह फैला कर भीड़ की हिंसा यह सब इन प्लेटफॉर्म के जरिए हो रहा है.

मणिपुर की कुछ तस्वीरें सामने आई हैं जहां मंगलवार को दो अलग-अलग गांवों में बच्चा चोरी के शक में भीड़ पिटाई कर रही है. रविवार को महाराष्‍ट्र के धुले में पांच लोगों को गांव वालों ने मार डाला. घुमंतू समाज के ये पांच लोग गांव में खाने की तलाश में आए थे. चेन्नई में मेट्रो में काम करने वाले दो मजदूरों की पिटाई कर दी गई. दो जुलाई को बेंगलुरू में भीड़ ने बच्चा चोरी करने के शक में एक आदमी को क्रिकेट के बल्लों और लाठियों से पीट-पीट कर मार डाला. नाशिक के मालेगांव में भीड़ ने पांच लोगों पर हमला कर दिया लेकिन पुलिस उन्हें बचाने में कामयाब रही. बाद में गुस्साई भीड़ ने पुलिस की गाड़ी को जला डाला. मंगलवार को अहमदाबाद में एक महिला को भीड़ ने मार डाला. सूरत और राजकोट में भी ऐसी घटनाएं सामने आई हैं. त्रिपुरा में 28 जून को भीड़ ने उसी शख्स को मार डाला जो अफवाहों से खबरदार करने आया था. असम में आठ जून को दो दोस्तों को भीड़ ने मार डाला. खबरों के मुताबिक पिछले एक साल में कम से कम 20 लोग ऐसे हमलों में मारे गए हैं.

व्हाट्सऐप पर चले मैसेज में बच्चे चोरी के प्रति आगाह किया जाता है. इसमें कहा जाता है कि बाहरी लोगों से अपने बच्चों को बचा कर रखें. एक वीडियो भी फॉरवर्ड होता है जिसमें बाइक पर सवार दो लोग एक बच्चे को चुरा रहे हैं. पर यह वीडियो पाकिस्तान का है और यह सड़क सुरक्षा के बारे में है.

लगातार बढ़ रही घटनाओं के बाद सरकार हरकत में आई है. आईटी मंत्रालय ने व्हाट्सऐप को पत्र लिखा था जिसका जवाब व्हाट्सऐप ने दिया. इसमें कहा गया है कि व्हाट्सऐप सिर्फ भारत के लिए एक नया फीचर ला रहा है जिसमें हर फॉरवर्ड मैसेज पर लिखा होगा कि यह फॉरवर्ड किया गया है ताकि उसे आगे भेजने से पहले लोग सोचें कि यह गलत भी हो सकता है. साथ ही हर ग्रुप का एडमिन यह तय कर पाएगा कि कौन सदस्य मैसेज भेज सकता है और कौन नहीं. मार्क स्पैम फीचर ऑप्शन भी लाया जाएगा ताकि बिना सोचे-समझे मैसेज फॉर्वर्ड का प्रचलन काबू किया जा सके. अगर अधिकांश लोग किसी मैसेज को स्पैम के तौर पर मार्क करेंगे तो यह ब्लॉक हो जाएगा और आगे फॉर्वर्ड नहीं किया जा सकेगा. हालांकि व्हाट्सऐप के मुताबिक भारत में उसका इस्तेमाल करने वाली करीब 25 फीसदी लोग किसी ग्रुप में नहीं हैं. अधिकांश लोग छोटे ग्रुप में हैं जिसकी सदस्य संख्या दस से भी कम है.

व्हाट्सऐप कहता है कि गोपनीयता और प्राइवेसी से वो छेड़छाड़ नहीं चाहता और उसके सभी मैसेज इनक्रिप्टेड होते हैं. उधर, ट्विटर भी नई पॉलिसी ला रहा है ताकि गुमनाम और हिंसा की धमकी देने वाले अकाउंट की पहचान हो सके.

अफवाह के साथ सोशल मीडिया पर गाली-गलौज और धमकियों का सिलसिला भी बदस्तूर जारी है जिस पर पाबंदी की तमाम कोशिशें अभी तक नाकाम रही हैं. इस बीच, गृह मंत्रालय के कहने पर कांग्रेस प्रवक्ता प्रियंका चतुर्वेदी के परिवार को कथित रूप से ट्विटर पर धमकी देने वाले शख्स को मुंबई पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया है.

क्या यह कदम एक छोटी शुरुआत भर है? क्या सरकार का दखल सोशल मीडिया पर फैली गंदगी को दूर कर पाएगा? जाहिर है इन सवालों का जवाब आसान नहीं है. सिर्फ सरकार के भरोसे सब कुछ छोड़ देने से समस्याएं हल नहीं होंगी. लोगों को अपने विवेक का इस्तेमाल भी करना होगा. मोबाइल पर आए हर संदेश पर आंखें मूंद कर भरोसा करने की प्रवृत्ति को छोड़ना होगा. फॉरवर्ड उन्हीं संदेशों को करें जिनकी विश्वसनीयत पर आपको संदेह न हो.

(अखिलेश शर्मा एनडीटीवी इंडिया के राजनीतिक संपादक हैं)

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति एनडीटीवी उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार एनडीटीवी के नहीं हैं, तथा एनडीटीवी उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.

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