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This Article is From Feb 28, 2015

कैसे दर्ज हुआ लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में एक डॉक्टर का नाम

Ravish Ranjan Shukla, Rajeev Mishra
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  • Updated:
    मार्च 01, 2015 10:40 am IST
    • Published On फ़रवरी 28, 2015 23:02 pm IST
    • Last Updated On मार्च 01, 2015 10:40 am IST

एम्स में आर्थोपेडिक्स डिपार्टमेंट में प्रोफेसर और माने-जाने घुटना प्रत्यारोपण विशेषज्ञ डॉ चंद्रशेखर यादव का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हो चुका है। दो साल पहले उन्होंने 3 दिन के भीतर 9 घुटने और कमर का प्रत्यारोपण 11 हज़ार फीट की ऊंचाई पर करके सर्जरी के ऐतिहासिक शिखर पर अपना नाम दर्ज करा लिया।

लेकिन मैंने बहुत आसान शब्दों में उनके कठिन काम का जिक्र किया है। इस अनोखे रिकॉर्ड का मैं भी गवाह रहा हूं। मैंने देखा है डॉ चंद्रशेखर 12 घंटे से ज्यादा काम करते हैं, डॉक्टरोंवालों इलिटिज्म तो बिल्कुल नहीं है, जुनूनी और पेशेवर तरीके से ऑपरेशन करने के लिए जाने जाते हैं।

मुझे याद है कि 6 मई 2013 की वो तारीख, जब मैं अपने कैमरामैन सुधीश के साथ एम्स के बाहर सुबह करीब साढ़े चार बजे पहुंचा। करीब दर्जनभर डॉक्टरों की एक टीम लेह-लद्दाख जाकर दूर-दराज के मरीजों का इलाज करने जा रही थी।

उन्हीं डॉक्टरों में एक डॉ चंद्रशेखर यादव भी थे। उनके पास 500 किलो से ज्यादा के सर्जरी के उपकरण थे। मैंने ताज्जुब से डॉक्टर यादव से पूछा, क्या आप वहां ऑपरेशन भी करेंगे। डॉक्टर यादव उत्साह से लबरेज होकर बोले क्यों नहीं, सब कुछ अच्छा रहा तो कम से कम आधा दर्जन सर्जरी जरूर करूंगा। ताकि हमारी उपस्थिति से जरूरतमंदों को ज्यादा से ज्यादा फायदा पहुंच सके। हमारी छह बजे फ्लाइट थी हम करीब साढ़े सात बजे लेह पहुंचे गए।

लेह में लामा लोबजांग ने इस स्वास्थ्य शिविर का इतना प्रचार किया था कि होटल पहुंचने के साथ ही मरीजों की खासी बड़ी तादात यहां डॉक्टरों से अपना इलाज कराने पहुंच चुकी थी। जिला अस्पताल हम डॉक्टरों के साथ पहुंचे।

लेकिन, यहां चुसूल यानी करगिल के गांव से दो दिन का सफर तय करके पहुंचे तेनजिंग जैसे कई मरीज हमें मिले, जो फ्लाइट से दिल्ली आकर घुटनों का ऑपरेशन नहीं करा सकते थे। मुझे इस तरह के गरीब मरीजों को देखकर ये एहसास हुआ कि हमारे देश में दूरदराज के गरीब मरीजों को ऐसे डॉक्टरों की सख्त जरूरत है, लेकिन क्या हमारे डॉक्टर तैयार है।

अगर डॉ यादव जैसे डॉक्टर तैयार भी हैं तो क्या लामा लोबजांग जैसे स्थानीय प्रभावशाली लोग हैं जो कम से कम इन डॉक्टरों के रहने और खाने की साफ सुथरी व्यवस्था करा सके। खैर पहले दिन से मेरे साथ आई डाक्टरों की टीम मरीजों को देखने जुट गई।

सर्जरी के सारे सामान जुटे डॉ सीएस यादव ने लेह के जिला अस्पताल के ऑपरेशन थियेटर का जायजा लिया। ऑपरेशन थियेटर मूलभूत जरुरतों से लैस था लेकिन डॉ यादव के सामने एक बड़ी समस्या एम्स जैसी ट्रेंड नर्सों और जूनियर डॉक्टरों की कमी थी जो ऑपरेशन करने के दौरान उनकी आवश्यक जरूरतों को समझ सके। पहले दिन डॉक्टर यादव दो ऑपरेशन कर पाए क्योंकि वक्त की कमी के साथ नर्सों और लोकल डॉक्टरों की लय उनके साथ नहीं बन पा रही थी। पहला दिन खत्म हुआ मैंने डिनर
की टेबल पर डॉ चंद्रशेखर से पूछा कि सर हाई एल्टीट्यूड सिकनेस का आप जिक्र कर रहे थे। लेकिन अब तक मुझे महसूस नहीं हुआ।

वो मुस्कुराए बोले कल सुबह मिलना फिर बताऊंगा इसके असर के बारे में। मैं अपने कैमरामैन के साथ अपने कमरे में चला गया। लेकिन आधी रात में हाई एल्टीट्यूड सिकनेस ने असर दिखाया और हमें उल्टी, चक्कर जैसी शिकायतें होनी लगी। हमारी तबीयत बिगड़ गई फिर एहसास हुआ कि क्यों लोग लेह आने के बाद ऑक्सीजन की कमी का शिकार हो जाते हैं। इसी सिकनेस के शिकार डॉ यादव के साथ आए कुछ लोग हुए जिसके चलते एक बार लगा कि दूसरे दिन सर्जरी नहीं हो पाएगी। लेकिन डॉ यादव की जिद और उनके साथ आए साथियों का हौसला था कि एक के बाद एक सफल सर्जरी होती रही। शाम को काम खत्म करने के बाद जब डॉ सीएस यादव मुझसे बोलते कि रवीश इस दुनिया में सबसे बड़ी खुशी मुझे तब होती है जब मेरे काम से दूसरे के चेहरे पर खुशी के भाव आते हैं।

तीन दिन तक सर्जरी करने के बाद चौथे दिन डॉ सीएस यादव खुद बीमार पड़ गए। इसके ठीक दो साल बाद डॉ चंद्रशेखर का एक दिन फोन आया वो बड़े खुश थे और उन्होंने बताया कि लेह में जो ऑपरेशन किया था वो शायद सबसे ऊंचाई पर की गई सबसे ज्यादा सर्जरी थी, जिसके चलते उसे लिम्का बुक आफ रिकॉर्ड में शामिल किया गया है। मुझे लगा एक समर्पित डॉक्टर के ऐतिहासिक सेवा को जरूर आने वाली उस पीढ़ी को बताया जाए जिसके लिए पैसा और शोहरत बाजार का सामान बनती जा रही है।

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